साउथ कॉकसस में रूस का प्रभाव लगातार कमजोर हो रहा है. पहले अजरबैजान ने रूस के खिलाफ तेवर दिखाए, अब उसका पुराना दोस्त अर्मेनिया भी पुतिन के खिलाफ रणनीतिक चालें चल रहा है. हाल के कुछ घटनाक्रमों ने ये साफ कर दिया है कि अर्मेनिया अब रूस पर निर्भर नहीं रहना चाहता.
एक तरफ अजरबैजान और रूस के बीच तनाव अपने चरम पर है, वहीं दूसरी तरफ अर्मेनिया ने भी ऐसे तीन कदम उठाए हैं जो पुतिन की परेशानी बढ़ा सकते हैं.
अजरबैजान रूस में तनाव क्यों बढ़ा?
दरअसल, रूस और अजरबैजान के बीच तनातनी की वजह बनी दो अजरबैजानी भाइयों की मौत. रूस के एक शहर येकातेरिनबर्ग में माफिया स्टाइल हत्याओं की जांच के तहत रूसी जांच एजेंसियों ने हुसैन और जियाद्दिन सफारोव नाम के दो भाइयों को हिरासत में लिया था.
कुछ दिनों बाद दोनों की मौत हो गई. एक की मौत की वजह दिल का दौरा बताई गई, जबकि दूसरे की मौत की जांच जारी है. इस घटना से अजरबैजान भड़क गया. बाकू स्थित सरकार ने रूसी दावों को सिरे से खारिज करते हुए इसे राजनीतिक साजिश बताया. इसी केस में रूस ने छह और अजरबैजानी नागरिकों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है.
अब अर्मेनिया भी बदल रहा है खेमा
रूस और अर्मेनिया दशकों से रणनीतिक साझेदार रहे हैं, लेकिन अब अर्मेनिया की नीतियों में बड़ा बदलाव नजर आ रहा है. पुतिन के लिए यह किसी झटके से कम नहीं है. आइए जानते हैं अर्मेनिया के तीन बड़े ‘खेल’, जो उसे रूस से दूर ले जा रहे हैं—
1. अजरबैजान से शांति की तरफ बढ़ता अर्मेनिया
जिस अजरबैजान से अर्मेनिया की कई जंगें हो चुकी हैं, अब उसी से दोस्ती की कोशिश हो रही है. जुलाई के अंत में दुबई में अर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान और अजरबैजान के राष्ट्रपति इलहाम अलीयेव की मीटिंग तय है. नागोर्नो-काराबाख को लेकर 1993 से दोनों देशों के बीच टकराव रहा है. 2020 की जंग के बाद 2023 में अजरबैजान ने उस पर फिर से कब्ज़ा किया. 1 जनवरी 2024 को आर्टसाख नाम की वह अलग सरकार आधिकारिक रूप से भंग हो गई. अब अर्मेनिया शांति समझौते के लिए तैयार है.
2. रूसी मीडिया पर बैन की तैयारी
अर्मेनिया की संसद ने हाल ही में प्रस्ताव दिया है कि रूस के सरकारी न्यूज़ चैनलों पर बैन लगाया जाए. ये वही चैनल हैं जो क्रेमलिन के पक्ष में खबरें दिखाते हैं. अगर ये बैन लागू हुआ, तो यह रूसी सूचना तंत्र की पकड़ ढीली करने वाला कदम होगा. यह उस देश से आया है जो कभी पुतिन का सबसे करीबी था.
3. चीन से बढ़ती दोस्ती
अर्मेनिया अब चीन को रूस का विकल्प मान रहा है. विदेश मंत्री अरारत मिर्जोयान ने साफ कहा है कि हमारी Crossroads of Peace’ परियोजना और चीन की Belt and Road Initiative एक-दूसरे को पूरा करती हैं. अर्मेनिया अब चीन से बिना किसी सीमा के साझेदारी चाहता है. अभी तक साउथ कॉकसस के तीनों देशों जॉर्जिया, अजरबैजान और अर्मेनिया में सिर्फ अर्मेनिया ही है जिसने अब तक चीन के साथ कोई रणनीतिक साझेदारी नहीं की थी. लेकिन अब यह जल्द बदल सकता है.
पुतिन के लिए खतरे की घंटी
अब तक रूस को अर्मेनिया जैसे सहयोगी देशों पर भरोसा रहा है, खासकर तब जब वो पश्चिमी दबावों से जूझ रहा है. लेकिन अब जब अजरबैजान और अर्मेनिया जैसे देश भी रूस से दूर हो रहे हैं, तो ये साफ है कि पुतिन के लिए साउथ कॉकसस में खेल पूरी तरह बदल रहा है. अर्मेनिया के ये कदम न सिर्फ रूस की विदेश नीति के लिए बड़ा झटका हैं, बल्कि यह भी संकेत हैं कि अब पुतिन की पकड़ धीरे-धीरे ढीली पड़ रही है.
