तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने महिला पत्रकारों को शुक्रवार को मीडिया ब्रीफिंग से बाहर रखा। दूतावास के कर्मचारियों ने भी इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। नई दिल्ली के चाणक्यपुरी डिप्लोमैटिक एन्क्लेव में शांतिपथ पर अफगानिस्तान दूतावास स्थित है। यहां लगभग 23 कर्मचारी हैं, जिनमें 6 अफगानी हैं। ये सभी पूर्ववर्ती इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान के प्रतिनिधि हैं, जिसका नेतृत्व राष्ट्रपति अशरफ घनी ने किया था और अगस्त 2021 में देश छोड़कर भाग गए।
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री और तालिबान नेता आमिर खान मुत्तकी के दौरे से पहले इन कर्मचारियों ने चार्ज डी’अफेयर्स (CDA) सईद मोहम्मद इब्राहिमखिल से अपील की थी। उनका कहा था कि तालिबान की ब्रीफिंग दूतावास में नहीं होनी चाहिए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में एक सूत्र ने कहा, ‘हमें पता था कि वे इस दूतावास को अमीरात घोषित करना चाहेंगे। हमारा झंडा उतारकर अपना झंडा लगाएंगे और महिलाओं को बाहर रखेंगे। इसलिए हम प्रेस कॉन्फ्रेंस को दूतावास में आयोजित करने के कदम का विरोध कर रहे थे। इसके बजाय उस पांच सितारा होटल का सुझाव दिया था जहां तालिबान प्रतिनिधिमंडल ठहरा हुआ है।’
दूतावास में पीसी को मंजूरी
विदेश मंत्रालय ने शनिवार को कहा कि प्रेस वार्ता में उसकी कोई भूमिका नहीं थी। कुछ अधिकारियों ने दावा किया कि उन्होंने अफगान पक्ष को सुझाव दिया था कि महिला पत्रकारों को पीसी में शामिल किया जाए। सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्रालय ने सीडीए को सहयोग करने और तालिबान को दूतावास में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने देने के लिए कहा था। इस तरह पीसी के लिए दूतावास को चुना गया, न कि कोई निजी परिसर। ऐसे में तालिबान ने वियना संधि के तहत दूतावास की राजनयिक क्षमता का उपयोग करके महिलाओं को बाहर रखा। एक सूत्र ने कहा, ‘इससे उन्हें उन लोगों को रोकने की छूट मिल गई जिन्हें वे नहीं चाहते थे। शुरू में 12 लोगों की सूची थी, जिसे बाद में 16 कर दिया गया और इसमें सभी पुरुष थे।’
दूतावास के कर्मचारी भी खफा
दूतावास के एक कर्मचारी ने कहा, ‘हम सभी जानते हैं कि अफगानिस्तान में उनका बर्ताव कैसा है। हमारे रिश्तेदारों और परिवारों की महिलाएं पिछले 4 साल से पीड़ित हैं। आज उन्होंने अफगानिस्तान का नाम कितना बदनाम कर दिया।’ उन्होंने कहा कि सूची को लेकर हमसे बिल्कुल परामर्श नहीं किया गया। अगर हमें पता होता तो हम कभी भी महिला पत्रकारों के साथ भेदभाव नहीं करते। ध्यान देने वाली बात है कि दूतावास फिलहाल विवादित है। आधिकारिक तौर पर यह अभी तक तालिबान का दूतावास नहीं बना है, क्योंकि भारत सरकार ने औपचारिक रूप से तालिबान शासन को मान्यता नहीं दी है। सरकार ने तालिबान को दिल्ली में अपने राजनयिक लाने की इजाजत तब दी, जब मुत्तकी की विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ मुलाकात हुई।