अमेरिका भारत पर लगाए टैरिफ को लेकर लगातार नए-नए दावे कर रहा है. US ने पहले भारत पर 25% का टैरिफ लगाया था. लेकिन कुछ दिन बाद 25 प्रतिशत और जोड़कर इसे दोगुना कर दिया. अब भारत पर अमेरिका की तरफ से कुल 50% टैरिफ लगाया जा रहा है. ये नया 25% टैरिफ 27 अगस्त से लागू भी हो जाएगा. वहीं दूसरी तरफ, भारत और चीन के रिश्ते सुधरने की खबरें आ रही हैं.
चीन ने भारत के लिए कई ज़रूरी चीज़ों पर लगी एक्सपोर्ट की पाबंदियां हटा दी हैं. जैसे कि उर्वरक, रेयर अर्थ मिनरल्स, मैग्नेट और टनल बोरिंग मशीनों पर लगी रोक अब नहीं रहेगी. इससे दोनों देशों के बीच व्यापार को नई रफ्तार मिलने की उम्मीद है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत को अमेरिका को छोड़कर चीन से अच्छे रिश्ते बनाने चाहिए, या फिर अमेरिका से रिश्ते ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए? भारत को इनमेंं से किस देश के साथ ज्यादा मजबूत रिश्ते बनाने चाहिए ये सवाल हर किसी के दिमाग में घूम रहा है, खासकर जब बात आर्थिक फायदे, सुरक्षा और वैश्विक राजनीति की हो.
मैं उन कहानियों में विश्वास करती हूँ जो लोगों को छू जाएँ” — सानिया नूरैन
ऐसे में दो बड़े AI ग्रोक और डीपसीक ने इस पर अपनी राय दी है. और उनके जवाब सुनकर आप हैरान भी रह जाएंगे. दोनों ही AI मानते हैं कि भारत को अमेरिका के साथ रिश्ते गहरे करने पर ज्यादा जोर देना चाहिए, क्योंकि अमेरिका के साथ रिश्ता ज्यादा संतुलित फायदा देता है, जबकि चीन के साथ रिश्तों में ज्यादा रिस्क और असमानता है.
भारत को अमेरिका से दोस्ती मजबूत करनी चाहिए: ग्रोक
एलन मस्क के AI ‘ग्रोक’ का कहना है कि भारत आज की दुनिया में अमेरिका और चीन, दोनों के साथ संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है. यानी वो किसी एक का पक्ष नहीं ले रहा, बल्कि दोनों से अपने हिसाब से रिश्ता बनाए रखना चाहता है.
ग्रोक के मुताबिक, भारत को अमेरिका के साथ रिश्ते और मजबूत करने चाहिए. क्योंकि अमेरिका भारत को बराबरी का आर्थिक फायदा देता है, सुरक्षा में मदद करता है और चीन की बढ़ती चालों के खिलाफ साथ खड़ा होता है.
चीन से भारत को थोड़े समय का व्यापारिक फायदा तो मिलता है, लेकिन वहां खतरे ज़्यादा हैं. चीन के साथ रिश्ता बराबरी का नहीं है और भरोसे का भी नहीं.
ग्रोक का मानना है कि भारत जो “मल्टी-अलाइनमेंट” रणनीति अपना रहा है यानी सबके साथ अच्छे रिश्ते रखना, वो ठीक है लेकिन लंबी चलने वाली दोस्ती और भरोसे के लिए अमेरिका पर ज़्यादा भरोसा किया जा सकता है.
व्यापार में भी अमेरिका के साथ फायदा
भारत और अमेरिका के बीच 2024-25 में करीब 120 से 150 अरब डॉलर का व्यापार हो सकता है. इसमें भारत अमेरिका को ज़्यादा सामान बेचता है और कम मंगवाता है. भारत को यहां अच्छा-खासा फायदा होता है. भारत अमेरिका को हीरे, दवाएं और कपड़े जैसे सामान भेजता है. टैरिफ (अमेरिका का एक्स्ट्रा टैक्स) भले बढ़ा हो, लेकिन बातचीत से इसको सुलझाया जा सकता है.
अब बात करें चीन की, तो भारत और चीन के बीच करीब 136 अरब डॉलर का व्यापार है, लेकिन भारत को यहां बहुत बड़ा घाटा होता है. भारत चीन से भारी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक सामान और केमिकल्स मंगवाता है, लेकिन वहां ज्यादा कुछ बेच नहीं पाता. भारत का निर्यात बस 16 अरब डॉलर के आसपास है. इसलिए ग्रोक का साफ कहना है कि अमेरिका के साथ व्यापार संतुलित और फायदेमंद है, जबकि चीन के साथ व्यापार में नुकसान और दबाव दोनों है.
सर्विस सेक्टर में भी अमेरिका आगे
भारत अमेरिका को IT, सॉफ्टवेयर और BPO सेवाएं देता है और इससे भारत को सालाना 60 से 70 अरब डॉलर की कमाई होती है. ये व्यापार करीब 100 अरब डॉलर तक का है. अमेरिका भारत की टेक कंपनियों का सबसे बड़ा ग्राहक है. वहीं चीन के साथ इस सेक्टर में कोई खास व्यापार नहीं है, और ना ही कोई फायदा.
अमेरिका में रहते हैं 52 लाख भारतीय
अमेरिका में करीब 52 लाख भारतीय रहते हैं. ये लोग वहां की राजनीति, बिजनेस और टेक्नोलॉजी में काफी प्रभावशाली हैं. सुंदर पिचाई जैसे बड़े लोग भी इनमें आते हैं. ये भारतीय हर साल भारत को अरबों डॉलर भेजते हैं. अकेले अमेरिका से बड़ी रक़म आती है. दूसरी तरफ, चीन में सिर्फ 550 भारतीय हैं, और उनका कोई खास असर नहीं है. इसलिए अमेरिका में रहने वाले भारतीय भारत की ताकत बनते हैं, जबकि चीन में इसका कोई फायदा नहीं दिखता.
सुरक्षा में भी अमेरिका ही भरोसेमंद
ग्रोक के मुताबिक भारत और अमेरिका के बीच इंडो-पैसिफिक जैसे क्षेत्रों में मिलकर काम होता है. क्वाड जैसे ग्रुप में भी अमेरिका भारत का साथ देता है. जलवायु परिवर्तन और सप्लाई चेन जैसे मुद्दों पर भी दोनों मिलकर आगे बढ़ रहे हैं. वहीं, चीन भारत के पड़ोसियों जैसे पाकिस्तान और मालदीव में दखल देकर भारत को घेरने की कोशिश करता है. Belt and Road प्रोजेक्ट भी भारत के खिलाफ है.
भारत और अमेरिका के बीच करीब 25 अरब डॉलर का रक्षा व्यापार है. दोनों देशों की सेनाएं मिलकर अभ्यास करती हैं, और अमेरिका भारत को आतंकवाद से निपटने में जानकारी भी देता है. अमेरिका से भारत को आधुनिक हथियार और टेक्नोलॉजी भी मिलती है. वहीं चीन इसका उल्टा करता है. वो सीमा पर घुसपैठ करता है, पाकिस्तान को हथियार देता है और भारत के खिलाफ हर चाल चलता है. चीन का रवैया आक्रामक है.
भारत को अमेरिका के साथ रिश्ता सबसे ऊपर रखना चाहिए
ग्रोक का कहना है कि भारत को अमेरिका के साथ रिश्ता सबसे ऊपर रखना चाहिए, क्योंकि वहां से सुरक्षा, आर्थिक फायदा और दुनिया में सम्मान मिलता है. चीन के साथ रिश्ता तो रखना चाहिए, लेकिन बहुत सोच-समझकर. जो फायदा मिल सकता है, वो लें लेकिन आंख बंद करके भरोसा ना करें. भारत को चाहिए कि वो अमेरिका और चीन के बीच अपने फायदे के हिसाब से चतुराई से खेले और दोनों के बीच संतुलन बना कर चले.
चीन का डीपसीक भी अमेरिका के पक्ष में
चीन का डीपसीक AI अमेरिका के पक्ष में है. डीपसीक के मुताबिक, भारत की विदेश नीति इस सोच पर आधारित है कि वह किसी के दबाव में नहीं आएगा. भारत यह नहीं सोचता कि उसे दो में से किसी एक को चुनना होगा, बल्कि वह दोनों देशों के साथ अपने तरीके से रिश्ते बनाएगा ताकि देश का ज्यादा से ज्यादा फायदा हो. इसके लिए दोनों देशों के बीच जो टकराव वाली बातें हैं, उन्हें समझदारी से संभालना जरूरी है.
डीपसीक का मानना है कि भारत के अमेरिका के साथ रिश्ते ज्यादातर सहयोगी और मिलकर चलने वाले होंगे, जबकि चीन के साथ कई मामलों में टकराव रहेगा. लेकिन चीन के साथ आर्थिक संबंध भी जरूरी हैं. भारत का झुकाव अमेरिका और उसके साथियों के साथ गहरे और मजबूत रिश्ते बनाने की तरफ है. चीन के साथ संबंधों में सावधानी बरतनी चाहिए और धीरे-धीरे उस पर निर्भरता कम करनी चाहिए. यही भारत की विदेश नीति की सही रणनीति होनी चाहिए.
व्यापार में अमेरिका से फायदा, चीन से घाटा
भारत और अमेरिका के बीच 2022-23 में 118.3 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जिसमें भारत को लगभग 28 अरब डॉलर का फायदा हुआ. अमेरिका को भारत की दवाएं, हीरे, पेट्रोलियम और कपड़े जैसी चीजें चाहिए, और भारत भी अमेरिका से कई चीजें खरीदता है. कभी-कभी स्टील, डेयरी प्रोडक्ट्स और मेडिकल डिवाइसेज जैसे मामलों पर विवाद होते हैं, लेकिन इन्हें नियमों के जरिए सुलझा लिया जाता है.
वहीं, भारत चीन से कई जरूरी चीजें मंगवाता है, जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलीकॉम मशीनें और दवाओं में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल. इससे भारत की लागत कम होती है, लेकिन इसके बावजूद भारत को चीन के साथ व्यापार में बहुत बड़ा घाटा उठाना पड़ता है. 2022-23 में भारत को करीब 101 अरब डॉलर का घाटा हुआ, जबकि कुल व्यापार 113.8 अरब डॉलर का था. साथ ही, चीन की नीतियां कई बार नुकसानदायक साबित होती हैं, जैसे सस्ते माल की डंपिंग और अनावश्यक पाबंदियां लगाना.
डीपसीक का कहना है कि अमेरिका के साथ भारत का व्यापार संतुलित और टिकाऊ है, जबकि चीन के साथ व्यापार एकतरफा और जोखिम भरा है.
अमेरिका है सच्चा साथी, चीन में भरोसा कम
भारत की IT और BPO कंपनियां सबसे ज्यादा सेवाएं अमेरिका को देती हैं. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निवेशक भी है. बड़ी-बड़ी कंपनियां जैसे गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन ने भारत में अपने रिसर्च सेंटर बनाए हैं. हां, H-1B वीजा से जुड़े कुछ मुद्दे जरूर हैं, लेकिन उनका नुकसान ज्यादा नहीं है.
वहीं, टेक्नोलॉजी और एंटरटेनमेंट के लिए चीन एक संभावित बाजार हो सकता है, लेकिन अभी भारत और चीन के बीच सेवाओं का व्यापार बहुत कम है. 2020 में गलवान संघर्ष के बाद भारत ने चीन से आने वाले निवेश पर कड़ी पाबंदी लगा दी है. टिकटॉक और पबजी जैसे ऐप्स भी बैन कर दिए गए हैं. चीन भारत को बराबरी का मौका नहीं देता.
इन सब बातों को देखते हुए, डीपसीक का मानना है कि अमेरिका भारत की अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार है, जबकि चीन का योगदान बहुत कम है और सुरक्षा को लेकर चिंताएं ज्यादा हैं.
प्रवासी भारतीयों की ताकत अमेरिका में ज़ोरदार, चीन में बहुत कम
करीब 45 लाख भारतीय अमेरिका में रहते हैं. ये लोग पढ़े-लिखे, अमीर और टेक्नोलॉजी, राजनीति, शिक्षा और बिज़नेस जैसे क्षेत्रों में बड़ा प्रभाव रखते हैं. कमला हैरिस जैसी प्रमुख हस्तियां भी इन्हीं में से हैं. ये प्रवासी भारतीय भारत और अमेरिका के बीच एक मजबूत कड़ी का काम करते हैं. USIBC और AAPI जैसे कई संगठन इस रिश्ते को और भी मजबूत बनाते हैं.
वहीं, चीन में भारतीयों की संख्या बहुत कम है और वहां की संस्कृति से भी दूरी है. इसलिए चीन में भारत के प्रवासियों का कोई खास असर नहीं है.
डीपसीक का कहना है कि अमेरिका में बसे भारतीय भारत की बड़ी ताकत हैं, जबकि चीन के मामले में ऐसा कोई मुकाबला नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अमेरिका दोस्त, चीन प्रतिद्वंदी
भारत और अमेरिका इंडो-पैसिफिक जैसे अहम मसलों पर एक जैसे सोचते हैं. QUAD जैसे ग्रुप्स में दोनों मिलकर काम करते हैं ताकि चीन का प्रभाव कम किया जा सके. रूस को लेकर उनकी राय थोड़ी अलग हो सकती है, लेकिन बाकी मामलों में दोनों के बीच अच्छा तालमेल है.
वहीं, चीन अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कई कदम उठा रहा है, जैसे BRI प्रोजेक्ट और CPEC, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है. वह भारत को NSG और UNSC जैसे बड़े अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी रोकता है.
डीपसीक का कहना है कि इस मामले में अमेरिका भारत का प्राकृतिक और मजबूत रणनीतिक साथी है, जबकि चीन सबसे बड़ा विरोधी है.
सुरक्षा मामले में अमेरिका से गहरा सहयोग, चीन से सीधे खतरे
भारत और अमेरिका के बीच कई रक्षा समझौते हुए हैं, जैसे LEMOA, COMCASA और BECA. दोनों देश साथ मिलकर सैन्य अभ्यास करते हैं और इस आपसी सहयोग से भारत की रक्षा क्षमता बढ़ती है. टेक्नोलॉजी शेयरिंग में थोड़ी अड़चनें जरूर हैं, लेकिन फायदा काफी होता है.
वहीं, चीन से भारत को सीधे सेना से खतरा है, जैसे गलवान घाटी की झड़प. चीन पाकिस्तान का समर्थन करता है और भारत के खिलाफ हाइब्रिड वार यानी छुपी हुई लड़ाई की रणनीति अपनाता है.
डीपसीक का मानना है कि अमेरिका भारत का सबसे ज़रूरी रक्षा साथी है, जो चीन से निपटने में मदद करता है. चीन के साथ रिश्ता हमेशा टकराव वाला ही रहेगा.
डीपसीक का आखिरी निष्कर्ष
डीपसीक AI का साफ कहना है कि भले ही चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते बनाए रखना जरूरी है, लेकिन भारत के लिए अमेरिका एक अनमोल और बेहद जरूरी साथी है खासकर रणनीति, सुरक्षा और लंबी अवधि के आर्थिक फायदे के लिहाज से.
अमेरिका के साथ भारत का रिश्ता हर लिहाज से मजबूत है, चाहे वह व्यापार हो, रक्षा हो, टेक्नोलॉजी हो या राजनीति. वहीं, चीन के साथ रिश्ता ज्यादातर एकतरफा है, कुछ फायदा जरूर है, लेकिन खतरा ज्यादा है.
डीपसीक की सलाह है कि भारत को दोहरी रणनीति अपनानी चाहिए, पहला, अमेरिका और उसके साथियों से अपने रिश्ते और मजबूत करने चाहिए. दूसरा, चीन से सावधानी से निपटना चाहिए, यानी जोखिम कम करना, टकराव रोकना और कूटनीति के जरिए संबंध बनाए रखना. मजबूत अमेरिका के साथ रिश्ता भारत को ताकत देता है कि वह चीन से मजबूती से मुकाबला कर सके.
