बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए 400 सीट का टार्गेट रखा हुआ है. पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों यह लगातार दावा कर रहे हैं कि बीजेपी 400 सीटों पर विजय हासिल कर रही है. इस बीच सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही ओर से जनता को बताया जा रहा है कि अगर एनडीए को 400 सीटों मिल गईं तो सरकार क्या क्या कर सकती है. सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों तरफ से जो बातें की जा रही हैं वह अतिशयोक्ति ही लग रही हैं.हालांकि चुनावी मंचों पर जनता को मोटिवेट करने के लिए इस तरह के डिफनिशन पार्टियां देती रही हैं. पर इस बार कुछ ज्यादा ही हो गया है. इस नारे का फायदा इन चुनावों में अपने अपने हिसाब से पक्ष और विपक्ष दोनों ने उठाया है. 4 जून को चुनाव रिजल्ट से ही पता चलेगा कि इस नारे से बीजेपी को कितना फायदा हुआ या विपक्ष ने संविधान बचाने का डर दिखाकर बीजेपी की रणनीति पर पानी फेर दिया.
400 सीटों के नारे का चुनावी फायदा-नुकसान
तमाम राजनीतिक दार्शनिकों का मानना रहा है कि किसी भी शासन तंत्र में मोर पावर- मोर करप्शन ( अत्यधिक शक्ति सत्ता को और भ्रष्ट बनाती है) का प्रतीक होता है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती अधिक शक्तिशाली सरकार एक कमजोर सरकार की ही तरह से देश और समाज के लिए हानिकारक होता है. शायद यही कारण है कि बीजेपी के 400 सीटों के टार्गेट को आम जनता ने ठीक से नहीं लिया. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि लोगों में वोटिंग को लेकर उदासीनता देखी गई. दरअसल बीजेपी को समर्थकों को ऐसा लग रहा है कि मोदी सरकार बड़े पैमाने पर जीत रही है . इसलिए अगर उन्होंने वोट नहीं दिया तो भी कोई नुकसान नहीं होने वाला है. दूसरी ओर जो लोग मोदी सरकार के विरोधी हैं उन्हें यह लगा कि मोदी सरकार वापस आ रही है तो वोट देने का क्या मतलब है. शायद इसी तथ्य को भांपते हुए बीजेपी ने अपने समर्थकों के बीच यह डर फैलाया कि पार्टी हार की कगार पर है. बहुत से लोगों का कहना है कि शुरूआती चरणों के वोटिंग के रुझान के मुकाबले बाद के चरणों में जो सुधार देखा गया उसे इस बीजेपी के नकारात्मक प्रचार का ही परिणाम बताया जा रहा है.
बीजेपी नेताओं के अलग-अलग दावे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं बीजेपी के अलग-अलग नेताओं ने 400 के टार्गेट को अपने अपने हिसाब से जनता को समझाया है. पिछले दिनों असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी हर्ष मल्होत्रा के समर्थन में लक्ष्मी नगर में चुनावी रैली में कहा, कि जब लोकसभा चुनाव में बीजेपी 400 के पार पहुंच जाएगी, तब मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान पर एक भव्य मंदिर बनाया जाएगा और काशी में ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान पर बाबा विश्वनाथ का भव्य मंदिर बनाया जाएगा. इससे पहले 11 मई को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बिहार के बेगुसराय में वरिष्ठ बीजेपी नेता गिरिराज सिंह के समर्थन में रैली की और कहा, पूरे देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने और मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान पर अत्याधुनिक मंदिर निर्माण के लिए एनडीए को लोकसभा में 400 से ज्यादा सीटें जीतनी होंगी. हिमंता ने ही ओडिशा के मलकानगिरी में कहा कि कांग्रेस अयोध्या में राम मंदिर के स्थान पर बाबरी मस्जिद का पुनर्निर्माण करा सकती है. इसलिए 400 से ज्यादा सीटें देकर नरेंद्र मोदी को दुबारा पीएम बनाना होगा. दरअसल हिमंता की ही तरह की बातें खुद पीएम मोदी भी कह चुके हैं.
सबसे बड़ा सवाल तो यही उठता है कि जब राम जन्मभूमि पर इतना भव्य मंदिर बिना 400 सीटों के बन सकता है. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बन सकता है तो फिर अन्य मंदिरों के लिए 400 सीटों की जरूरत क्यों पड़ गई. 7 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बहाल करने से रोकने के लिए लोकसभा में 400 से ज्यादा सीटें जिताने की अपील की थी. उन्होंने कहा था, बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की 400 सीटें कांग्रेस को अयोध्या में राम मंदिर पर ‘बाबरी ताला’ लगाने से भी रोकेंगी.
मौजूदा बीजेपी सांसद और अयोध्या से उम्मीदवार लल्लू सिंह ने मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में एक सभा के दौरान कथित तौर पर कहा था, सरकार को नया संविधान बनाने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी. नागौर लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार ज्योति मिर्धा ने भी कुछ ऐसी ही बातें की थीं. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मार्च में कर्नाटक से बीजेपी के मौजूदा सांसद अनंतकुमार हेगड़े ने कहा था कि मतदाताओं को संवैधानिक संशोधनों के लिए लोकसभा में बीजेपी को दो-तिहाई बहुमत देना चाहिए. हालांकि, तब उनके इस बयान से बीजेपी ने खुद को अलग कर लिया था. हालांकि, पीएम मोदी ने एक सभा में यह कहकर कि संविधान को कोई नहीं बदल सकता. बाबा साहेब अंबेडकर भी नहीं. उनका ये बयान विपक्ष और बीजेपी के उन नेताओं के मुंह पर लगाम लगाने के लिए था जो बीजेपी पर 400 सीट जीतकर संविधान बदलने की आशंका जता रहे थे.
विपक्ष ने 400 के नारे को किस तरह भुनाया
विपक्ष ने बीजेपी के इस आक्रामक अभिय़ान को जिस तरह से हैंडल किया उसकी तारीफ करनी होगी. बीजेपी की रणनीति को इस तरह प्रचारित किया विपक्ष ने की पार्टी को डिफेंसिव होना पड़ गया. विपक्ष ने 400 सीटों के लक्ष्य को संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ से जोड़ दिया. इंडिया गठबंधन के दलों न केवल अल्पसंख्यकों के बीच डर को खूब भुनाया बल्कि पिछड़ी और दलित जातियों में 400 सीटों के लक्ष्य एक भय के रूप पेश किया. उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर इसका असर देखा गया, जहां दलित जातियों ने समाजवादी पार्टी को वोट किया है. तमाम ऐसे विडियो सामने आए हैं जिसमें दलितों के बीच इस बात का डर दिखा है कि एनडीए सरकार के पास अगर 400 सीटें आती हैं तो आरक्षण खत्म हो सकता है. जबकि संविधान से आरक्षण को खत्म करना इतना आसान नहीं है.
400 सीटें आने पर क्या कर सकती है सरकार
कोई भी सरकार चाहे कितनी भी बड़ी बहुमत से जीत हासिल कर ले जनता की भावनाओं को खिलाफ कोई कानून नहीं ला सकती है. राजीव गांधी के पास जितना बहुमत था उतना कभी भी किसी सरकार को नहीं मिला. सबसे पहले 400 सीट जीतने का रिकॉर्ड भी उन्हीं के नाम पर है. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति ही थी कि कांग्रेस को 1984 के चुनाव में 400 से अधिक सीटें मिलीं थीं. इसके बावजूद प्रेस की आजादी छीनने वाले विधेयक को राजीव गांधी को विरोध के चलते वापस लेना पड़ा था. शाहबानो वाले मामले में उन्होंने जरूर अपने विशाल बहुमत का फायदा उठाया पर वो भी एक बहुत बड़े जनमानस के समर्थन के चलते. राजनीतिक विश्लेषक सौरभ दूबे कहते हैं कि मोदी सरकार को अगर 400 से अधिक सीटें मिलती हैं तो कुछ कानूनों पर जरूर काम होगा. जैसे यूसीसी को ला सकते हैं. इसके साथ वक्फ बोर्ड के उस विवादित कानून को माइल्ड कर सकते हैं जिसके चलते उन्हें किसी भी जमीन को विवादित होने पर कानून का संरक्षण मिल जाता है. हालांकि पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि 400 सीटों का नारा केवल एक रणनीति ही है. यह केवल इसलिए है कि बीजेपी अधिकतम सीट हासिल कर सके.