पवार को विरासत में मिली थी राजनीति
शरद पवार का जन्म पुणे के बारामती गांव में 12 दिसंबर 1940 हुआ था. उन्हें राजनीति विरासत में मिली थी. शरद पवार के पिता गोविंदराव पवार और मां शारदाबाई भोंसले दोनों ही राजनीति में सक्रिय थे. यही वजह थी कि बचपन से ही शरद पवार के रग-रग में राजनीति बसती है. कहा जाता है कि शरद पवार जब तीन दिन के थे तब उनकी मां पहली बार उन्हें अपने साथ लेकर लोकल बोर्ड की बैठक में चली गईं थी. शरद पवार जब बड़े हुए तो उन्होंने बीएमसी कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया. अगर देखा जाए तो पढ़ाई लिखाई में शरद पवार औसत ही थे लेकिन उन्हें शुरू से ही राजनीति में बहुत रुचि थी.
1960 से सक्रिया राजनीति में है पवार
अगर बात शरद पवार के सक्रिय राजनीति में उतरने की करें तो वो साल था 1960 का. इस समय शरद पवार की उम्र महज बीस साल की थी. उन्होंने कॉलेज खत्म करते ही कांग्रेस को ज्वाइन कर लिया था. उसी दौरान कांग्रेस के बड़े नेता केशवराव जेधे के निधन से महाराष्ट्र की बारामती लोकसभी सीट खाली हो गई थी. जब इस सीट पर लोकसभी चुनाव हुए तो पीडब्ल्यूपी पार्टी ने शरद पवार के बड़े भाई को यहां से टिकट दे दिया. जबकि इसी चुनाव में कांग्रेस ने केशवराव के बेटे को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया. अब ऐसे में शरद पवार के सामने दुविधा थी. वो थे तो कांग्रेस में लेकिन उनके भाई को पीडब्ल्यूपी ने अपना उम्मीदवार बनाया था. ऐसे में उनके बड़े भाई ने शरद पवार से कहा कि वह कांग्रेस के साथ जुड़े हैं तो उन्हें कांग्रेस के उम्मीदवार के लिए प्रचार करना चाहिए. जब चुनाव परिणाम आए तो इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत हुई और यहीं से शरद पवार की सक्रिय राजनीति में एंट्री भी.
27 साल के उम्र में विधायक बने पवार
कांग्रेस ने 1967 में शरद पवार की बारामती विधानसभा से टिकट दिया. 27 साल के पवार पहली बार बारामती विधानसभा सीट से विधायक बने. तब से लेकर आज तक विधानसभा की यह सीट पवार परिवार के पास ही है. 1991 तक शरद पवार ही इस सीट से विधायक रहे. पिछले 5 दशकों में शरद पवार 14 बार चुनाव जीत चुके हैं.
सबसे कम उम्र में बने सीएम
शरद पवार महज 38 साल की उम्र में महाराष्ट्र के सीएम बन गए थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जिस समय शरद पवार सीएम बने उस दौरान उनके पास 180 विधायकों का समर्थन था, जबकि विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या 288 थी. 1978 तक इतनी कम उम्र में कोई भी नेता मुख्यमंत्री नहीं बन पाया था.
ऐसे किया था NCP का गठन
कहा जाता है कि जब 1998 में सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं तो इससे शरद पवार खुश नहीं थे. यही वजह थी कि जब सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की सुगबुगाहट शुरू हुई तो शरद पवार ने इसका विरोध किया. उनके इसी विरोध के चलते ही 20 मई 1999 को कांग्रेस पार्टी ने उन्हें पार्टी से अगले छह साल के लिए निष्कासित कर दिया. इस घटना के बाद ही शरद पवान ने अपनी पार्टी का गठन करने का फैसला किया और उसका नाम रखा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी NCP.
जब शरद पवार ने किया पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला
अपने भतीजे अजित पवार की बगावत के बाद जब एनसीपी दो गुटों में बटती दिखी तो शरद पवार ने आगे आकर अपने पद यानी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का फैसला किया. 2 मई 2023 को शरद पवार ने मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि मैंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का पद छोड़ने का फैसला किया है. शरद पवार प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच ऐसा कुछ कहने वाले इसका अंदाजा किसी को नहीं था. शरद पवार के इतना कहते ही पार्टी के कई बड़े नेता और कार्यकर्ता उसी समय धरने पर बैठ गए.