गणेश विसर्जन 2025: गणेश चतुर्थी का पर्व भारत की आस्था और संस्कृति का गहरा प्रतीक है. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक दस दिनों तक गणपति बप्पा की स्थापना होती है. भक्त पूरे समर्पण से उनकी आराधना करते हैं. लेकिन इस पर्व का अंतिम और सबसे भावुक क्षण है गणेश विसर्जन जब बप्पा को पूरे विधि-विधान के साथ जल में समर्पित कर दिया जाता है. गणेश विसर्जन केवल परंपरा नहीं बल्कि शास्त्रों में वर्णित जीवन-दर्शन है. जानें पंचतत्व, अनित्य और आत्मा-ब्रह्म के मिलन का रहस्य.
सवाल उठता है कि आखिर क्यों बप्पा की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है? इसके पीछे केवल परंपरा ही नहीं, बल्कि गहरे धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक कारण छिपे हैं. शास्त्रों और पुराणों में इस विसर्जन की प्रक्रिया का उल्लेख मिलता है, जो जीवन, मृत्यु और मोक्ष का अद्भुत दर्शन कराते हैं.
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धार्मिक और पौराणिक कारण शास्त्रीय प्रमाणों सहित
पंचतत्व में विलय (स्कंद पुराण)
स्कंद पुराण में कहा गया है “पृथिव्यापस्तेजो वायु: खं चैतानि महाभूतानि…”
अर्थ: संपूर्ण जगत पंचमहाभूत पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है और इन्हीं में विलीन होता है.)
गणेश प्रतिमा भी मिट्टी से निर्मित होती है और विसर्जन के साथ जल में समा जाती है. यह स्मरण कराती है कि मानव जीवन भी इन्हीं तत्वों से बना है और मृत्यु के बाद इन्हीं में विलीन हो जाता है.
अनित्य का बोध (गणेश पुराण)
गणेश पुराण में उल्लेख है “अनित्यं खलु सर्वं हि, भवेन्नित्यं गणेश स्मृतिः…”
अर्थ: संसार की हर वस्तु नश्वर है, केवल गणपति की स्मृति और भक्ति ही शाश्वत है.)
प्रतिमा विसर्जन इसी अनित्य भाव को प्रकट करता है. यह सिखाता है कि मोह छोड़कर भक्ति और धर्म ही जीवन का आधार बनना चाहिए.
आगमन और प्रस्थान का संदेश (पौराणिक मान्यता)
मान्यता है कि गणपति हर वर्ष धरती पर आते हैं, भक्तों के विघ्न हरते हैं और विसर्जन के साथ कैलाश पर्वत लौट जाते हैं. यह संदेश देता है कि ईश्वर का स्वरूप शाश्वत है और भक्तिभाव से उन्हें बार-बार आमंत्रित किया जा सकता है.
आत्मा और ब्रह्म का मिलन (उपनिषदों का संकेत)
छांदोग्य उपनिषद में उल्लेख है “यथा नद्यः स्यन्दमानाः समुद्रेऽस्तं गच्छन्ति नामरूपे विहाय…”
अर्थ: जैसे नदियाँ अपना नाम-रूप छोड़कर समुद्र में विलीन हो जाती हैं, वैसे ही जीवात्मा परमात्मा में समा जाती है.)गणेश विसर्जन इस शाश्वत सत्य का प्रतीक है कि जीवात्मा अंततः ब्रह्म में विलीन होती है.
त्याग और वैराग्य का संदेश (पुराणों का भावार्थ)
पुराणों में त्याग को सर्वोच्च धर्म कहा गया है. गणपति विसर्जन हमें यही सिखाता है कि प्रियतम से भी कभी न कभी विरक्ति करनी पड़ती है. यही वैराग्य आत्मोन्नति और मोक्ष का मार्ग है.
