जयपुर – 23 अक्टूबर। जयपुर के स्थानीय बहाई समुदाय द्वारा बहाई धर्म के अग्रदूत दिव्यात्मा बाब और संस्थापक युगावतार बहाउल्लाह की युगल जयन्ती के अवसर पर 23 अक्टूबर की संध्या बापू नगर स्थित बहाई भवन पर पूरे उल्लास के साथ विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए और प्रार्थनाएं की गईं।
उक्त जानकारी देते हुए स्थानीय बहाई आध्यात्मिक सभा के सचिव श्री अनुज अनन्त ने बताया कि बहाई शिक्षाएं यह मानती हैं कि ईश्वर एक है, सभी अवतार एक ही ईश्वर की ओर से प्रकट हुए हैं और यह सम्पूर्ण पृथ्वी एक राष्ट्र है। श्री अनन्त ने कहा कि मात्र दो शताब्दियों में, बहाई धर्म के संदेश का पूरी दुनिया, खास तौर पर भारत, में तेजी से प्रसार हुआ है।
बहाई विश्व धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह का जन्म 1817 में तेहरान (ईरान) के एक शाही घराने में हुआ था किंतु राजसी जीवन का त्याग करके उन्होंने गरीबों और वंचितों की सेवा में अपना जीवन लगा दिया। उन्होंने बहाई धर्म के रूप में एक नए धर्म की स्थापना की जिसका ईरान के मुल्लाओं और शासकों ने घोर विरोध किया। बहाउल्लाह को तेहरान की एक कुख्यात जेल “सियाह–चाल” में डाल दिया गया और उन्हें घोर यातनाएं दी गईं। अगले 40 वर्षों तक उन्हें लगातार एक देश से दूसरे देश निष्कासित किया जाता रहा और कठोर कारावास में रखा गया जहां 29 मई 1892 को वे अक्का (वर्तमान इज़रायल में) स्वर्ग सिधार गए।
एक प्रगतिशील मानव समाज के लिए बहाउल्लाह की शिक्षाओं में जीवन के सभी क्षेत्रों के लिए विधान और अध्यादेश शामिल हैं। उनकी प्रमुख शिक्षाओं में शामिल हैं: सभी धर्मों की मूल एकता, सत्य की स्वतंत्र खोज, विज्ञान और धर्म में तालमेल, स्त्री–पुरुष की समानता, अनिवार्य विश्वव्यापी शिक्षा, हर तरह के पूर्वाग्रह का अंत, विश्व शांति, अत्यधिक गरीबी और अमीरी का अंत तथा परामर्श के माध्यम से सभी बातों का शांतिपूर्ण समाधान।
दूसरी ओर, दिव्यात्मा बाब वह “अग्रदूत” अवतार थे जिन्होंने बहाउल्लाह के आगमन की पूर्वघोषणा की थी। बाब का जन्म ईरान के शीराज शहर में 1819 में हुआ था। उनका मुख्य उद्देश्य लोगों को इस तथ्य के प्रति जागरूक करना था कि मानव इतिहास का एक नया अध्याय शुरु हो चुका है – एक ऐसा युग आ चुका है जबकि समस्त मानवजाति की एकता स्थापित होगी और आध्यात्मिक एवं भौतिक समृद्धि से युक्त एक नई विश्व सभ्यता जन्म लेगी। बाब ने अपने अनुयायियों को आदेश दिया कि वे पूरे देश में इस संदेश का प्रसार करें और लोगों को उस अवतार के आगमन के लिए तैयार करें।
बाब के संदेश ने हर तबके के लोगों के मन में आशा का संचार किया लेकिन कई मुल्ला तथा अन्य लोग बाब के बढ़ते हुए प्रभाव से आशंकित हो उठे। उन्होंने बाब की शिक्षाओं को अस्वीकार कर दिया तथा बाब और उनके अनुयायियों का विनाश करने पर उतारू हो गए। बाब के हजारों अनुयायियों – स्त्रियों, पुरुषों और बच्चों – को निर्ममतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया गया। लेकिन दुश्मनों के लाखों उपायों के बावजूद उनके बढ़ते हुए प्रभाव को रोका नहीं जा सका। बाब जहां भी गए, उस शहर के सभी लोग और अधिकारी उनके व्यक्तित्व से मोहित हुए और उनमें से बहुत से लोग उनके अनुयायी बन गए। बाब की लोकप्रियता बढ़ती चली गई और अंत में 9 जुलाई 1850 को तबरीज शहर में बाब को शहीद कर दिया गया।
युगल जन्मोत्सव के अवसर पर जयपुर बहाई भवन में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें प्रार्थनाओं के सस्वर पाठ के साथ ही गीतों, नृत्यों, वार्ताओं और अन्य दृश्य-श्रव्य आयोजनों की मोहक प्रस्तुति के साथ विद्वान वक्ता श्री नियाज़ आलम अनन्त द्वारा बाब एवं बहाउल्लाह के जीवन एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्थानीय सभा के अध्यक्ष श्री नेज़ात हकीकत ने की।







