Rajasthan News : 40 साल पुराने विंटेज नंबरों को फर्जी तरीके से नए वाहनों में रिटेंशन करने के खेल का बड़ा खुलासा हुआ है। वर्ष 1989 से पहले के वाहनों के तीन डिजिट सीरीज के नंबरों के इस खेल में आरटीओ कार्यालयों के बाबू और दलालों की गैंग शामिल हैं। जयपुर आरटीओ प्रथम की एक जांच में इस पूरे फर्जीवाड़े का खुुलासा हुआ है। आरटीओ के बाबू और गैंग ने मिलकर 40 साल पुराने वाहनों की सीरीज के विटेंज नंबरों को फर्जी तरीके से परिवहन विभाग के वाहन सॉफ्टवेयर में अपलोड कर दिया। इसके बाद राजस्थान के कई जिलों में इस फर्जीवाड़े का अंजाम दिया गया और यूनिक नंबरों को 50 हजार से 15 लाख तक में बेचा गया। जयपुर में फर्जी तरीके से इन नंबरों को विभाग के सॉफ्टवेयर में चढ़ाए गए।
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मोपेड़ के नंबर भी लग्जरी कारों में किए गए ट्रासंफर
जोधपुर, नागौर से फर्जी दस्तावेज तैयार किए और सलूंबर आरटीओ ऑफिस में फर्जी तरीके से इन नंबरों को दूसरे वाहनों में रिटेंशन कर दिया गया। फर्जीवाड़ा भी ऐसा कि 40 साल पुराने मोपेड़ के नंबर भी लग्जरी कारों में ट्रासंफर कर दिए गए।
गैंग अपने वाहनों में ट्रांसफर कराती विंटेज नंबर
फर्जीवाड़े में जिन नंबरों को वाहनों में ट्रांसफर कराया गया वे सब गैंग के ही वाहन हैं। इसके बाद नए लग्जरी कार, जीप और अन्य वाहनों में इन नंबरों को आरटीओ कार्यालयों में सांठगांठ कर रिटेंशन करवा दिया गया।
ऐसे दिया फर्जीवाड़े को अंजाम
40 साल पुराने जिन वाहनों को फिर से रिन्यू नहीं कराया, उनके रिकॉर्ड निकलवा और वाहन मालिक और वाहन की जानकारी जुटाई। वाहन कबाड़ हो गया तो उसके नंबर को जयपुर आरटीओ में बैकलॉग किया। यह प्रक्रिया साफ्टवेयर में होती है। पुराने नंबरों को अपने वाहनों के नाम ट्रांसफर कराया। इसके बाद पुराने रिकॉर्ड को गायब कर दिया, ताकि इसका खुलासा न हो सके।
दरअसल, तीन डिजिट की सीरीज बंद है, इन्हें रिन्यू कराने के लिए आरटीओ से मंजूरी लेनी होती है व अपील करने के बाद प्रक्रिया शुरू होती है। इसके अधिकार आरटीओ, डीटीओ के पास होते हैं। लेकिन गैंग ने प्रोग्रामर से मिलकर ऑनलाइन अधिकार बाबू को दिलवा दिए। बाबू ने एक ही दिन में 78 वाहनों के नंबरों को ऑनलाइन कर दिया। आरटीओ ने रिकॉर्ड देखा तो शक हुआ।
