बाहुबली योद्वा हिदा मीणा की 336वीं जयंती विशेष :-
जयपुर नरेश जयसिंह के लिए करीबन 2500-2700 किमी दूर दक्षिण भारत के कांचीपुरम में वहां के राजाओं से युद्व करके वृहदराज विष्णु भगवान की मूर्ति वहां के पूजारी परिवार सहित घोडों से जयपुर ले आने वाले वीरयोद्वा बाहुबली हिदा मीणा की मंगलवार को 336वीं जयंती हैं। हिदा मीणा का जन्म 18 अप्रेल 1688 में हुआ, प्रदेशभर के विभिन्न क्षेत्रों में हिदा मीणा की जयंती पर अनेकों कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
एडवोकेट चैतन्य मीणा, क्षत्रीय मीणा महासभा संयोजक अजय झरवाल व अनेक इतिहासकारों के मुताबिक बाहुबली वीर योद्धा हिदा मीणा(झरवाल) का जन्म 18 अप्रेल 1688 व बलिदान वर्ष 1750 जयपुर में हुआ। जयपुर के राजा जयसिंह ने सन् 1734 में विष्णु भगवान के नाम पर एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें पंडितों ने यज्ञ में वृहदराज विष्णु की असली मूर्ति को दक्षिण भारत के कांचीपुरम् से लाने के लिए कहा। नरेश जयसिंह ने मूर्ति लाने के लिए तत्कालीन योद्वाओं व दरबारियों, राजाओं को कहा, लेकिन 2500-2700 किमी दूर से मूर्ति युद्व करके लाने में कोई समर्थ नही हुआ। इस पर नरेश जयसिंह ने मीणा सरदारों, जागीरदारों से इस संबंध में सभी ने चर्चा की तो सभी ने एकमत से इस कार्य के लिए बाहुबली हिदा मीणा का नाम लिया। हिदा मीणा ने कांचीपुरम में वहां के राजा से मूर्ति की मांग की तो उन्होनें इंकार कर दिया। इस पर हिदा ने युद्व करके विष्णु भगवान की प्राचीन मूर्ति को पीठ पर बांधकर घोडे से जयपुर वापस लौटा, उसकी के साथ कांचीपुरम से मूर्ति की पूजा करने वाले पंड़ित परिवार भी जयपुर आ गया।
जयसिंह ने घाटगेट दरवाजे के पास हिदा की मोरी बनाई:-
जयसिंह हिदा मीणा की बहादुरी से प्रसन्न होकर कुछ इनाम देने का आग्रह किया, लेकिन हिदा ने उसे इंकार कर दिया। राजा के अत्यधिक आग्रह पर हिदा के नाम पर घाटगेट दरवाजे के पास एक छोटी मोरी/रास्ता बनाया गया। जयसिंह ने घाटगेट दरवाजे के पास परकोटे के किले की चारदीवारी में हिदा झरवाल के महल के पास, एक मोरी का नाम हिदा मीणा के नाम पर कर दिया। जो वर्तमान में भी सरकारी रिकाॅर्ड में हिदा की मोरी के नाम से दर्ज है।
हिदा की बहादुरी व राजा का प्रिय होना बना मौत षडयंत्रः-
हिदा की मोरी बनने के बाद जयसिंह के महलो और परकोटे से बाहर हिदा झरवाल बिना रोक-टोक के आवागमन हुआ। इससे राजस्थान के बड़े-बड़े राजा और राजदरबारी कुंठित और चिढ़ने लगे। हिदा मीणा को ठिकाने लगाने के लिए विभिन्न षड्यंत्र रचने लगे, लेकिन वे सफल नहीं हुए। एक दिन एक सामान्य हिदा नाम के व्यक्ति के हाथों से झगड़े में किसी की मौत के बाद उधर जयसिंह के दरबारियों को षड्यंत्र रचने का मौका मिल गया। वे बाहुबली असली हिदा मीणा का नाम लेकर उसे अपराधी घोषित करवा देते हैं। इस पर जयपुर नरेश जयसिंह ने जयगढ़ के किले पर तोप से बांधकर उड़ाने का आदेश दिया। मृत्युदंड से पहले हिदा मीणा ने ईश्वर से प्रार्थना की, मेरा सिर मेरे पुश्तैनी गांव, डोडा चैड़ कानोता-बस्सी में जाकर गिरे।
जयपुर घाटगेट पर अब भी पूजे जाते हैं हिदा मीणाः-
क्षत्रीय मीणा महासभा संयोजक अजय झरवाल ने बताया कि जयपुर में घाटगेट दरवाजे के पास, अपने महल के पास हिदा मीणा भौमियां जी के रूप में आज भी पुजे जा रहे हैं। सर्वसमाज और हिदा झरवाल के वंशजों ने उनके नाम से गांव और घाटगेट जयपुर में मंदिर बनवाया है।
हिदा के बलिदान की असलियत का भान हुआ तो काफी दुःखी हुए राजाः-
राजा जयसिंह को असलियत का पता चला तो अपने दरबारियों को खूब फटकारा और कहा आप लोगों ने उनके हाथ से निर्दोष, बाहुबली, चहेते योद्धा को मरवा दिया। राजा जयसिंह इसी आत्मग्लानि की दुःखी हुए। बाद में जयसिंह ने सहानुभूति वश उनके परिवार को जयपुर के पास साईवाड़ गांव की जागीर इनके नाम कर दी गई।