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December 13, 2024 9:06 am

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Monetary Policy: क्या घटेगी आपकी EMI……..’रेपो रेट पर आरबीआई का फैसला कल……

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Monetary Policy : भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने बुधवार को द्विमासिक मौद्रिक नीति पर विचार-विमर्श शुरू किया। खुदरा मुद्रास्फीति के केंद्रीय बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर होने के कारण प्रमुख नीतिगत दर पर कोई बदलाव नहीं होने के आसार हैं। ऐसे में आपको सस्ते लोन और ईएमआई कम होने का अभी और इंतजार करना पड़ेगा।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकान्त दास की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) में लिए गए फैसलों की घोषणा शुक्रवार 6 दिसंबर को की जाएगी। दास अपने मौजूदा कार्यकाल की आखिरी एमपीसी बैठक की अध्यक्षता कर रहे हैं। उनका कार्यकाल 10 दिसंबर को खत्म हो रहा है।

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सरकार ने रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी दी हुई है। रिजर्व बैंक ने फरवरी 2023 से रेपो यानी अल्पकालिक ब्याज दर को 6.5 प्रतिशत पर बनाये रखा है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इसमें 2025 में ही कुछ ढील मिल सकती है।

रेपो रेट में बदलाव अप्रैल 2025 में होने की संभावना

एसबीआई की एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि हमें चालू वित्त वर्ष के दौरान दरों में कटौती की उम्मीद नहीं है। पहली दर में कटौती तथा रुख में और बदलाव अप्रैल 2025 में होने की संभावना है। आरबीआई ने खाद्य मुद्रास्फीति के जोखिम के बीच अपनी पिछली द्विमासिक समीक्षा (अक्टूबर) में भी रेपो दर को नहीं बदला।

नीति निर्माण में खाद्य मुद्रास्फीति एक जटिल मुद्दा

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अंशकालिक सदस्य नीलेश शाह ने बुधवार को कहा कि नीति निर्माण में खाद्य मुद्रास्फीति को शामिल किया जाए या नहीं, इस पर बहस एक जटिल मुद्दा है। उन्होंने सवाल किया कि क्या हम संख्या की सही गणना कर रहे हैं।

मुद्रास्फीति के दायरे में भी बदलाव करना होगा

उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि आरबीआई को दिए गए 2-6 प्रतिशत मुद्रास्फीति के दायरे में भी बदलाव करना होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 80 करोड़ भारतीयों को मुफ्त भोजन दिया जाता है। यह लागत हमारे राजकोषीय घाटे से अधिक है। क्या इसका श्रेय खाद्य मुद्रास्फीति को जाता है। खाद्य मुद्रास्फीति का मुद्दा बहुत जटिल है।

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने जुलाई में नीति निर्माण से खाद्य मुद्रास्फीति को बाहर रखने की वकालत की थी, जिससे नीतिगत हलकों में तीखी बहस छिड़ गई और आरबीआई ने इस तरह के किसी भी कदम का विरोध किया।

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