जे डी मजीठिया ने मुंबई की कॉलेज लाइफ में खूब घमासान किए हैं। नरसी मोनजी कॉलेज छात्र संघ के महासचिव रहे। नाटकों में कॉलेज के समय से ही बतौर लेखक, अभिनेता और निर्देशक सक्रिय रहे। वहीं, उन्हें अपने पक्के साथी आतिश कपाड़िया मिले। और, कम लोगों को ही पता होगा कि निर्माता, निर्देशक, लेखक, अभिनेता जमना दास मजीठिया उर्फ जेडी मजीठिया का टेलीविजन जगत में सिक्का चलता है। बीते दो दशक में वह तीन दर्जन से ज्यादा धारावाहिक बना चुके हैं। जेडी से उनके दफ्तर में ये खास बातचीत की ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने।
बहुत दिन बाद आप लेखन की दुनिया में लौटे और ऐसा लौटे कि आपके धारावाहिक ‘वागले की दुनिया’ ने हजार एपिसोड का नया रिकॉर्ड बना दिया?
एक्ट्रेस बोलीं- ये बहुत अजीब था……..’कपिल शर्मा ने किया था सुमोना को कॉमेडी शो से आउट?
इस धारावाहिक की कहानी बहुत दिलचस्प है। हम सोनी चैनल गए थे उनको कुछ कहानियां सुनाने। बहुत शानदार कहानियां थी और बहुत जानदार कॉन्सेप्ट। मैं घर लौटा तो रात में चैनल के हेड नीरज व्यास का फोन आया कि ‘वागले की दुनिया’ के बारे में क्या ख्याल है? मैं तो उछल गया। लेकिन, मन की उमंगें काबू में कर मैंने उनसे दो दिन का समय मांगा।
फिर..?
फिर मैंने अपने साथी आतिश कपाड़िया को फोन किया। दो तीन विचार उनके पास थे, एक दो विचार मैंने जुटाए। हमने इस पर काम किया और इस धारावाहिक को आगे बनाने के अधिकार हासिल किए। सुमित राघवन से भी इस बीच बात की और सब कुछ जमाकर हम चैनल पहुंचे। हमारा काम उन्हें बहुत पसंद आया और इस तरह से ये धारावाहिक 8 फरवरी 2021 से शुरू हो गया।
टेलीविजन में लेखक का काम ऐसे समय में कितना महत्वपूर्ण रह गया है जब हर हफ्ते टीआरपी को देखकर चैनल ही कहानी बदल देते हों?
टेलीविजन लेखक का माध्यम था और लेखक का ही माध्यम रहेगा। लेकिन, इसके लिए समय मिलना बहुत जरूरी है। धारावाहिक की मांग के अनुसार योजना बनाना जरूरी है। निर्माता और चैनल की क्रिएटिव टीम के बीच तालमेल बहुत जरूरी है। हमारे पास आज की तारीख में 25 एपिसोड का बैकअप है और पटकथा अगले तीन महीने की तैयार है, चैनल से मंजूरी के साथ।
लेकिन, लेखक भी तो अब होशियार हो चुके हैं, कितनी ईमानदारी आपको दिखती है इन दिनों नए धारावाहिकों के लेखन में?
मेरा ये मानना है कि लेखन में अगर दम होगा तो धारावाहिक अपना रास्ता ढूंढ ही लेगा, इसका उसके बजट से कोई लेना नहीं होता। लेकिन, दिक्कत ये है कि सब कुछ टीआरपी पर आधारित होने लगा है। लेखक सोचता है कि मेरा पास जो अच्छा विचार है उसे मैं धारावाहिक की अच्छी टीआरपी आने पर खर्च करूंगा, उसके पहले वह रेफरेंस से लेकर विचार डालता रहता है। ये सोच टेलीविजन के लिए घातक है।
