जयपुर में सोमवार का दिन सिर्फ एक जागरूकता कार्यक्रम नहीं था, बल्कि उन मिथकों और गलतफहमियों पर करारा जवाब था, जो आज भी “मिर्गी” जैसी इलाज योग्य बीमारी को कलंक और डर के घेरे में रखती हैं। ‘राष्ट्रीय मिर्गी दिवस’ के मौके पर नागरिक संरक्षण समिति और एसएमएस मेडिकल कॉलेज के न्यूरोलॉजी विभाग ने ऐसा जन-जागरण अभियान चलाया, जिसने शहर को बीमारी की नहीं, जागरूकता की धड़कन से भर दिया।
सुबह से ही एसएमएस अस्पताल परिसर में अलग-सी हलचल थी। नीले–बैंगनी पोस्टरों से सजी गलियों में लोगों का आना-जाना बढ़ रहा था। पोस्टरों पर मिर्गी के लक्षण, प्राथमिक उपचार, दवाओं के महत्व और सबसे बड़ी बात—बीमारी से जुड़े मिथकों का वैज्ञानिक जवाब लिखा था। इस ज्ञान–दीवार के बीच खड़ी थीं न्यूरोलॉजी विभाग की सीनियर प्रोफेसर डॉ. भावना शर्मा, जो इस अभियान का चेहरा ही नहीं, बल्कि इसकी आत्मा बनी हुई थीं।
डॉ. शर्मा ने कार्यक्रम की शुरुआत में साफ शब्दों में कहा मिर्गी किसी भी तरह की अशुभ शक्ति, पाप या आध्यात्मिक कारणों से नहीं होती। यह एक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है और पूरी तरह इलाज योग्य है।”
उनकी यह बात उन तमाम परिवारों के लिए उम्मीद का संदेश थी, जो समाज की गलत धारणाओं के कारण इलाज कराने में भी हिचकिचाते हैं।
कार्यक्रम का सबसे प्रभावशाली हिस्सा था सवाल-जवाब का सत्र। यहां युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक हर कोई अपने मन की उलझनें खुलकर पूछ रहा था।
— क्या मिर्गी के दौरे में डरना चाहिए?
— रोगी की जीभ क्यों पकड़ते हैं?
— क्या ये रोग जीवनभर रहता है?
डॉ. शर्मा हर सवाल का जवाब उसी सरलता से देतीं, जिस तरह कोई शिक्षक एक जिज्ञासु छात्र को समझाता है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि दौरे के समय रोगी के मुंह में पानी, चम्मच या उंगली डालना खतरनाक होता है। जीभ पकड़ने की जरूरत नहीं, बल्कि रोगी को सुरक्षित करवट पर लिटाना सबसे जरूरी है।
उन्होंने बताया कि अधिकांश मरीज सही इलाज से सामान्य जीवन जीते हैं—नौकरी, पढ़ाई, शादी सबकुछ संभव है।
“बीमारी से ज्यादा खतरनाक है उससे जुड़ा सामाजिक डर,” डॉ. शर्मा का यह वाक्य कई लोगों के लिए नई सोच की शुरुआत बन गया।
कार्यक्रम का सबसे अलग और आकर्षक हिस्सा था ई-रिक्शा रैली। पोस्टरों से सजे ये ई-रिक्शा जब शहर की मुख्य सड़कों पर निकले, तो लोगों ने रुककर पढ़ा, देखा और समझा।
डॉ. शर्मा ने रैली को हरी झंडी दिखाते हुए कहा—
“जागरूकता तभी असर डालती है जब वह अस्पताल से बाहर निकलकर लोगों तक पहुंचे।”
यह रैली केवल वाहनों का जुलूस नहीं थी, यह उन हजारों रोगियों की आवाज थी, जो समाज से समझ और सम्मान की उम्मीद करते हैं।
कार्यक्रम में लगी पोस्टर प्रदर्शनी ने लोगों का सबसे ज्यादा ध्यान खींचा। यहां डॉक्टरों की टीम ने मिर्गी के कारण, ट्रिगर, बचाव और उपचार को बेहद आसान शब्दों और चित्रों में बताया।
लोगों ने समय लेकर हर पोस्टर पढ़ा। कई ने फोटो लीं ताकि घर जाकर बच्चों और माता-पिता को भी समझा सकें।
यह प्रदर्शनी साबित कर रही थी कि जब विज्ञान लोगों की भाषा बोलता है, तो जागरूकता गहराई से असर करती है।
डॉ. शर्मा ने कार्यक्रम के आखिर में एक ऐसी बात कही, जिसने पूरे अभियान को सार्थकता दे दी—
“मिर्गी के रोगी को दया नहीं, सम्मान चाहिए। डर नहीं, सहयोग चाहिए।”
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