कितने विरोधाभास हैं – देश की अर्थव्यवस्था का आकार दुनिया में पांचवें स्थान पर है, दावा है जल्दी ही यह तीसरे स्थान पर पहुँच जाएगी और दूसरी तरफ देश की 81 करोड़ से अधिक आबादी सरकार द्वारा मुफ़्त में दिए जा रहे 5 किलो अनाज पर जिंदा है। जिन्हें अनाज मुफ़्त मिल रहा है, उन्हें यह मुफ़्त अनाज वर्ष 2020 से लगातार मिल रहा है। भले ही यह आंकड़ा सत्ता और दलाल मीडिया को एक आर्थिक उपलब्धि के तौर पर नजर आता हो, पर मुफ़्त अनाज के संदर्भ में स्पष्ट है कि मोदी सरकार भी मानती है कि देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था का फायदा कम से कम इन 81 करोड़ से अधिक लोगों को नहीं मिल रहा है। फिर यह विकास कैसा है, गरीबी घटाने के दावे किस आधार पर हैं और विकसित भारत का शोर किसलिए है?
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स्वर्गीय प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के समय शुरू हुए देश के विकास को विपरीत दिशा में ले जाने में जितना योगदान मोदी सरकार का है, उससे कहीं अधिक जिम्मेदार अडानी और अंबानी के स्वामित्व वाली मेनस्ट्रीम मीडिया है, जिसने वर्षों से जनता तक देश की हकीकत को पहुँचने नहीं दिया है। सत्ता और मीडिया ने जनता को विकास का मतलब कल्पित सनातनी देश, ध्रुवीकरण, बड़े इन्फ्रस्ट्रक्चर परियोजनाओं को ही बताया है, और अब तो जनता भी इसे ही अपनी नियति मान चुकी है।