Dollar Vs Rupee: रुपया बुधवार को शुरुआती कारोबार में दो पैसे की गिरावट के साथ अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने 84.87 के ऑल टाइम लो पर पहुंच गया। इस साल अबतक डॉलर के मुकाबले रुपया 2.07 पर्सेंट टूट चुका है। डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट सरकार के साथ आपकी मुश्किलें भी बढ़ा देती है। डॉलर दुनिया में सबसे बड़ी करेंसी है, अधिकतर लेन-देन इसमें ही होता है। डॉलर के गिरने से सबसे पहले महंगाई बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। हम जो जो सामान विदेश से मंगवाते है वो और महंगी होगी। जैसे पेट्रोल, फर्टिलाइजर, सोना, इलेक्ट्रॉनिक सामान, मशीन के पार्ट्स। आइए जानें क्यों आती है रुपये में गिरावट और कैसे होता है आप पर असर।
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बढ़ती है महंगाई
भारत अपनी तेल जरूरतों का 75 से 80 फीसदी तक आयात करता है। डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से तेल कंपनियों पर बोझ बढ़ता है। एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के मूल्य में एक रुपये की बढ़ोतरी से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ जाता है। पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी बढ़ोतरी से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है। इसका सीधा असर आपने खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है।
दवाओं के दाम पर असर
कई जरूरी दवाएं बाहर से आती हैं। डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट की वजह से दवाओं के आयात के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है, जिससे वह महंगी हो जाती हैं। इसी तरह विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों को भी ज्यादा पैसे चुकाने पड़ जाते हैं। डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से विदेश यात्रा, वहां होटल में ठहरना और खाना भी महंगा हो जाता है।
विकास योजनाओं पर खर्च में करनी पड़ती है कटौती
सरकार तेल कंपनियों को बाजार से कम मूल्य पर बेचने की वजसे से डीजल, गैस और किरोसिन पर सब्सिडी देती है। सरकार के पास आमदनी के साधन सीमित हैं। डॉलर महंगा होने पर तेल कंपनियों का खर्च बढ़ जाता है तो सरकार उनके घाटे की भरपाई लिए विकास योजनाओं पर होने वाले खर्च में कटौती करती है। इसका सीधा असर कल्याणकारी सेवाओं पर पड़ता है।
सरकारी खजाने पर भी दबाव
देश में विदेशी मुद्रा आने और बाहर जाने के अंतर को चालू खाते का घाटा (कैड) कहते हैं। आयात अधिक होने या किसी अन्य वजह से देश से जब विदेशी मुद्रा ज्यादा बाहर जाती है तो कैड बढ़ जाता है। भारत में तेल और सोने के आयात पर सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च होती है।
1947 से 2024 तक 1 USD से INR: देश की आजादी के समय 1947 में एक डॉलर की कीमत 3.30 रुपये के बराबर थी।
वर्ष विनिमय दर (1 अमेरिकी डॉलर कितने रुपये के बराबर)
1947 में 3.30
2024 में (11 दिसंबर 2024 तक) 84.87
क्यों बढ़ रहा डॉलर
विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने बताया कि घरेलू बाजार में सुस्त रुख और अमेरिकी डॉलर सूचकांक की समग्र मजबूती ने रुपये पर और दबाव डाला। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 84.87 प्रति डॉलर पर खुला, जो डॉलर के मुकाबले इसका अब तक का सबसे निचला स्तर है। रुपया मंगलवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 84.85 पर बंद हुआ था। इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.07 प्रतिशत की गिरावट के साथ 106.32 पर रहा।
क्या रुपये को गिरने से रोका जा सकता है
रुपये को थामने का एक ही तरीका है कि हम इंपोर्ट कम और एक्सपोर्ट ज्यादा करें। अभी हम विदेश से सामान ज्यादा मंगवाते हैं और विदेश में बेचते कम हैं। बाजार का नियम है कि जिसकी कमी है उसका दाम बढ़ता है। डॉलर के लिए ज्यादा रुपये देने पड़ रहे हैं।
रुपये के गिरने से इन्हें फायदा
रुपये के गिरने से एक्सपोर्ट में फायदा होता है। हमारे पास से सामान या सेवा दुनिया दाम कम होने के कारण खरीदेगी। रुपया गिरता है तो दूसरे देशों को हमारा माल और सस्ता पड़ता है। इसका उदाहरण ऐसे समझिए चीन और जापान ने अपनी करेंसी को कमजोर रखा, दुनिया भर में माल बेचा और अपने देश को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया।
इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का अंतर पाटने में कई साल लगेंगे
रुपया का गिरना रोका जाना चाहिए तो ये इतना आसान भी नहीं है। इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का अंतर पाटने में कई साल लग जाएंगे तब तक रिजर्व बैंक के पास इस गिरावट को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर को खुले बाजार में बेचना।