L K Advani Admitted to Apollo Hospital: डिस्चार्ज होने के करीब एक महीने बाद वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को मंगलवार को फिर से दिल्ली के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया। मामले से जुड़े सूत्रों के अनुसार, 96 वर्षीय आडवाणी की हालत स्थिर है और उन्हें निगरानी में रखा गया है।
आडवाणी को न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. विनीत सूरी की देखरेख में भर्ती कराया गया है। पिछले महीने अपोलो अस्पताल में भर्ती होने से कुछ दिन पहले आडवाणी को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भी भर्ती कराया गया था।
आडवाणी 2002 से 2004 तक भारत के उपप्रधानमंत्री तथा 1999 से 2004 तक केंद्रीय गृहमंत्री रहे। मार्च में आडवाणी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनके आवास पर देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया था। इस समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह , गृह मंत्री अमित शाह और आडवाणी के परिवार के सदस्य शामिल हुए थे। पीएम मोदी ने तीसरी सरकार बनाने से पहले उनसे मुलाकात भी की थी।
आडवाणी को इसी साल मिला भारत रत्न
आडवाणी को इसी साल 30 मार्च को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान पीएम मोदी ने किया था। तब पीएम ने सोशल मीडिया पर लिखा था– मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। मैंने भी उनसे बात की और इस सम्मान से सम्मानित होने पर उन्हें बधाई दी। हमारे समय के सबसे सम्मानित राजनेताओं में से एक, भारत के विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उनका जीवन जमीनी स्तर पर काम करने से शुरू होकर हमारे उपप्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा करने तक का है। उन्होंने हमारे गृह मंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में भी अपनी पहचान बनाई।
आडवाणी की रथ यात्रा और बाबरी विध्वंस
90 के दशक में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए चलाए गए आंदोलन में लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका प्रमुख थी। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने राम मंदिर को अपना मुद्दा आडवाणी की अध्यक्षता में ही बनाया था। एक वातानुकूलित टोयोटा गाड़ी को रथ का रूप देकर आडवाणी ने 25 सितंबर, 1990 (पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती) को गुजरात के सोमनाथ से ‘राम रथ यात्रा’ निकाली थी।
रथ यात्रा का मकसद 10,000 किमी की यात्रा तय कर 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था, जहां कारसेवक कारसेवा करते। रथ यात्रा के दौरान आडवाणी ने एक जगह भाषण देते हुए कहा था, “लोग कहते हैं कि आप अदालत का फैसला क्यों नहीं मानते। क्या अदालत इस बात का फैसला करेगी कि यहां पर राम का जन्म हुआ था या नहीं? आप से तो इतनी ही आशा है कि बीच में मत पड़ो, रास्ते में मत आओ, क्योंकि ये जो रथ है लोक रथ है, जनता का रथ है, जो सोमनाथ से चला है और जिसने मन में संकल्प किया हुआ है कि 30 अक्टूबर (1990) को वहां पर पहुंचकर कारसेवा करेंगे और मंदिर वहीं बनाएंगे। उसको कौन रोकेगा? कौन सी सरकार रोकने वाली है? यह मामला ऐसा है, जिसका समय पर सही निर्णय ले लेना चाहिए। मेरे साथ एक बार जोर से कहिए सियावर रामचंद्र की जय” जाहिर है आडवाणी उसी स्थान पर राम मंदिर का निर्माण चाहते थे जहां बाबरी मस्जिद खड़ी थी।
आडवाणी की यात्रा जिधर से भी निकली, उधर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। यात्रा के दौरान आडवाणी खुद जगह-जगह पर त्रिशूल, कुल्हाड़ी, तलवार और धनुष-बाण के साथ फोटो खिंचवा रहे थे।
इन सब के बावजूद आडवाणी अपनी रथ के साथ अयोध्या नहीं पहुंच पाए। उन्हें पहले ही बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन उनके समर्थक अयोध्या पहुंचे। कर्फ्यू के बाद भी शहर में दाखिल होने की कोशिश की। कुछ ने बाबरी के ऊपर भगवा भी फहरा दिया। भीड़ को नियंत्रित करने और बाबरी को बचाने के लिए राज्य की मुलायम सिंह यादव सरकार ने गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें कुछ कारसेवक मारे गए। बाबरी बच गई। लेकिन 6 दिसंबर 1992 को लालकृष्ण आडवाणी समेत तमाम वरिष्ठ भाजपा नेताओं और साधु-संतों की मौजूदगी में बाबरी मस्जिद को अवैध तरीके से ढाह दिया गया.
उस वक्त के कई नेताओं की जीवनी और आत्मकथा से पता चलता है कि विजयाराजे सिंधिया, आडवाणी, अशोक सिंघल आदि ने प्रधानमंत्री नरसिंह राव से वादा किया था कि बाबरी को कोई क्षति नहीं होगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता कल्याण सिंह ने तो सुप्रीम कोर्ट में बाबरी की सुरक्षा की गारंटी दी थी। लेकिन न कोई वादे पर खड़ा उतरा, न गारंटी सही साबित हुई।