रूस और यूक्रेन के युद्ध को तीन साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन इस संघर्ष का समाधान अब तक नहीं निकला है. इसी बीच संयुक्त राष्ट्र (UN) में यूरोपीय संघ और यूक्रेन ने रूस की निंदा से जुड़ा एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें रूस को आक्रामक देश बताते हुए उसकी सेनाओं को यूक्रेन से हटाने की मांग की गई. लेकिन इस बार इस प्रस्ताव पर अमेरिका ने रूस के समर्थन में वोट दिया, जिससे वैश्विक राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला.
इस मतदान में अमेरिका, रूस, बेलारूस और उत्तर कोरिया ने यूरोपीय संघ के प्रस्ताव के विरोध में वोट डाला. यह बदलाव अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के यूरोप के प्रति कड़े रुख और पुतिन के साथ बढ़ती नजदीकियों को दिखाता है. ट्रंप के सत्ता में लौटने के बाद यह अमेरिकी नीति में एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है.
अमेरिका अब रूस के साथ है?
अमेरिका का इस प्रस्ताव का विरोध करना ट्रंप की रूस समर्थक नीति को दर्शाता है. ट्रंप प्रशासन पहले भी यूरोपीय देशों से बढ़ते मतभेद दिखा चुका है.
भारत ने फिर से बनाया तटस्थ रुख
इस प्रस्ताव पर 93 देशों ने समर्थन दिया, 18 देशों ने विरोध किया, जबकि 65 देशों ने मतदान से परहेज किया. भारत ने भी अपनी तटस्थ नीति को जारी रखते हुए वोटिंग से दूरी बनाई. भारत पहले भी रूस विरोधी प्रस्तावों से बचता रहा है और कूटनीतिक समाधान का समर्थन करता है. भारत चाहता है कि रूस और यूक्रेन बातचीत से समाधान निकालें.
ट्रंप और पुतिन की नजदीकियां बढ़ीं?
इसी बीच खबर है कि डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से सीधे बातचीत शुरू कर दी है. ट्रंप का फोकस यूक्रेन से 500 बिलियन डॉलर मूल्य की दुर्लभ खनिजों की डील करने पर है, ताकि अमेरिका द्वारा युद्ध में खर्च की गई राशि की भरपाई हो सके.
इसके अलावा, हाल ही में सऊदी अरब में रूस और अमेरिका के बीच एक अहम बैठक हुई, जिसमें यूक्रेन को आमंत्रित नहीं किया गया. इससे यह साफ होता है कि अमेरिका अब रूस से सीधे संवाद करने की रणनीति अपना रहा है और यूक्रेन को दरकिनार किया जा रहा है.
