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July 27, 2024 5:17 am

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RAM MANDIR: बिना लोहा, बिना सीमेंट बन रहा Ram Mandir, 1000 साल रहेगा मजबूत; विज्ञान ने किया कमाल

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Ram Mandir Building Technology: अयोध्या में श्रीराम मंदिर (Ram Mandir) के लिए देश ने पांच सदियों तक प्रतीक्षा की है. करीब 500 साल तक अयोध्या और सनातन धर्म के मानने वालों को भव्य मंदिर में रामलला के दर्शन से दूर रखा गया. अब श्रीराम मंदिर का निर्माण अपनी पूरी रफ्तार से हो रहा है. इस मंदिर को बनाने में परंपरागत प्राचीन शैली और संस्कृति का समावेश तो है ही, साथ ही नई तकनीक का भी इस्तेमाल हो रहा है. हर साल रामनवमी में श्रीराम की मूर्ति पर सूर्य की किरणों को पहुंचाने का जतन हो, मंदिर में लगे पत्थरों को जोड़ने की पद्धति हो या फिर भूकंप में भी अटल रहने वाली नींव हो, मंदिर के रास्ते में आ रही सभी बाधाओं को विज्ञान की मदद से दूर किया गया है. वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और कई एजेंसियों की टीम मिलकर ये तय कर रही है कि श्रीराम मंदिर दीर्घायु हो.

हजारों साल तक कैसे अटल और सुरक्षित रहेगा मंदिर?बता दें कि मंदिर का पूरा परिसर 71 एकड़ का है. जबकि रामलला का मंदिर 8 एकड़ में बन रहा है. मंदिर को इस तरीके से बनाया जा रहा है कि वो कम से कम 1 हजार साल तक खड़ा रहे. श्रीराम मंदिर की बुनियाद को सॉलिड बनाने के लिए देश में पहली बार एक असंभव दिखने वाले काम को अंजाम दिया गया. मंदिर के लिए 400 फुट लंबी, 300 फुट चौड़ी नींव बनाई गई. जमीन में 14 मीटर की गहराई में चट्टान ढाली गई और यही चट्टान मंदिर की बुनियाद बन गई है. यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जिसपर बना मंदिर हजारों साल तक अटल और सुरक्षित रहेगा. दावा है कि अगले 1000 साल से ज्यादा वक्त तक श्रीराम मंदिर ऐसी ही भव्यता के साथ अपनी आभा बिखेरता रहेगा.

6 आईआईटी ने मिलकर तैयार किया प्लान

मंदिर की नींव कैसी हो ये सबसे बड़ी चुनौती थी. इसके लिए अलग-अलग एक्सपर्ट से राय ली गई. लंबे वक्त तक परीक्षण किया गया. अलग-अलग स्तर पर टेस्टिंग हुई. यहां तक कि रडार सर्वे का भी सहारा लिया गया. करीब 50 फुट गहरी खुदाई के बाद तय किया गया कि कृत्रिम चट्टान तैयार की जाए. इस काम में IIT चेन्नई, IIT दिल्ली, IIT गुवाहाटी, IIT मुंबई, IIT मद्रास, NIT सूरत और IIT खड़गपुर के अलावा CSIR यानी Council of Scientific & Industrial Research और CBRI यानी सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्ट्टीट्यूट ने मदद की. जबकि लार्सन टुब्रो और टाटा के एक्पर्ट इंजीनियर्स ने भी रामकाज में अहम भूमिका निभाई.

मंदिर पर नहीं होगा प्राकृतिक आपदाओं का असर

भगवान राम का मंदिर प्राकृतिक आपदा में भी मजबूती से खड़ा रहे इसका भी पूरा ध्यान रखा गया है. इसीलिए मंदिर निर्माण में भारत की प्राचीन और पारंपरिक निर्माण तकनीकों का पालन किया गया है. मंदिर पर भूकंप, तूफान और दूसरी प्राकृतिक आपदाओं का असर नहीं होगा. मंदिर में लोहा और सीमेंट की बजाय सिर्फ पत्थरों का इस्तेमाल किया जा रहा है. जो पत्थर मंदिर में लगाए जा रहे हैं उनकी लैब टेस्टिंग की गई है. पत्थर जोड़ने के लिए भी तांबे का इस्तेमाल किया गया है. इसका मकसद यही है कि मंदिर मजबूत हो और हर चुनौती से निपटने में सक्षम हो.

हर वैज्ञानिक पहलू का रखा गया है ध्यान

मंदिर निर्माण में लगे इंजीनियरों की मानें तो राम मंदिर हजार सालों तक वैसे का वैसा बना रहेगा. चाहे बड़े तूफान आएं या फिर भूकंप से धरती हिले, ये मंदिर वैसे का वैसा बना रहेगा. प्राकृतिक आपदाओं से राम मंदिर को बचाने के लिए वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. मंदिर के अंदर और बाहर काम तेजी से चल रहा है. गर्भगृह के निर्माण में भी तमाम बारीकियों का ख्याल रखा गया है और वैज्ञानिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए काम हुआ है.

आधुनिक और प्राचीन दोनों तकनीक का हुआ इस्तेमाल

मंदिर आधुनिक दौर के हिसाब से बन रहा है लेकिन इसमें प्राचीन सभ्यता और पुरातन तकनीक की मदद ली गई है. रामलला जिस जगह विराजमान होंगे वहां रामनवमी के दिन सूर्य की रोशनी से अभिषेक हो इसके लिए भी काम किया गया है. श्रीराम मंदिर का गर्भगृह एक और वजह से बेहद खास और अद्वितीय होगा. मंदिर के अंदर गर्भगृह को इस तरह तैयार किया गया है कि हर साल रामनवमी के दिन दोपहर ठीक बारह बजे सूर्य की किरणें गर्भगृह में विराजमान श्रीराम की मूर्ति पर पड़ेंगी. इसके लिए बहुत जतन करके एक उपकरण मंदिर के शिखर में लगाया जाएगा और उसके जरिए सूर्य की किरणें रिफ्लेक्ट होकर रामलला के ललाट तक पहुंचेंगी.

90 के दशक से शुरू हुआ था पत्थर तराशने का काम

रामलला के मस्तक पर सूर्य की किरणें पड़ें ये सुझाव प्रधानमंत्री मोदी ने दिया है. जिसके बाद इस पर काम शुरू हुआ और CSIR रुड़की की टीम ने डिजाइन तैयार किया. इंजीनियरिंग और विज्ञान के समावेश के साथ राम मंदिर का निर्माण अपने आप में अनूठा है. रिसर्च और सर्वे के बाद जो भी चीजें सामने आती गईं उसी हिसाब से मंदिर बनाने के तरीके में भी बदलाव किया जाता रहा. मंदिर के लिए पत्थर तराशने का काम तो 90 के दशक से ही चल रहा है लेकिन जब निर्माण शुरू हुआ तो इसमें साइंटिफिक पहलू भी शामिल किए गए.

राम मंदिर में लगने वाले हजारों पत्थर अपने आप में एक भूल-भुलैया है. जिसे सुलझाने के लिए राम मंदिर का पूरा नक्शा कंप्यूटरों में दर्ज किया गया है. यानी राम मंदिर में लगने वाले सभी पत्थरों की ट्रैकिंग होती है. बारकोड्स की मदद से पत्थरों की लोकेशन का ब्योरा तैयार रहता है. कौन सा पत्थर मंदिर के किस हिस्से में और किस समय लगेगा ये सबकुछ कंप्यूटर की मदद से तय किया जाता है.

राम मंदिर अपने तरीके का पहला ऐसा निर्माण है जिसके लिए बरसों से तैयारी होती रही और अब भव्य स्वरूप में ये तैयार हो रहा है. मंदिर का मॉडल हो या बनाने का तरीका सबकुछ जांचने और परखने के बाद ही धरातल पर उतारा गया. कई ऐसे फैसले भी लिए गए जो निर्माण कार्यों में सनातन पद्धति का हिस्सा रही हैं. ज्यादातर इमारतों में लोहे का सरिया इस्तेमाल किया जाता है. इसका जीवनकाल करीब 94 साल माना जाता है. जबकि इस मंदिर को उससे 10 गुने ज्यादा समय तक टिकने के लिए बनाया जा रहा है.

इसलिए मंदिर के निर्माण में लोहे का इस्तेमाल नहीं करने का फैसला किया गया है. कुल मिलाकर श्रीराम मंदिर के लिए ऐसी हर तकनीक का सहारा लिया गया है जो इसे अदभुत और अद्वितीय बनाएगी.

देशभर में कई मंदिर सदियों पुराने हैं और आज भी वो मजबूती से खड़े हैं. राम मंदिर निर्माण में भी यही प्रेरणा ली गई और उसी आधार पर काम शुरू हुआ. राम मंदिर के पहले फेज का निर्माण कार्य आखिरी दौर में है. दिसंबर के आखिर तक ये काम पूरा भी हो जाएगा. जिसके बाद गर्भगृह में रामलला विराजमान होंगे. पहले दिन से ही हर काम बेहद बारीकी से और जांच परख कर किया जा रहा है.

Sanjeevni Today
Author: Sanjeevni Today

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