ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की दोस्ती का ऑर्डर पूरी तरह से बदल चुका है. फ्रेंडलिस्ट में जो टॉप पर आते थे वो नीचे खिसक चुके हैं. जो नीचे थे वो ऊपर आ गए हैं. इस लिस्ट में जो सबसे बड़े नाम हैं वो चीन, रूस और अमेरिका हैं.
अमेरिका जो मित्रों की सूची में टॉप पर था वो नीचे आ गया है. वहीं, चीन उसके ऊपर नजर आ रहा है. लेकिन सावधानी के साथ, क्योंकि जिनपिंग के देश पर हिंदुस्तान आंख मूंदकर भरोसा नहीं कर सकता. वहीं, रूस जिससे भारत की दोस्ती हमेशा से ही मजबूत रही है वो टॉप पर आ गया है.
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रूसी हथियार से पाक चित
रूस भारत का सदाबहार दोस्त रहा है. हर मुश्किल में वो साथ खड़ा रहा है. ऑपरेशन सिंदूर में जिस तरह से भारत रूसी हथियार के दम पर पाकिस्तान को चित किया, उससे रिश्ते और मजबूत हुए हैं. रूस का एयर डिफेंस सिस्टम S400 भारत के लिए सीना तानकर खड़ा रहा और पाकिस्तान के कई ड्रोन को मार गिराया.
पाकिस्तान से तनाव में तो रूस भारत के साथ खुलकर खड़ा था ही, साथ ही टैरिफ पर ट्रंप की धमकियों के बीच भी वो हिंदुस्तान का मजबूती से साथ दे रहा है. राष्ट्रपति ट्रंप भारत को रूस से तेल खरीदने के लिए रोक रहे हैं, लेकिन मॉस्को का कहना है कि कोई देश किससे क्या व्यापार करता है ये उस देश पर निर्भर करता है. ट्रंप चाहते हैं भारत और रूस की दोस्ती में खटास पैदा हो, लेकिन पुतिन और मोदी उनके ख्वाहिश को कामयाब नहीं होने दे रहे हैं. उल्टे दोनों की दोस्ती और मजबूत होती जा रही है.
ट्रंप जब टैरिफ पर धमकी पे धमकी दे रहे हैं तब ही NSA अजीत डोभाल मॉस्के पहुंचे हैं. डोभाल रूस में रक्षा और द्विपक्षीय संबंधों पर बातचीत करेंगे. डोभाल के मॉस्को पहुंचने से पहले रूस के उपसेना प्रमुख ने भारतीय दूत के साथ बैठक की. रूस का बयान और डोभाल का दौरा नई दिल्ली और मॉस्को के बीच और मजबूत होती मित्रता को दिखाता है. दोनों की केमेस्ट्री बताती है कि ट्रंप कुछ भी बोलें उनके रिश्तों पर जरा सा भी असर नहीं पड़ने वाला.
अमेरिका के बदले चीन को तरजीह
डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी बयानबाजी से भारत और अमेरिका के रिश्तों को नुकसान पहुंचाया है. भारत-पाकिस्तान सीजफायर का वह क्रेडिट लेने में जुटे हैं. पाकिस्तान से तो उनको भाव मिल रहा है लेकिन भारत उनको पूछ नहीं रहा है. कुछ जानकार कह रहे हैं कि इसी वजह से ट्रंप टैरिफ को लेकर नए-नए ऐलान कर रहे हैं. ट्रंप के व्यवहार को देखते हुए भारत भी समझ गया है कि अमेरिका उसका उतना अच्छा दोस्त नहीं रहा जितना ऑपरेशन सिंदूर के पहले था.
ये वही ट्रंप हैं जिन्होंने इस साल की शुरुआत में पीएम मोदी को बांग्लादेश के लिए खुली छूट दे दी थी. इसके बाद भारत और अमेरिका की दोस्ती के उदाहरण दिए जाने लगे थे. लेकिन ट्रंप के मूड में आए बदलाव के बाद भारत चीन को ज्यादा तरजीह दे रहा है.
टॉप लीडर्स का लगातार दौरा हो रहा है. जून में NSA अजीत डोभाल और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चीन गए थे. इसके बाद जुलाई में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वहां का दौरा किया. अब खुद पीएम मोदी चीन जाने वाले हैं. वह 31 अगस्त-1 सितंबर को पड़ोसी मुल्क की यात्रा करेंगे. वह SCO समिट में हिस्सा लेंगे. चीन के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री का ये दौरा होने वाला है.
सम्मेलन से इतर पीएम मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी द्विपक्षीय वार्ता कर सकते हैं. दोनों नेताओं की इससे पहले 23 अक्टूबर, 2024 को रूस के कजान में मुलाकात हुई थी. पीएम मोदी का चीन दौरा 7 साल बाद होने जा रहा है. इससे पहले वह 2018 में चीन गए थे.
चीन से दोस्ती लेकिन सावधानी के साथ
2020 में गलवान में झड़प के बाद दोनों देश अपने संबंधों को ठीक करने में जुटे हैं. दोनों देशों ने तब से संबंधों को सुधारने की कोशिश की है. मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू की है. चीनी पर्यटकों के लिए वीज़ा जारी किए हैं और सीधी उड़ानें फिर से शुरू करने पर विचार कर रहे हैं. भारत ये सब कर तो रहा है लेकिन इसके साथ वो ड्रेगन को बीच-बीच में कड़ा मैसेज भी देता रहता है.
उसने ऑपरेशन सिंदूर में चीन के रोल को भी उजागर किया था. ये दिखाता है कि भारत और चीन के संबंध कितने भी अच्छे हो जाएं लेकिन फ्रेंडलिस्ट की सूची में कभी जिनपिंग टॉप पर नहीं आएंगे. क्योंकि चीन समय-समय पर भारत को धोखा देता रहा है. वो कभी भी भरोसे का साथी नहीं रहा है.
