सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादित भाषण की खबरों पर खुद संज्ञान लिया है। जस्टिस यादव के कथित भाषण पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से जानकारी मांगी है।
गौरतलब है, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की लीगल सेल की ओर से रविवार को आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस शेखर यादव ने कई टिप्पणियां की थीं, जिनपर अब विवाद गहरा गया है। सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान लेने से पहले न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव के खिलाफ आंतरिक जांच की मांग की।
वकील और गैर सरकारी संगठन न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) के संयोजक प्रशांत भूषण ने न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ जांच की मांग की है। एनजीओ ने उन पर न्यायिक नैतिकता का उल्लंघन करने और निष्पक्षता तथा धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।
एक समुदाय के खिलाफ अपशब्द बोले
भूषण ने पत्र में आरोप लगाया कि न्यायमूर्ति यादव ने एक समुदाय के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का भी इस्तेमाल किया। इससे इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश के पद और न्यायपालिका को बदनामी झेलनी पड़ी। साथ ही कानून के शासन को कमजोर किया, जिसे बनाए रखने का काम उनका है। इतना ही नहीं, उन्होंने टिप्पणी की कि एक समुदाय के बच्चों को दया और अहिंसा के मूल्य सिखाए जाते हैं, और इसके लोगों को सहिष्णु होने के लिए पाला जाता है।
उन्होंने आगे पत्र में कहा, ‘हाईकोर्ट के जज ने यह भी कहा कि जहां गाय, गीता और गंगा संस्कृति को परिभाषित करती हैं, जहां हर घर में हरबाला देवी की मूर्ति होती है और हर बच्चा राम होता है। ऐसा मेरा देश है।’
बहुसंख्यक समुदाय के पक्ष में टिप्पणी
न्यायमूर्ति यादव ने कथित तौर पर बहुसंख्यक समुदाय के पक्ष में टिप्पणी की। इसमें उन्होंने जोर देकर कहा कि हिंदुस्तान बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार काम करेगा और सुझाव दिया कि कानून बहुसंख्यकों के हितों के अनुरूप है। न्यायाधीश ने मुस्लिम समुदाय के भीतर की प्रथाओं की भी आलोचना की, जिसमें बहुविवाह, हलाला और ट्रिपल तलाक का संदर्भ दिया गया और इनकी तुलना हिंदू परंपराओं से की गई। इन टिप्पणियों में कथित तौर पर अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया है, जिसके कारण भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष और समतावादी मूल्यों को कमजोर करने के लिए कड़ी आलोचना की गई है।