राजस्थान में पशुपालन विभाग के उच्चाधिकारियों की लापरवाही और ढिलाई का मामला सामने आया है. विभागीय अधिकारियों की लापरवाही से प्रदेश में लाखों पशुओं को ऐसी दवाईयां दे दी गई, जो विभाग ने अब अमानक मानी हैं.
दरअसल पशुपालन विभाग ने करीब ढाई माह पहले प्रदेशभर की पशु चिकित्सा संस्थाओं में दवाईयों की सप्लाई की थी। उस समय इन दवाईयों की जांच नहीं की गई थी। लेकिन बाद में दवाईयों की रैंडम सैंपलिंग की गई, जिसमें पाया गया कि 2 दवाईयां मानकों पर सही नहीं हैं. अब पशुपालन निदेशालय ने प्रदेशभर की पशु चिकित्सा संस्थाओं को इन दवाईयों को वापस मंगवाया है. जबकि पिछले ढाई महीने में ज्यादातर दवाईयों का उपयोग पशुओं पर किया जा चुका है. ऐसे में या तो ज्यादातर पशु चिकित्सा संस्थाओं में दवाईयां उपयोग ली जाकर समाप्त हो चुकी हैं या फिर गिनी-चुनी दवाईयां ही बची हैं.
आपको बता दें कि इनमें एक टैबलेट नुमा दवाई मिनिल लैबोरेट्रीज की बनाई हुई है, जबकि दूसरी सीरपनुमा दवाई ग्रैम्पस लैबोरेट्रीज द्वारा सप्लाई की गई है.
लाखों बेजुबान पशुओं को लगा दी अमानक दवाईयां
– मिनिल लैबोरेट्रीज की मियोक्सीकैम पैरासिटामोल सेराटियोपेप्टाइडेज दवाई
– यह दवाई है एनालजेसिक और एंटीपायरेटिक श्रेणी की
– पशुओं में दर्द, बुखार और सूजन के दौरान की जाती है उपयोग
– इसी तरह ग्रैम्पस लैबोरेट्रीज की प्रोविडिन आयोडीन मेट्रोनाइडेजोल दवाई
– यह दवाई पशुओं के यूट्रस में डाली जाती है इन्फेक्शन दूर करने के लिए
– सवाल यह कि सप्लाई से पहले ही दवाईयों के सैम्पल क्यों नहीं लिए ?
दवा कम्पनियों पर कार्रवाई क्यों नहीं ?
विभाग दवा सप्लाई करने वाली कम्पनियों पर कार्रवाई तो करता है, लेकिन वह कार्रवाई खानापूर्ति के लिए की जाती है. अब जिन दो कम्पनियों मिनिल लैबोरेट्रीज और ग्रैम्पस लैबोरेट्रीज की दवाईयां अमानक पाई गई हैं, उन पर भी धोखाधड़ी कानून के तहत कार्रवाई नहीं की जा रही है. दरअसल ऐसे मामलों में धोखाधड़ी कानून के तहत कार्रवाई इसलिए भी की जानी चाहिए, क्योंकि ज्यादातर दवाओं का उपयोग पशुओं पर किया जा चुका है. ऐसे में अब दवाईयां बहुत कम मात्रा में बची हैं. ऐसे में दवाईयां वापस मंगवाने का भी कोई औचित्य नहीं है.





