अयोध्या: 2000 साल पहले की बात है, जब अयोध्या की एक राजकुमारी सूरीरत्ना समुद्र में 4500 किलोमीटर का सफर करके अपने सपनों के राजकुमार से मिलने कोरिया पहुंची। उसने कोरिया के एक राजा किम सूरो से शादी कर ली, जिसने गया यानी करक साम्राज्य की स्थापना की। इसके बाद राजकुमारी सूरीरत्ना को रानी ह्यू ह्वांग-ओके नाम से जाना गया। इतिहासकार बताते हैं कि भले ही राजकुमारी और राजकुमार के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, मगर आज कोरिया में दोनों के 60 लाख से ज्यादा वंशज हैं, जिनकी संख्या पूरी कोरियाई आबादी का करीब 10 फीसदी बैठती है। तब से आज तक कोरयाई लोग अयोध्या को अपना ननिहाल मानते हैं। 2019 में राजकुमारी सूरीरत्ना की याद में भारत और कोरिया ने संयुक्त रूप से डाक टिकट जारी किया था।
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प्राचीन इक्ष्वाकु वंश से जोड़ा जाता है राजकुमारी सूरीरत्ना का नाता
राजकुमारी सूरीरत्ना को प्राचीन इक्ष्वाकु वंश से जोड़ा जाता है। बौद्ध भिक्षु और इतिहासकार येईओन के कोरियाई ऐतिहासिक ग्रंथ सैमगुक यूसा के अनुसार, राजकुमारी सूरीरत्ना आयुता यानी अयोध्या से आज के दक्षिण कोरिया आई थीं। वह गिमहे के किंग सूरो की रानी बन गईं, जिसने प्राचीन करक साम्राज्य (पहली सदी ईसा पूर्व) की स्थापना की, जो कोरिया का एक शुरुआती प्रांत हुआ करता था।
16 साल की उम्र में अयोध्या से निकली थीं राजकुमारी
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राणा पीबी सिंह और दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनवर्सिटी के सर्वेश कुमार ने अयोध्या और कोरिया के सांस्कृतिक संबंधों पर एक रिसर्च की है, जिसका नाम है-इंटरफेसिंग कल्चरल लैंडस्केप्स बिटवीन इंडिया एंड कोरिया: इलस्ट्रेटिंग द मेमोरियल ऑफ कोरियन क्वीन ह्यू इन अयोध्या। इसमें कहा गया है कि चौथी सदी ईसा पूर्व में कोरिया के गिमहे शहर के किंग सूरो से शादी करने के लिए जब अयोध्या की राजकुमारी घर से निकलीं तब वह 16 साल की थीं। उस वक्त अयोध्या को साकेत कहा जाता था। दरअसल, राजकुमारी सूरीरत्ना के माता-पिता को एक सपना आया था, जिसमें एक दिव्य आवाज ने उन्हें अपनी बेटी को गिमहे भेजने का निर्देश दिया था। वजह ये थी कि गिमहे के राजा सूरो को अपने लिए एक उपयुक्त रानी की तलाश थी।
अयोध्या और कोरिया में जेनेटिक कनेक्शन, राजकुमारी की 10 संतानों में 9 बने बौद्ध भिक्षु
कोरिया की हैनयांग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर किम बाईयुंग मो के अनुसार अयोध्या और कोरिया में जेनेटिक कनेक्शन था। वह तो यहां तक कहते हैं कि कोरिया की दो-तिहाई आबादी करक वंश से जुड़ी है, जो राजकुमारी सूरीरत्ना और राजा सूरो के वंशज हैं। उनके अनुसार, दोनों से 10 संतानें हुईं, जिनमें से 9 तो बौद्ध भिक्षु बन गए। तभी से कोरियाई लोग अयोध्या को अपना ननिहाल मानते हैं।
अयोध्या की सिस्टर सिटी बनी गिमहे
27 फरवरी, 2000 को गिमहे शहर के मेयर सोंग युन बोक का प्रतिनिधिमंडल भारत आया। उसने अयोध्या को गिमहे की सिस्टर सिटी बनाने की वकालत की। इसके बाद गिमहे में राजकुमारी सूरीरत्ना की याद में गिमहे में एक स्मारक बनाया गया। 2000 में ही कोरियाई सरकार ने अयोध्या को गिमहे की सिस्टर सिटी घोषित कर दिया। इस स्मारक पर लिखा है कि क्वीन ह्यू सरयू नदी के किनारे बसी अयोध्या की राजकुमारी थीं। उनके पिता अयोध्या के राजा थे। राजकुमारी समुद्र की यात्रा करके दक्षिणी कोरिया के साम्राज्य करक पहुंचीं और राजा सूरो से शादी कर ली थी।
राजकुमारी ने कोरियाई संस्कृति में मछली को बनाया शुभ का प्रतीक
ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने अपने 24 अवतारों में पहला अवतार मत्स्य यानी मछली रूप में लिया था। वह 21वें अवतार में राम के रूप में अयोध्या में जन्मे थे। इसीलिए मछली को भारत में शुभ मना जाता है। कहा जाता है की राजकुमारी सूरीरत्ना ने ही दक्षिण कोरियाई संस्कृति में मछली को स्थापित किया। आज कोरियाई घरों में मछली शुभ प्रतीक है। वहां के राजकीय चिन्ह में भी मछली है।
1996 में भी आया था एक कोरियाई प्रतिनिधिमंडल
कोरिया टाइम्स के स्तंभकार चो चोंग-डे ने इस किंवदंती पर दक्षिण कोरिया में शोध के बारे में लिखा है कि भारत-कोरिया मित्रता 48 ईस्वी में शुरू हुई।अयोध्या के राजवंश के सदस्य बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्रा के अनुसार, 1996 में इंजे विश्वविद्यालय का एक प्रतिनिधिमंडल रानी ह्यू की वंशावली का पता लगाने के लिए अयोध्या पहुंचा था।