नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की धर्मांतरण पर टिप्पणी गैरजरूरी बताई। सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद टिप्पणी को खारिज कर दिया। इस टिप्पणी में कहा गया था कि अगर धर्मांतरण को बढ़ावा देने वाली धार्मिक सभाओं को नहीं रोका गया तो देश में बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो सकती है। भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय की टिप्पणी गैर जरूरी थी और इसे खत्म किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम स्पष्ट करते हैं कि हाई कोर्ट द्वारा की गई सामान्य टिप्पणियों का वर्तमान मामले के तथ्यों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और इसलिए मामले को निपटान के लिए टिप्पणी की आवश्यकता नहीं थी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने निर्देश देते हुए कहा कि इन टिप्पणियों को किसी अन्य मामले या हाई कोर्ट या किसी अन्य अदालत में कार्यवाही में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
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हाईकोर्ट की सामान्य टिप्पणियों की कोई प्रासंगिकता नहीं
कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कैलाश को जमानत के आदेश पारित किए। कैलाश पर उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 365 (किसी व्यक्ति को गुप्त रूप से और गलत तरीके से कैद करने के इरादे से अपहरण करना) के तहत आरोप लगाए गए थे। अदालत ने कहा कि कैलाश को जमानत यह देखते हुए दी कि वह 21 मई 2023 से हिरासत में है और आरोप पत्र 19 जुलाई 2023 को दायर किया गया था। कोर्ट ने कहा कि मामले में हाईकोर्ट की सामान्य टिप्पणियों की कोई प्रासंगिकता नहीं थी।
धर्म परिवर्तन कर लोगों को धार्मिक मण्डली में ले जाने के आरोप
गौरतलब हो कि हाईकोर्ट ने 2 जुलाई को कैलाश की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कैलाश पर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर से लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए दिल्ली में एक धार्मिक मण्डली में ले जाने के आरोप लगे। सुनवाई में हाई कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि अगर ऐसी गतिविधियों की इजाजत दी गई तो देश की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो सकती है। हाई कोर्ट ने आगे कहा था कि ऐसे कई मामले देखे हैं जहां पूरे उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और आर्थिक रूप से वंचित समूहों के व्यक्तियों का ईसाई धर्म में रूपांतरण तेजी से हो रहा था। ऐसे में कैलाश को जमानत देने से भी इनकार कर दिया गया था।