जयपुर। 20 मार्च की पूर्व संध्या को जयपुर के सैकड़ों बहाई धर्मावलंबियों ने नए वर्ष के उत्सव- नौरुज़-का आयोजन भक्तिमय एवं सांस्कृतिक वातावरण में बापू नगर स्थित बहाई हाऊस में किया जिसमें बच्चों, महिलाओं और युवाओं ने कई रोचक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। सानिया व गुंजन एक युगल नृत्य प्रस्तुत कर सबकी तालियां बटोरी तो वही लिटिल अरिजीत सिंह के नाम से मशहूर गायक हैत्विक सिंह ने अपनी गायकी से समां बाध दिया। वहीं उपस्थित लोगों ने क्विज गेम खेलकर समारोह का आनंद उठाया। उक्त जानकारी देते हुए जयपुर की स्थानीय बहाई आध्यात्मिक सभा के सचिव अनुज अनन्त ने बताया कि बहाई कैलेंडर के अनुसार आज से नए वर्ष का आरंभ होता है। बहाइयों के अलावा, ईरान और दुनिया भर में फैले हुए पारसी समुदाय के लोग भी नवरोज का उत्सव मनाते हैं और नए साल का शुभारंभ करते हैं।
समारोह के मुख्य वक्ता रमन ने बताया कि नौरुज़ का सम्बंध एक बहुत बड़ी खगोलीय घटना से है। वर्ष में दो बार हमारे खगोल में एक विलक्षण घटना घटती है। 20 या 21 मार्च को उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य विषुवत रेखा (एक्वेटर) के ठीक ऊपर रहता है और उत्तर की ओर गतिशील होता है। दूसरी ओर, 22 या 23 सितंबर को सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में एक बार फिर विषुवत रेखा के ठीक ऊपर रहता है और दक्षिण की ओर गतिशील होता है। इन दोनों ही अवसरों पर रात और दिन बराबर होते हैं। इस दिन से ऋतु में परिवर्तन होता है। 20, 21 मार्च को उत्तरी गोलार्द्ध में बसन्त ऋतु आरंभ होती है, इसलिए बहाउल्लाह ने 21 मार्च को बसन्त सम्पात का दिन माना है और इस दिन को नौरुज या नए दिन नाम दिया है।
नौरूज के साथ ही बहाई वर्ष का पहला महीना शुरु होता है जिसका नाम है “बहा” अर्थात प्रकाश, प्रताप, आभा, तेजस्विता। ये सारे गुण सूर्य के हैं लेकिन सूर्य दो तरह के होते हैं- एक तो हमारे सौरमंडल का वह भौतिक सूर्य है जो पूरी पृथ्वी को प्रकाशित करता है और आज के दिन वह अपनी चरम अवस्था पर, यानी विषुवत रेखा के ठीक ऊपर, विराजमान होता है। लेकिन एक दूसरा सूर्य भी है जो हमारे आंतरिक जगत को प्रकाशित करता है। वह सूर्य है ईश्वर का वह अवतार जो हमारे समय में प्रकट होता है और नई शिक्षाओं, नए विधानों के माध्यम से मनुष्य के मन, मस्तिष्क और आत्मा में नई रोशनी भर जाता है। कृष्ण, मूसा, अन्नाहम, जोरास्टर, गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्मद, और बाब ऐसे ही सूर्य थे जो हमारी आत्माओं को प्रकाशित करने आए थे। लेकिन हर सुबह एक नया भौतिक सूर्य उगता है और प्रकाश का नया स्रोत लेकर आता है। वैसे ही हर युग में एक नया आध्यात्मिक सूर्य भी उगता है। बहाउल्लाह इस नए युग के आध्यात्मिक सूर्य हैं।
उल्लेखनीय है कि नौरुज़ से पूर्व दुनिया भर के बहाई 19 दिनों का उपवास रखते हैं। उपवास और अनिवार्य प्रार्थना को बहाई धर्म में “आध्यात्मिक उच्चता के दो महत्वपूर्ण स्तम्भों” की संज्ञा दी गई है।
नौरुज़ उन लोगों के लिए एक उपहार है जिन्होंने ईश्वर का आदेश माना है, उसके बताए मार्ग पर चलने के लिए तुच्छ वासनाओं और कामनाओं से ऊपर उठने का प्रयास किया है। स्वयं बहाउल्लाह के शब्दों मेंः
“हे मित्रों, तुम्हारे लिए योग्य यही है कि अंतरात्मा को स्पंदित कर देने वाले इस दिव्य बसन्त-काल में प्रवाहित होने वाली भव्य कृपाओं के माध्यम से तुम अपनी आत्मा को नई ताजगी और नए जीवन से भर लो। परमात्मा की परम गरिमा के ‘दिवानक्षत्र’ ने तुझपर अपनी कांति बिखेरी है और उसकी असीम करुणा के बादलों ने तुझपर अपनी छाँह बिछाई है।”
कार्यक्रम का संचालन स्नेहा मिश्रा व आस्था हगीगत ने किया।