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December 12, 2024 5:22 pm

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Private Employees Salary: सरकार भी चिंतित…….’प्राइवेट सेक्टर को जमकर हो रहा मुनाफा, फिर भी नहीं बढ़ रही कर्मचारियों की सैलरी……

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Private Employees Salary Hike: हाल ही में सामने आए जुलाई से सितंबर तक के जीडीपी के आंकड़ों ने केंद्र सरकार की चिंता बढ़ा दी है। इस तिमाही में जीडीपी महज 5.4 प्रतिशत रही। इस मामले में नीति निर्माताओं ने यह चिंता बढ़ाई है कि पिछले चार साल में 4 गुना से ज्यादा के इजाफे के बावजूद कॉरपोरेट्स में सैलरी में उस स्तर की बढ़ोतरी नहीं है।

कॉरपोरेट बोर्डरूम और प्रमुख आर्थिक मंत्रालयों के बीच प्राइवेट कर्मचारियों की सैलरी को लेकर काफी चर्चा है। यह चर्चा इसलिए है क्योंकि फिक्की और क्वेस कॉर्प लिमिटेड द्वारा सरकार के लिए तैयार की गई रिपोर्ट में निजी कंपनियों के मुनाफे और कर्मचारियों की सैलरी को लेकर चौंकाने वाले बात पता चली है।

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प्राइवेट कर्मचारियों की सैलरी कितनी बढ़ी?

फिक्की से लेकर क्वेस कॉर्प की रिपोर्ट में पता लगा है कि 2019 और 2023 के बीच छह क्षेत्रों में कंपाउंड वार्षिक वेतन वृद्धि दर इंजीनियरिंग, विनिर्माण, प्रक्रिया और बुनियादी ढांचा (EMPI) कंपनियों के लिए 0.8 प्रतिशत रहा, जबकि FMCG कंपनियों में सैलरी का इजाफा महज 5.4 प्रतिशत के बीच रहा।

कर्मचारियों के लिए स्थिति इसलिए बदतर हुई है, क्योंकि उनकी बेसिक सैलरी में या तो मामूली बढ़ोतरी हुई है, या फिर मुद्रास्फीति के लिहाज से नेगेटिव है। 2019-20 से 2023 तक के पांच वर्षों में रिटेल महंगाई दर 4.8, 6.2, 5.5, 67, और 5.4 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि सैलरी के आंकड़े दोनों ही प्रमुख संस्थाओं ने जारी कर दिए हैं।

कर्मचारियों की सैलरी ने बढ़ाई टेंशन

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन ने कॉर्पोरेट सम्मेलनों के अपने दो संबोधनों में फिक्की-क्वेस रिपोर्ट का उल्लेख किया, और सुझाव दिया कि भारतीय उद्योग जगत को अपने भीतर झांकने की जरूरत है, और इसमें बड़े बदलाव करने की जरूरत है।

सरकार के सूत्रों ने कहा कि कमज़ोर आय स्तर, शहरी क्षेत्रों में कम खपत का एक कारण था। इंडियन एक्सप्रेस को सरकारी सूत्रों ने बताया कि कोविड के बाद, दबी हुई मांग के साथ खपत बढ़ी, लेकिन धीमी वेतन वृद्धि ने कोविड से पहले के चरण में पूर्ण आर्थिक सुधार के बारे में चिंताओं को सामने ला दिया है।

प्राइवेट सेक्टर के किस क्षेत्र में कितना इजाफा?

फिक्की-क्वेस सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में तो नहीं है, लेकिन एक अखबार से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि 2019-23 के दौरान मजदूरी के लिए चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) EMPI क्षेत्र के लिए सबसे कम 0.8 प्रतिशत रही है। FMCG क्षेत्र में यह सबसे अधिक 5.4 प्रतिशत रहा।

BFI यानी बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं, बीमा क्षेत्र में काम करने वाले निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए सैलरी में 2019-23 के दौरान 2.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ। इसके अलावा रीटेल में 3.7 प्रतिशत; आईटी में 4 प्रतिशत; और लॉजिस्टिक्स में 4.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो कि 5 साल के महंगाई दर के आंकड़ों के लिहाज से तो ये नेगेटिक का संकेत ही देता है।

मुनाफे और आय के बीच हो संतुलन

2023 में FMCG क्षेत्र के लिए औसत वेतन सबसे कम 19,023 रुपये होगा, और 2023 में IT क्षेत्र के लिए सबसे अधिक 49,076 रुपये होगा। 5 दिसंबर को एसोचैम के भारत @100 शिखर सम्मेलन में आर्थिक सलाहकार नागेश्वरन ने कहा कि मुनाफे के रूप में पूंजी में जाने वाली आय के हिस्से और वेतन के रूप में श्रमिकों को मिलने वाली आय के हिस्से के बीच बेहतर संतुलन होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि इसके बिना, कॉर्पोरेट्स के अपने उत्पादों को खरीदने के लिए अर्थव्यवस्था में पर्याप्त मांग नहीं होगी। दूसरे शब्दों में श्रमिकों को भुगतान न करना, या पर्याप्त संख्या में श्रमिकों को काम पर न रखना, वास्तव में कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए आत्मघाती या हानिकारक होगा।

प्राइवेट सेक्टर्स की कंपनिंयों का हुआ 4 गुना मुनाफा

केंद्र सरकार के आर्थिक सलाहकार ने कहा कि पिछला उच्चतम स्तर मार्च 2008 में सकल घरेलू उत्पाद (कर के बाद लाभ) का 5.2 प्रतिशत था। वह तेजी का दौर था लेकिन कोविड के बाद और बेहद कठिन वैश्विक माहौल में 2024 में 4.8 प्रतिशत तक पहुंचने में सक्षम होना, अहम है जबकि 2008 में वैश्विक विकास का माहौल बेहद अनुकूल था। इसका मतलब है कि मुनाफा बिल्कुल प्रभावशाली रहा है। पिछले चार वर्षों में वृद्धि 4 गुना रही, भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र के मुनाफे में चार गुना वृद्धि हुई।

भारत में बढ़ सकती है आर्थिक असमानता

सरकार में चल रही चर्चाओं के जानकार भारतीय उद्योग जगत के एक विश्लेषक ने इस बात को परिप्रेक्ष्य में रखते हुए कहा कि विकास के इस व्यापक आर्थिक चरण में भारत में असमानता में वृद्धि होना निश्चित है।

नाम न बताने की शर्त पर एक विश्लेषक ने कहा कि महामारी ने समस्या को और बढ़ा दिया है; हम महामारी-पूर्व विकास पथ से 7 प्रतिशत पीछे हैं। आप इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते कि भारत में वर्कफोर्स में वृद्धि बहुत मज़बूत है। इसलिए हमारी अर्थव्यवस्था उस स्तर से एक साल पीछे है जहाँ उसे होना चाहिए, और हमारे पास श्रम का एक अतिरिक्त वर्ष है।

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