एशिया के सबसे अमीर मुकेश अंबानी फिर चर्चा में हैं. इस बार वजह है अमेरिका से इथेन गैस का बड़ा आयात, जो पहले चीन भेजी जाती थी, लेकिन अब भारत आ रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ट्रेड वॉर की वजह से दुनिया में बड़ा बदलाव आया है, जिससे भारत को अच्छा मौका मिला है. अंबानी की कंपनी रिलायंस गुजरात के दहेज में इस गैस को उतारने की तैयारी कर रही है. ये गैस प्लास्टिक बनाने वाली चीज़, एथिलीन, बनाने में काम आएगी. इससे भारत प्लास्टिक का ग्लोबल हब बन सकेगा.
इथेन का खेल में अंबानी का दांव
मुकेश अंबानी ने करीब एक दशक पहले ही अमेरिकी इथेन पर दांव लगाया था. उनकी कंपनी रिलायंस ने 2017 में गुजरात के दहेज में इथेन क्रैकर यूनिट शुरू की थी, जो अपने प्रकार की दुनिया की पहली बड़ी पहल थी. उस वक्त रिलायंस ने दावा किया था कि वह उत्तरी अमेरिका से इथेन आयात करने वाली पहली कंपनी है. आज यह दूरदर्शिता भारत के लिए व्यापारिक समझौतों में एक बड़ा हथियार साबित हो सकती है. भारत और अमेरिका के बीच 43 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को लेकर चल रही बातचीत में भारत कह सकता है, “हम आपकी गैस खरीद रहे हैं, इसलिए टैरिफ की बात छोड़ दें.” 9 जुलाई को अमेरिका की 26% टैरिफ की समय सीमा खत्म होने वाली है, और भारत इस मौके का पूरा फायदा उठाने के लिए तैयार है.
रिलायंस का यह कदम केवल व्यापार तक सीमित नहीं है. इथेन, जो प्राकृतिक गैस का एक हिस्सा है, प्लास्टिक बनाने में अहम भूमिका निभाता है. यह एक रंगहीन, गंधहीन गैस होती है, जिसे खास जहाजों में लिक्विड यानी तरल रूप में लाया जाता है. फिलहाल ऐसा ही एक जहाज, STL Qianjiang, अमेरिका के गल्फ कोस्ट से दहेज की ओर बढ़ रहा है. रिलायंस के पास ऐसे छह जहाज हैं और कंपनी अब तीन और जहाज जोड़ने की योजना बना रही है.
क्यों खास है इथेन?
प्लास्टिक बनाने के लिए पहले रिलायंस और अन्य रिफाइनरियां नेफ्था का इस्तेमाल करती थीं, जो कच्चे तेल से बनता है. लेकिन नेफ्था से केवल 30% एथिलीन बन पाता है, जबकि इथेन से यह आंकड़ा 80% तक पहुंच जाता है. यानी इथेन ज्यादा किफायती और प्रभावी है. ऊर्जा के लिहाज से भी इथेन, नेफ्था से लगभग आधा सस्ता पड़ता है. पहले भारत में इथेन को उतनी प्राथमिकता नहीं मिली थी. यहां तक कि कतर से आने वाली प्राकृतिक गैस में भी इथेन को अलग नहीं किया जाता था. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. कतर एनर्जी ने भारत की ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) के साथ नए समझौते में स्पष्ट कहा है कि वह केवल “लीन” गैस ही देगी. अगर इथेन चाहिए, तो इसके लिए अलग से भुगतान करना होगा.
ONGC ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं और जापान की मित्सुई OSK लाइन्स के साथ दो बड़े इथेन कैरियर्स के लिए डील की है. लेकिन इस पूरे खेल में रिलायंस ने पहले ही बाजी मार ली है. कंपनी अब दहेज से गुजरात में अपनी दूसरी यूनिट तक करीब 100 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाने की योजना बना रही है.
भारत की तेल अर्थव्यवस्था पर असर
इथेन के बढ़ते इस्तेमाल से भारत की तेल आधारित अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव आ सकता है. वर्तमान में भारत की रिफाइनरियां मुख्य रूप से मिडिल ईस्ट से आने वाले कच्चे तेल पर निर्भर हैं. लेकिन अगर इथेन का इस्तेमाल बढ़ा, तो कुछ रिफाइनरियां घाटे में जा सकती हैं. नेफ्था, जो पहले पॉलिएस्टर, डिटर्जेंट, उर्वरक और कॉस्मेटिक्स बनाने में अहम भूमिका निभाता था, अब पीछे हट सकता है.
भारत में तेल उद्योग अब एक नए दौर में पहुंच चुका है. पिछले साल देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी की लगभग एक तिहाई कारें CNG पर चल रही थीं. प्रदूषण कम करने और विदेशी तेल पर निर्भरता घटाने के लिए सरकार ने पेट्रोल में 20% बायो-एथेनॉल मिलाने का नियम बनाया है. साथ ही, इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग भी पेट्रोल की खपत घटा रही है. इसके बावजूद, आंध्र प्रदेश में एक सरकारी कंपनी सालाना 9 मिलियन टन की नई रिफाइनरी बना रही है. जानकारों का मानना है कि यह प्रोजेक्ट केवल सब्सिडी और रोजगार के लालच में चल रहा है, क्योंकि इसका निवेश आर्थिक रूप से ज्यादा मायने नहीं रखता.
ट्रंप और अंबानी की दोस्ती
मुकेश अंबानी का यह कदम सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि अमेरिका के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है. ट्रंप की ट्रेड वॉर की वजह से अमेरिकी इथेन की मांग पर सवाल खड़े हो गए हैं. चीन इस गैस का बड़ा खरीदार था, लेकिन अब भारत उसकी जगह ले सकता है. भले ही भारत चीन जितना इथेन न खरीद पाए, लेकिन वह अमेरिका के बाजार में ओवरसप्लाई को कम करने में मदद जरूर कर सकता है. ट्रंप के लिए यह मौका होगा कि वे अपनी ट्रेड नीति की तारीफ करें और कहें कि वे अमेरिका को फिर से महान बना रहे हैं.
