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September 24, 2025 6:31 pm

प्राकृतिक रंगों से स्वस्थ, सुंदर और सस्टेनेबल होली मनाने की पहल

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– जिम्मी एंड जनक मगिलिगन फाउंडेशन द्वारा ‘रंगोत्सव’ प्रशिक्षण कार्यशाला शुरू

इंदौर, 7 मार्च 2025। होली के त्योहार को स्वस्थ, सुंदर और पर्यावरण के अनुकूल बनाने के उद्देश्य से जिम्मी एंड जनक मगिलिगन फाउंडेशन फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट द्वारा इस साल भी विशेष ‘रंगोत्सव’ कार्यशाला का आयोजन किया गया है। यह प्रशिक्षण 7 से 12 मार्च तक चलेगा, जिसमें प्रतिभागी निःशुल्क भाग ले सकते हैं।

इस कार्यशाला का नेतृत्व पद्मश्री डॉ. जनक पलटा मगिलिगन कर रही हैं, जो प्रतिभागियों को सोलर कुकर्स की मदद से प्राकृतिक रंग बनाने की तकनीक सिखा रही हैं। इसमें पोई, टेसू, गुलाब, गेंदे, बोगनविलिया, संतरे के छिलके जैसे प्राकृतिक तत्वों का उपयोग किया जा रहा है, ताकि पूरी तरह सुरक्षित और जैविक रंग तैयार किए जा सकें।

प्राकृतिक रंगों के फायदे

कार्यशाला के पहले दिन देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के शिक्षा अध्ययनशाला के विद्यार्थियों ने केंद्र पर लगे विभिन्न प्राकृतिक पौधों का अवलोकन किया और सोलर ड्रायर में फूलों को सुखाने की प्रक्रिया को समझा। छात्रों ने अपने हाथों पर प्राकृतिक रंगों की खूबसूरती को महसूस किया और इसे बेहद उत्साहित करने वाला अनुभव बताया।

डॉ. जनक पलटा मगिलिगन ने प्रतिभागियों को बताया कि रासायनिक रंग त्वचा एलर्जी, आंखों की जलन और जल प्रदूषण का कारण बनते हैं, जबकि प्राकृतिक रंग न केवल सुरक्षित हैं, बल्कि त्वचा को निखारने का भी कार्य करते हैं। साथ ही, ये रंग पानी से आसानी से धुल जाते हैं, जिससे पानी की बचत भी होती है।

पुराने परंपरागत तरीकों की ओर वापसी

प्रशिक्षण के दौरान छात्रों ने पोई, टेसू और अंबाड़ी के फूलों से मात्र कुछ मिनटों में गाढ़े और चमकदार रंग बनते देखे। कई छात्रों ने इसे असली होली का अनुभव बताया।

विद्यार्थी प्रकाश ने कहा, “बचपन में मैंने पलाश के फूलों से होली खेली थी और अब वर्षों बाद उसी अनुभव को फिर से जीने का मौका मिला है।”

सुवनजीत ने पारंपरिक रूप से पलाश के पत्तों के उपयोग के बारे में जाना, जबकि श्रेया ने कहा, “मेरी दादी चुकंदर और गाजर से रंग बनाना सिखाती थीं, लेकिन आज पहली बार मैंने इसे खुद बनते देखा।”

सस्टेनेबल होली के लिए सामाजिक संदेश

विभागाध्यक्ष प्रो. लक्ष्मण शिंदे ने कार्यशाला के समापन पर कहा कि होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि प्रेम, समरसता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देती है। उन्होंने सभी से रासायनिक रंगों को छोड़कर प्राकृतिक रंग अपनाने और एक सुरक्षित, सस्टेनेबल होली मनाने की अपील की।

इस पहल के माध्यम से इंदौर एक बार फिर स्वास्थ्य, पर्यावरण और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने का उदाहरण पेश कर रहा है।

Sanjeevni Today
Author: Sanjeevni Today

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