आदिवासी मीणा समुदाय की डॉ. हीरा मीणा और डॉ. गौतम कुमार मीणा की बेटी आकांक्षा और युनाइटेड इंश्योरेंस के उप महाप्रबंधक रघुनाथ सिंह मीणा जी व पूनम मीणा जी के बेटे प्रतीक सिंह का विवाह-शादी-मडमिंग मुठवापोय तिरू. के. पी. प्रधान के द्वारा आदिवासी रीति-रिवाजों और पुरखा परम्पराओं के साथ गौधूली बैला में सम्पन्न करवाया गया। आदिवासियत की अनूठी पहल के तहत पहली बार इस विवाह में देशभर के 22 राज्यों के सैकड़ों आदिवासी समुदाय के सगाजनों, मातृशक्तियों ने सांस्कृतिक महोत्सव में सहभागिता दर्ज की हैं। मीणा समुदाय में टोटम, गणचिन्ह, कुल गोत, धराड़ी पुरखा परम्परा को सर्वोच्च मानकर जाळ, आम और महुवा वृक्ष के समक्ष जल (पानी) का कलश और दीपक के सान्निध्य में सात भांवर आदिवासी वचन परम्परा निभाई गई। विवाह में इस्तेमाल किया गया लाड़ा-लाड़ी के गढ़जोड़ का सफेद कपड़ा, कच्ची हल्दी में पीला रंगा गया। गुरू मुखिया मुठवापोय के. पी. प्रधान तिरूमाय सुषमा प्रधान, लाल बिहारी गोंड और उनकी टीम आदि सगाजनों के साथ-साथ पारिवारिक और सामाजिक रिश्तेदारों की सामूहिक उपस्थिति में आदिवासियत की अनूठी मिसाल कायम की है। राष्ट्रीय स्तर के चर्चित विवाह को आदिवासी रीति-रिवाजों के साथ दहेज मुक्त बनाने में रघुनाथ सिंह, प्रतीक सिंह, पूनम मरमट और परिजनों का अतुलनीय योगदान रहा हैं।
विवाह का निमंत्रण पत्र को मीणी भाषा में और संस्कृति के साथ पुरखा परम्पराओं और प्रकृति को सर्वोच्च महत्व देकर तैयार किया। कुलमाता सेवड़ माता माई गॉव चिताणू, नर मछली गणचिन्ह, गोत वृष जाळ धराड़ी और ध्याड़ी माई पूजा कक्ष में प्रकृति तत्व सूर्य, चंद्रमा, मोर, सांथ्या-स्वथिक, लाड़ा-लाड़ी का आदिवासी प्रतीक चिन्ह लगाया गया। ब्याव के नौते के मुख्य पृष्ठ पर मीणा गणचिन्ह सफेद झण्डे में नर मछली अंकित की और विशेष आग्रह में मीणा संस्कृति के विवाह में शामिल होने वाले सभी सगाजनों को मीणा आदिवासी की परम्परागत वेशभूषा (महिलाओं को लहंगा, लूगड़ी और चॉदी के गहणें) पुरूषों को (धोती बुरसेट, साफा, धोळा तौलिया और आभूषण) के साथ इस महोत्सव में सहभागी होने का निमंत्रण दिया।