बॉलीवुड की चकाचौंध में अक्सर मौलिक विचारों की अनदेखी की जाती है। फिल्म उद्योग में, जहां चमक-दमक और बड़े नामों का बोलबाला है, छोटे रचनाकारों की मेहनत और उनके विचारों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। ऐसे में प्रोड्यूसर संजय तिवारी, जो पिछले 20 वर्षों से मीडिया जगत में सक्रिय हैं, ने हाल ही में एक गंभीर मुद्दे की ओर ध्यान खींचा है।
जब उन्होंने फिल्म “विक्की विद्या का वो वाला वीडियो” का ट्रेलर देखा, तो उन्हें एहसास हुआ कि इसकी कहानी उनके द्वारा पहले से रजिस्टर करवाये गए कांसेप्ट से मेल खाती है। इसलिए उन्होंने 21 सितम्बर को फिल्म ‘विक्की विद्या का वो वाला वीडियो ‘ के मेकर्स को उनके कांसेप्ट को चोरी करने का नोटिस भेजा था।
27 सितंबर को ‘Naik Naik & Company ‘ ने टी सीरीज की ओर से उनको एक वापिस नोटिस भेजा जिसमे लिखा था यह कांसेप्ट युसूफ अली खान और राज शांडिल्या का ओरिजिनल कॉन्सेप्ट है जिसे उन्होंने 27 अक्टूबर 2015 को रजिस्टर करवाया था।
सोमवार को तिवारी ने मुंबई में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज शांडिल्या के खिलाफ अपने दावे को पेश किया।उन्होंने कहा ,” टी सीरीज के नोटिस में उनके द्वारा रजिस्टर की डेट 27 अक्टूबर 2015 की बताई गयी है जबकि हमने यह कांसेप्ट उनसे दो महीने पहले 28 अगस्त 2015 को रजिस्टर करवाया था। ”
तिवारी ने इस विषय पर दस्तावेज भी पेश किए, जिस से साफ़ स्पष्ट होता है कि उन्होंने इस कांसेप्ट को पहला रजिस्टर करवाया था और यह ओरिजिनल कांसेप्ट उनका है।
संजय तिवारी का कहना है, “मेरी लड़ाई केवल मेरे विचार के लिए नहीं है; यह सभी लेखकों की आवाज को सुनने की कोशिश है, जो बड़े प्रोडक्शन हाउस के दबाव में आते हैं।” उनका मानना है कि फिल्म उद्योग में विचारों की चोरी एक सामान्य समस्या बन चुकी है। उन्होंने कहा, “एक विचार ही किसी फिल्म की नींव है। आप किसी भी कांसेप्ट के इर्द गिर्द पूरी कहानी बना सकते हैं। लेकिन अगर कोई कांसेप्ट ही चोरी करके फिल्म बना दे, तो यह बात गलत है। कहानियाँ बदल सकती हैं, लेकिन विचार का मूल रूप हमेशा सम्मानित होना चाहिए।”
संजय तिवारी ने बताया जैसे ही उन्होंने यह ट्रेलर देखा तो तुरंत उन्होंने SWA को इस बात से अवगत करवाया। लेकिन उनके तरफ से मिले जवाब को लेकर वह काफी निराश हुए।
उन्होंने स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया, जिसमें उन्होंने कहा कि यह संगठन 65,000 सदस्यों के बावजूद मौलिक लेखकों की सुरक्षा में असफल है। उन्होंने कहा ,“हम डिजिटल युग में जी रहे हैं, और ऐसी धीमी प्रक्रियाएँ मौलिक रचनाकारों के लिए अत्यंत हानिकारक हैं।असली लेखकों को बचाने के लिए SWA में एक बदलाव की है जरूरत। ”
तिवारी ने बताया कि बड़े प्रोडक्शन हाउस के डर से कई लेखकों ने चुप रहना ही बेहतर समझा है, इस वजह से उन बड़े प्रोडक्शन हाउस को ऐसे कांसेप्ट चोरी करके फिल्म बनाने के लिए शेय मिलती हैं।
तिवारी ने कहा कि उन्हें प्रेरणा उन दिग्गजों से मिलती है, जिन्होंने अपने काम की रक्षा के लिए आवाज उठाई, जैसे कि सलीम -जावेद। उनका उद्देश्य केवल अपने लिए नहीं, बल्कि सभी छोटे लेखकों के लिए न्याय की आवाज उठाना है। उन्होंने सभी लेखकों से अपील की कि वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाएँ।उन्होंने कहा , “यदि हम एकजुट होकर खड़े नहीं होते, तो मौलिकता का मूल्य कम होता जाएगा। हमें अपनी आवाज को बुलंद करना होगा।”
संजय तिवारी की यह कानूनी लड़ाई एक बड़े संदेश के साथ आती है। यह केवल एक व्यक्ति का संघर्ष नहीं है; यह सभी मौलिक रचनाकारों के लिए न्याय और सम्मान की पुकार है।