Explore

Search

October 15, 2025 9:50 pm

टेढ़ी खीर है प्रस्ताव को अंजाम तक पहुंचाना……’जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की तैयारी!

WhatsApp
Facebook
Twitter
Email

केंद्र सरकार भले ही आगामी मानसून सत्र में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर कदम बढ़ा दे, पर इसे अंजाम तक पहुंचाना किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं होगा. अब तक पिछले 6 अनुभवों को देखा जाए तो महाभियोग प्रस्ताव कभी भी अपने अंजाम तक नहीं पहुंचा है. यह कहना गलत नहीं होगा कि जटिल प्रक्रिया के साथ इसे पूरा करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति भी चाहिए.

यहां जानें: रोजाना मलासन करने से शरीर को मिलेंगे ये गजब के फायदे……

अंजाम तक नहीं पहुंचे ये 6 महाभियोग प्रस्ताव

जस्टिस वर्मा के प्रकरण से पहले 6 ऐसे मामले हुए जब किसी जज के खिलाफ प्रस्ताव रखा गया. पहला, जस्टिस जेवी रामास्वामी पहले न्यायाधीश थे जिनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई थी. साल 1993 में, प्रस्ताव लोकसभा में लाया गया था, लेकिन आवश्यक दो-तिहाई बहुमत हासिल करने में विफल रहा.

दूसरा, कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन ने 2011 में राज्यसभा द्वारा उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित करने के बाद इस्तीफा दे दिया. वे पहले न्यायाधीश थे जिन पर कदाचार के लिए संसद के उच्च सदन द्वारा महाभियोग लगाया गया था.

तीसरा, साल 2015 में राज्यसभा के 58 सदस्यों ने गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला को उनके आरक्षण के मुद्दे पर आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए प्रस्ताव का नोटिस दिया था. हालांकि न्यायाधीश की ओर से यह टिप्पणी हटा लिए जाने के बाद नोटिस ठंडे बस्ते में चला गया.

चौथा, उसी साल राज्यसभा के 50 से अधिक सदस्यों ने जस्टिस एसके गंगेले को हटाने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे, जिन पर ग्वालियर के एक पूर्व जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था. हालांकि न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के तहत गठित जांच समिति ने यौन उत्पीड़न के आरोप को स्थापित करने के लिए रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री को अपर्याप्त पाया. बाद में यह प्रस्ताव भी छोड़ दिया गया.

पांचवां, साल 2017 में राज्यसभा के सांसदों ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया, लेकिन यह भी आगे नहीं बढ़ सका था.

छठा, मार्च 2018 में विपक्षी दलों ने सीजेआई जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए एक मसौदा प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए. लेकिन यह भी प्रस्ताव होकर रह गया.

क्या है महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के किसी जज के खिलाफ महाभियोग चलाने की प्रक्रिया समान है. इसका प्रस्ताव की भी एक लंबी प्रक्रिया है, जिसे चलाने की शुरुआत अनुच्छेद 124(4), 218 से होती है और जजेज इंक्वायरी एक्ट-1968 से गुजरकर पारित होता है, जहां राष्ट्रपति इस प्रक्रिया से आए फैसले पर अंतिम मुहर लगाकर अंजाम तक पहुंचाते हैं यानी जस्टिस को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं.

हालांकि अब तक भारत में किसी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सका है. सुप्रीम कोर्ट के किसी जज के खिलाफ महाभियोग चलाने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124(4) में निर्धारित की गई है. जबकि अनुच्छेद 218 में कहा गया है कि यही समान प्रावधान हाईकोर्ट के जज पर भी लागू होते हैं.

महाभियोग की सिफारिश राष्ट्रपति या सरकार से

दरअसल, अनुच्छेद 124(4) के मुताबिक किसी जज को संसद की ओर से निर्धारित प्रक्रिया के जरिए केवल प्रमाणित कदाचार और अक्षमता के आधार पर ही हटाया जा सकता है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश सीजेआई की ओर से यदि किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश राष्ट्रपति या सरकार से की जाती है तो राष्ट्रपति के अनुमोदन या स्वत: सरकार इसे आगे ले जाने या नहीं ले जाने पर फैसला लेती है. राज्यसभा या लोकसभा, दोनों में से किसी एक सदन का सत्ताधारी दल का मंत्री या सदस्य संबंधित सदन के संबंध में अन्य सदस्यों का प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कराता है.

महाभियोग प्रस्ताव पर राज्यसभा के 50 या लोकसभा के 100 सदस्यों का समर्थन लेने के बाद सदन के अध्यक्ष के समक्ष इसे टेबल किया जाता है. आगे की कार्यवाही जजेज इंक्वायरी एक्ट- 1968 के तहत चलती है. सदन के स्पीकर चाहें तो विशिष्ट व्यक्तियों से राय लेकर इस प्रस्ताव को आगे ले जाएं या फिर अस्वीकार कर दें.

सदन के स्पीकर प्रस्ताव पर 3 सदस्यीय समिति गठित करते हैं, एक सदस्य ज्यूरिस्ट, एक सदस्य सुप्रीम कोर्ट सीजेआई या जज और एक हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस रहेगा. यह समिति निर्धारित प्रक्रिया के तहत आरोप तय करेगी और फिर हर आरोप की जांच भी करेगी. जांच पूरी होने पर सदन के स्पीकर को रिपोर्ट सौंपी जाएगी.

समिति के समक्ष संबंधित जज जिसके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया है वह अपना पक्ष रख सकता है. समिति की रिपोर्ट आने के बाद उस पर सदन में चर्चा की जाएगी और फिर प्रस्ताव को पारित करने के लिए सदन की संख्या के बहुमत का दो तिहाई मत पक्ष में पड़ना चाहिए. महाभियोग प्रस्ताव के संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा जहां से संबंधित जज को पद से हटाने का आदेश जारी होगा.

Seema Reporter
Author: Seema Reporter

ताजा खबरों के लिए एक क्लिक पर ज्वाइन करे व्हाट्सएप ग्रुप

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर