द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान होलोकॉस्ट इतिहास का वो पन्ना है, जब दसियों लाख यहूदियों का उनकी धार्मिक पहचान के कारण, क़त्ल कर दिया गया था. और इन हत्याओं को ए़डोल्फ़ हिटलर की जर्मन नाज़ी पार्टी ने कराया. नाज़ियों के निशाने पर मुख्यत यहूदी थे और वही सबसे अधिक संख्या में इसका शिकार हुए. इस दौरान अपनी पहचान के कारण यूरोप में रहने वाले हर 10 में से 7 यहूदियों का क़त्ल कर दिया गया. नाज़ियों ने रोमा (जिप्सी) और विकलांगों समेत अन्य समूहों का भी क़त्ल किया. नाज़ियों पर समलैंगिकों और राजनीतिक विरोधियों समेत अन्य लोगों को गिरफ़्तार किया और उनके अधिकार छीनने के आरोप भी हैं. होलोकॉस्ट जेनोसाइड या जनसंहार का एक उदाहरण है. ये राष्ट्रीयता, नस्ल या धर्म के आधार पर एक बड़े समूह का जानबूझ कर गिया गया सामूहिक क़त्ल है.
नाज़ी कौन थे?
नाज़ी, नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (एनएसडीएपी) का संक्षिप्त नाम है.जर्मनी में इसकी स्थापना प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1919 में हुई थी. 1920 के दशक में इसकी लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ी जर्मनी युद्ध हार गया था और विजेता मुल्कों को उसे बहुत मात्रा में हर्ज़ाना देना पड़ा. यहां के अधिकांश लोग ग़रीब थे और उनके पास पर्याप्त नौकरियां नहीं थीं. ऐसे में जर्मन नागिरकों का नाज़ियों की ओर झुकाव का एक बड़ा कारण, एक बड़े बदलाव की उम्मीद थी. नाज़ी नस्लवादी थे और वो मानते थे कि उनकी कथित आर्यन नस्ल बाकियों से बेहतर और अधिक महत्वपूर्ण थी. नाज़ियों ने कहा कि आर्यन, ‘जर्मनिक’ लोग थे. वो मानते थे कि यहूदी, रोमा (जिप्सी), काले लोग और अन्य जातीय समूह आर्यों से कमतर थे. उनका ये भी मानना था कि जर्मनी अन्य देशों से उत्तम देश था और उसके लोग श्रेष्ठ थे, यानी, वे बाकी लोगों पर हावी हो सकते थे और उन्हें होना ही चाहिए. नाज़ी क्रूरता की हद तक यहूदी विरोधी थे. उनकी नीतियां और कार्रवाई उनकी इस भावना से प्रभावित थी. यही वजह थी कि जर्मनी ने द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले अन्य देशों पर आक्रमण किया और उन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की.
एडोल्फ़ हिटलर कौन था?
साल 1921 में एडोल्फ़ हिटलर नाम का एक व्यक्ति पार्टी के नेता बने. इसके बाद जनवरी 1933 में हुए चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते नाज़ियों को सरकार बनाने का निमंत्रण मिला. जिस पल पार्टी सत्ता में आई, एडोल्फ़ हिटलर ने डर और दहशत के मार्फ़त लोगों के जीवन के हर पहलू पर नाज़ी मूल्यों को थोपना और उन्हें नियंत्रित करना शुरू कर दिया. जब 1934 में जर्मन राष्ट्रपति हिंडनबर्ग की मौत हुई, हिटलर ने खुद को जर्मनी का सुप्रीम लीडर या फ़्यूरहर घोषित कर दिया. (आजकल फ़्यूहरर, एक ऐसे बेरहम नेता के नकारात्मक संदर्भ वाला शब्द बन गया है जिसने लोगों पर बर्बर शासन किया.)
हिटलर और नाज़ियों की तीन अहम बातें थीः
- आर्यन नस्ल की शुद्धता
- जर्मनी की महानता
- फ़्यूरहर यानी एडोल्फ़ हिटलर को आदर्श मानना
लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए पार्टी ने बड़े पैमाने पर प्रोपेगैंडा का इस्तेमाल किया. उन्होंने बड़ी-बड़ी रैलियां कीं और सार्वजनिक स्थलों पर नाज़ी संदेशों का प्रचार करने के लिए लाउडस्पीकर लगाए.
होलोकॉस्ट क्या है?
होलोकॉस्ट एक प्रक्रिया थी जो यहूदी लोगों से भेदभाव के साथ शुरू हुई और इसके परिणामस्वरूप दसियों लाख लोगों को उनकी पहचान के आधार पर मौत के घाट उतार दिया गया. यह ऐसी प्रक्रिया थी जो समय के साथ और बर्बर होती गई.
नाज़ी उत्पीड़न
1933 में हिटलर के सत्ता में आने के बाद, नाज़ियों ने उन लोगों का उत्पीड़न किया जिन्हें वे समाज के लिए योग्य नहीं मानते थे, इनमें अधिकांश यहूदी थे. उन्होंने यहूदियों के प्रति भेदभाव वाले क़ानून बनाए और उनके अधिकार छीन लिए. यहूदी लोगों को कुछ ख़ास जगहों पर जाने की इजाज़त नहीं थी और उनके कुछ ख़ास नौकरियों में जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया. उन्होंने कन्सन्ट्रेशन कैंप यानी यातना शिविर बनाने शुरू किए जहां वे उन लोगों क़ैद करते थे जिन्हें वो ‘राज्य का दुश्मन’ मानते थे. इन लोगों से वो जबरन काम भी करवाते थे. इस तरह का पहला कैंप म्युनिख के बाहर मार्च 1933 में ‘दख़ाउ’ के नाम से बना. 1933 से 1945 के बीच अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में नाज़ियों ने 40,000 से अधिक ऐसे कैंप बनाए.
कुछ यातना शिविर ऐसे थे जहां कैदियों से काम कराया जाता था, कुछ ट्रांज़िट कैंप थे जहां कैदियों की छंटाई होती थी और अन्य ऐसे कैंप थे जहां नाज़ी बड़ी संख्या में लोगों को मार सकते थे. इस तरह का पहला कैंप 1941 में बनाया गया जहां लोगों को मौत के घाट उतारा जाता था. इन कैंपों में बहुत सारे लोगों को अकारण गार्डों ने ही मार डाला, वहीं बड़ी संख्या में लोग वहां के अमानवीय हालात के कारण मारे गए. नाज़ियों ने हर व्यक्ति की ज़िंदगी को नियंत्रित करना शुरू कर दिया था. 1934 में मैलिशियस गॉसिप लॉ बनाया गया, जिसके तहत नाज़ी विरोधी चुटकुले सुनाना अपराध करार दिया गया था.
जर्मनी में जैज़ म्युज़िक प्रतिबंधित था. नाज़ी विचारों को शामिल करने के लिए पाठ्यपुस्तकों को फिर से लिखा गया. सड़क के चौराहों से लेकर किताबों तक, हर जगह हिटलर की तस्वीरें लगाई गईं और उन किताबों को नष्ट कर दिया गया जिन्हें नाज़ियों की पसंद के अनुरूप नहीं लिखा गया था. 1935 में 1,600 अख़बार बंद कर दिए गए. जो बचे थे उन्हें केवल उन लेखों को छापने की अनुमति दी गई जिसे नाजियों ने मंज़ूरी दी हो, या उनकी सहमति हो. उन्होंने युवाओं के लिए हिटलर यूथ (लड़कों के लिए) और बीडीएम (लड़कियों के लिए) नामक अनिवार्य ग्रुप बनाए, ताकि वे नौजवान नाज़ी बन सकें. उनसे ये उम्मीद की गई कि बड़े होने पर वो हिटलर को अपना आदर्श मानें. लड़कों को नाज़ी मूल्य सिखाए गए और जंग के लिए तैयार किया गया जबकि लड़कियों को खाना बनाना और सिलाई करने जैसे काम सिखाए गए.
क्रिस्टलनाख़्त और दसियों लाख लोगों का क़त्ल
9 नवंबर 1938 की तारीख़ महत्वपूर्ण है, जब यहूदी लोगों के ख़िलाफ़ रात में भयानक हिंसा हुई. इसे क्रिस्टलनाख़्त के नाम से जाना गया, जिसका मतलब है- ‘टूटे हुए कांच की रात’. उस रात दुकानों पर जो हमले हुए उसमें टूटे हुए कांच से पूरी सड़क ढंक गई थी, इसी कारण इस राम को क्रिस्टलनाख़्त कहा गया. इसमें 91 यहूदी लोग मारे गए और 267 यहूदी पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया गया. क़रीब 30,000 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया और उन्हें यातना शिविरों में भेज दिया गया. एक सितम्बर 1939 को जर्मनी ने पोलैंड पर हमला कर दिया, जिसे द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत माना जाता है. पोलैंड में यहूदी लोगों को चुनिंदा इलाकों, जिन्हें घेट्टो (यहूदी बस्ती) कहते थे, उनमें रहने को मजबूर किया गया. वहां उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता था और कई लोगों की अकारण हत्या कर दी जाती थी. यहूदी बस्तियों के हालात बहुत ख़राब थे, यहां साफ-सफाई न के बराबर थी और गंदगी भरी हुई थी. ऐसे में कई लोगों ने बीमारी और भुखमरी के कारण दम तोड़ दिया.
1940 के दशक की शुरुआत में नाज़ी, यूरोप की यहूदी आबादी से छुटकारा पाने का रास्ता तलाश रहे थे. उन्हें समूल नाश वाले कैंपों (एक्सटर्मिनेशन कैंप) का आइडिया आया, जिसमें वे बहुत सारे लोगों को मार सकते थे. इसे वे ‘फ़ाइनल सॉल्यूशन’ या अंतिम समाधान कहते थे. पहला एक्सटर्मिनेशन कैंप 1941 के अंत में पोलैंड में चेल्मनो के नाम से स्थापित किया गया था. नाजियों द्वारा नियंत्रित पोलैंड के इलाक़ों में कुल मिलाकर ऐसे छह कैंप थे: ऑशवित्ज़-बिरकेनाउ (सबसे बड़ा), बेल्ज़ेक, चेल्मनो, मज्दानेक, सॉबिबोर और ट्रेब्लिंका. नाज़ियों और उनके सहयोगियों द्वारा पोलैंड के बाहर, बेलारूस, सर्बिया, यूक्रेन और क्रोएशिया में भी कैंप स्थापित किए गए, जहाँ कई लाख लोग मारे गए. 1941 से 1945 के बीच इतने बड़े पैमाने पर लोगों की हत्याएं की गईं, जिसका दुनिया पहले कभी गवाह नहीं बनी थी. लाखों लोगों को पकड़ा गया और गाड़ियों में बिठाकर कैंपों में ले जाया गया, जहाँ उनसे जबरन काम कराया जाता था या मार दिया जाता था.
इन पीड़ितों में जो लोग शामिल थे, वो हैं- यहूदी, रोमा और सिंटी (जिप्सी), स्लाविक, ख़ासकर सोवियत संघ, पोलैंड और यूगोस्लाविया के लोग, विकलांग, काले लोग, यहोवाज़ विटनेसेस (ईसाई धर्म का एक पंथ) और नाज़ी विरोधी.
होलोकॉस्ट का अंत कैसे हुआ?
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सोवियत संघ, अमेरिका, ब्रिटेन और उनके सहयोगी देशों के सैनिक नाज़ियों के नियंत्रण वाले यूरोप में पहुंचे उन्होंने कैंपों को खोजना शुरू कर दिया. जैसे ही यह साफ़ हो गया कि नाज़ियों की हार होने वाली है, उन्होंने अपने अपराधों के सबूत मिटाने के लिए कैंपों को नष्ट करने की कोशिश की. उन्होंने पोलैंड में ज़िंदा बचे कैदियों को पैदल जर्मनी के कैंप में जाने को मजबूर किया. इन कठिन यात्राओं के दौरान कई कैदियों की मौत हुई.
हालाँकि, नाज़ियों ने जो किया था वे उसे छिपा नहीं सके और दुनिया को जनसंहार की व्यापकता के बारे में जानने में ज़्यादा समय नहीं लगा. माज्दानेक 1944 की गर्मियों में आज़ाद होने वाला पहला कैंप था. इन कैंपों को आज़ाद कराने लोग जो गए थे उन्होंने बााद में उन भयानक दृश्यों के बारे में बताया. आज़ाद किए जाने के बाद भी बहुत से लोगों की मौत हो गई क्योंकि उनकी सेहत काफी बिगड़ गई थी. बहुत से लोगों को अपने घरों में अजनबी रहते हुए मिले या अधिकांश लोगों को रहने के लिए जगह तक नहीं मिली. एक समस्या ये भी थी कि इतनी बड़ी संख्या में शरणार्थियों को लेने के लिए कोई देश तैयार नहीं था.
होलोकॉस्ट के लिए नाज़ियों को सज़ा मिली?
11 दिसंबर 1946 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने फै़सला सुनाया कि जनरसंहार अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत अपराध माना जाएगा. युद्ध ख़त्म होने से पहले एडोल्फ़ हिटलर ने आत्महत्या कर ली इसलिए उन्हें कठघरे में खड़ा करना संभव नहीं था. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के वर्षों में, नाज़ी हस्तियों पर उनके अपराधों के लिए मुक़दमा चलाया गया.
हाल ही में जुलाई 2015 में, एक जर्मन अदालत ने 94 वर्षीय ऑस्कर ग्रोइनिंग को दोषी ठहराया, जो ऑश्वित्ज़ में गार्ड थे. लेकिन हर किसी को इंसाफ़ की चौखट तक लाना असंभव नहीं है. युद्ध के बाद अधिकांश नाज़ी छिप गए और कभी नहीं पाए जा सके. कईयों की मौत उनका अपराध साबित होने से पहले हो गई.
होलोकॉस्ट को हम कैसे याद करते हैं?
अब होलोकॉस्ट के दौरान लोगों के साथ हुई बर्बरता और मौतों के बारे में दुनिया जान चुकी है. यह जनसंहार की भयावहता और इस हद तक पहुंचने के पीछे ज़िम्मेदार कुछ ख़ास व्यवहार का उदाहरण भी बन चुका है. लेकिन, होलोकॉस्ट इतिहास में हुआ एकमात्र जनसंहार नहीं है बल्कि कंबोडिया, रवांडा, बोस्निया और दारफुर में भी लाखों लोग अपनी पहचान की वजह से मारे गए हैं. हर साल 27 जनवरी को ब्रिटेन में लोग होलोकॉस्ट मेमोरियल डे मनाते हैं. यह दिवस इस दिन इसलिए मनाया जाता है क्योंकि सोवियत सेना के सैनिकों ने 1945 में इसी दिन सबसे बड़े नाज़ी यातना शिविर ऑश्वित्ज़ बिरकेनाउ को आज़ाद कराया था.
होलोकॉस्ट स्मृति दिवस होलोकॉस्ट के लाखों पीड़ितों की याद के लिए ही नहीं, बल्कि उन लोगों को भी याद करने के लिए है जो दुनियाभर में नफरत का शिकार हुए और अपनी पहचान के कारण जनसंहार में मारे गए. यह इस बात पर रोशनी डालता है कि व्यक्ति को अन्य लोगों की मान्यताओं और मतभेदों के प्रति सहिष्णु होना चाहिए, न कि लोगों का बहिष्कार करना चाहिए या नफ़रत का संदेश फैलाना चाहिए. यह होलोकॉस्ट जैसी घटनाओं को कभी न भूलने में भी हमारी मदद करता है ताकि हम इस तरह की घटनाओं को फिर से न होने दें.
होलोकॉस्ट मेमोरियल डे ट्रस्ट बताता है कि यह हर तरह के लोगों के लिए मतभेद भुलाकर “सुरक्षित और बेहतर भविष्य बनाने के लिए मिलकर काम करने” का दिन है.