Sheetala Ashtami 2024: जयपुर में आज शीतलाष्टमी यानी बास्योड़ा का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है. माता के मंदिरों में शीतला अष्टमी की पूजा अर्चना की जा रही है. राजधानी जयपुर के आमेर स्थित नई माता मंदिर में शीतलाष्टमी के अवसर पर भक्तों ने माता के दरबार में धोक लगाई. सुबह से ही माता के भक्तों के आने का सिलसिला जारी है. भक्त माता के दरबार में ठंडे पकवानों का भोग लगाकर सुख समृद्धि की कामना कर रहे हैं. शीतलाष्टमी के एक दिन पहले घर-घर में पकवान बनाए जाते हैं. जिसके बाद आज शीतलाष्टमी के दिन सभी ठंडे पकवानों का माताजी के दरबार में भोग लगाया जा रहा है.
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शीतला माता को क्यों लगाते हैं बासी खाने का भोग?
ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी सर्दियों के मौसम खत्म होने का संकेत होता है. इसे सर्दी क मौसम का आखिरी दिन माना जाता है. ऐसे में शीतला माता को इस दिन बासी खाने का भोग लगाने की परंपरा है. हालांकि भोग लगाने के बाद उस बासी खाना खाना सही नहीं माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि शीतला माता को बासी खाने का भोग लगाने से वे प्रसन्न होती हैं और व्यक्ति को निरोगी सेहत का आशीर्वाद देती हैं. गर्मी के मौसम में अधिकतर लोग बुखार, फुंसी, फोड़े, नेत्र रोग के शिकार हो जाते हैं, ऐसे में शीतला सप्तमी की पूजा करने से इन बीमारियों से बचाव होता है.
इसलिए शीतला अष्टमी पर लगाया जाता है बासी भोग
शीतला माता का ही व्रत ऐसा है जिसमें शीतल यानी बासी खाना खाया जाता है. इस व्रत पर एक दिन पहले बना हुआ खाना खाने करने की परंपरा है, इसलिए इस व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवलोक से देवी शीतला दाल लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थीं लेकिन राजा विराट ने देवी शीतला को राज्य में रहने से मना कर दिया.
देवी के गुस्से से जलने लगी त्वचा
राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हुईं और शीतला माता के क्रोध से राजा की प्रजा के लोगों की त्वचा पर लाल दाने होने लगे. लोगों की त्वचा गर्मी से जलने लगी. इसके व्याकुल राजा विराट ने माता से माफी मांगी और राजा ने देवी शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया, इसके बाद शीतला का क्रोध शांत हुआ.
तब से माता को ठंडे पकवानों का भोग या बासी भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है. शीतला माता की पूजा करने और इस व्रत में ठंडा भोजन करने से संक्रमण या अन्य बीमारियों से बचाव होता है. इसके अलावा ये व्रत गर्मी में होता है इसलिए भी इस दिन ठंडा भोजन करने की परंपरा है.
