अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का महत्वाकांक्षी बिल वन ब्यूटीफुल बिल कल 4 जुलाई को सीनेट में पास हो गया. इस बिल के पास हो जाने के बाद अनुमान है कि इसको लागू करने के लिए 3.4 ट्रिलियन खर्च करने पडे़ंगे, जिससे अमेरिका का फिस्कल डेफिसिट बढ़ेगा. इस बिल की ट्रंप भले ही तारीफ कर रहे हों, लेकिन अमेरिका में इसको भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. अमेरिका में अर्थशास्त्री चिंता जाहिर कर रहे हैं कि अगर इसको नहीं रोका गया तो अमेरिकी परिवारों और ग्लोबल इकोनॉमी सिस्टम को बड़ी परेशानियों का सामना करने के लिए मजबूर कर सकता है.
दरअसल, अमेरिकी परिवारों पर औसतन कर्ज का बोझ लगभग 2 लाख 30 हजार डॉलर प्रति परिवार है. 2025 की स्थिति में अमेरिका का कुल राष्ट्रीय कर्ज देश की कुल जीडीपी के लगभग 100 फीसदी के बराबर है, जबकि यह कर्ज सरकार की सालाना आमदनी से करीब 6 गुना ज्यादा है. ऐसे में दिग्गज निवेशकों ने ट्रंप के बिग ब्यूटीफुल बिल को बिग बर्डन बताया है.
Big Beautiful Bill या Big Burden
मशहूर निवेशक और ब्रिजवॉटर एसोसिएट्स के संस्थापक रे डालियो ने अमेरिकी सरकार के नए बजट बिल को लेकर गंभीर चेतावनी दी है. उन्होंने कहा कि अगर इस बजट का यही ढांचा जारी रहा, तो अमेरिका न केवल खुद आर्थिक संकट में फंसेगा, बल्कि इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा.
डालियो का कहना है कि अमेरिका हर साल करीब 7 ट्रिलियन डॉलर खर्च करेगा, जबकि उसकी आय केवल 5 ट्रिलियन डॉलर के आसपास होगी. यानी हर साल 2 ट्रिलियन डॉलर का घाटा. यह घाटा आने वाले समय में अमेरिका के राष्ट्रीय कर्ज को बेतहाशा बढ़ा देगा.
हर अमेरिकी परिवार पर 1.96 करोड़ का कर्ज
मौजूदा वक्त में अमेरिका का कर्ज उसकी कुल सरकारी आय का 6 गुना, GDP का 100%, और हर अमेरिकी परिवार पर औसतन 230,000 डॉलर (करीब 1.96 करोड़ रुपये) का है. यही नहीं, अगर हालात नहीं सुधरे तो अगले 10 साल में यह कर्ज बढ़कर आय का 7.5 गुना, GDP का 130%, प्रति परिवार 425,000 डॉलर (करीब 3.63 करोड़ रुपये) तक पहुंच सकता है.
ब्याज ही ले जाएगा 2 ट्रिलियन डॉलर
इस बढ़ते कर्ज पर ब्याज और मूलधन चुकाने की लागत भी तेजी से बढ़ेगी. डालियो का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में यह बोझ बढ़कर 18 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है, जिसमें से अकेले 2 ट्रिलियन डॉलर ब्याज का भुगतान होगा.
सरकार के सामने क्या हैं विकल्प?
इस संकट से निपटने के लिए अमेरिकी सरकार के पास केवल तीन ही कठिन विकल्प हैं. सरकारी खर्चों में कटौती, टैक्स में भारी वृद्धि, नोट छापना, जिससे डॉलर की वैल्यू घटेगी (मुद्रास्फीति बढ़ेगी) और ब्याज दरें कृत्रिम रूप से नीचे रखी जाएंगी.
लेकिन नोट छापने का फैसला बॉन्ड धारकों के लिए विनाशकारी हो सकता है, क्योंकि इससे उनके निवेश की वैल्यू घटेगी और अमेरिकी ट्रेजरी बाजार पर गहरा असर पड़ेगा.
अमेरिका अकेला नहीं डूबेगा, दुनिया भी प्रभावित होगी
डालियो ने चेताया कि यूएस ट्रेजरी मार्केट, जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली की रीढ़ की हड्डी है, अगर कमजोर पड़ता है तो इसका असर सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रहेगा. इसका व्यापक प्रभाव पूरे वैश्विक अर्थतंत्र और सामाजिक ढांचे पर पड़ेगा. भारत समेत दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यवस्थाएं इस झटके से अछूती नहीं रहेंगी.
समाधान क्या है?
डालियो ने अमेरिकी सरकार को सुझाव दिया है कि वह अपने बजट घाटे को तुरंत कम करे इसे GDP के 7% से घटाकर 3% तक लाना जरूरी है. इसके लिए खर्च में कटौती, टैक्स में सुधार और वित्तीय नीतियों में संतुलन जरूरी है. नहीं तो आने वाला संकट गहरा और दर्दनाक हो सकता है.
