अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण एशिया में एक नया कूटनीतिक और आर्थिक खेल शुरू किया है. एक तरफ ट्रंप भारत को “खास दोस्त” कहकर यहां से अमेरिका जाने वाले सामान पर 50% तक का भारी-भरकम टैरिफ लाद रहे हैं. उधर, आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान को सिर्फ 19% टैरिफ के साथ कई रियायतें देकर ट्रंप ने सबको चौंका दिया है. सवाल ये उठ रहा है कि क्या ट्रंप की ये चाल भारत और चीन को एक साथ निशाने पर लेने की कोशिश है? या फिर ये भारत की तरक्की से जलन का नतीजा है?
भारत पर टैरिफ की दोहरी मार
ट्रंप ने जी-20 समिट में भारत को “पक्का दोस्त” कहकर तारीफों के पुल बांधे, लेकिन उनका अगला कदम देखकर इस दोस्ती पर सवाल उठने लगे हैं. पहले तो भारत से अमेरिका जाने वाले सामान पर 25% टैरिफ लाद दिया गया. फिर रूस के साथ भारत की दोस्ती को बहाना बनाकर ट्रंप ने 25% का और टैरिफ ठोक दिया. नतीजा? अब भारतीय सामान को अमेरिकी बाजार में 50% तक टैक्स देना पड़ रहा है. ये भारत की तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका है, जो इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाइयां, ऑटो पार्ट्स, जेवरात और खेती के सामान जैसे क्षेत्रों में अमेरिका को भारी मात्रा में निर्यात करती है.
पाकिस्तान की डूबती अर्थव्यवस्था पर ट्रंप की मेहरबानी
पाकिस्तान, जिसकी अर्थव्यवस्था विदेशी मुद्रा की कमी, आसमान छूती महंगाई और आईएमएफ की सख्त शर्तों के चलते लड़खड़ा रही है, उसे ट्रंप ने सिर्फ 19% टैरिफ लगाकर बड़ी राहत दे दी है. इतना ही नहीं, ट्रंप ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को व्हाइट हाउस में निजी लंच पर बुलाया और अमेरिका-पाकिस्तान साझेदारी के नए दौर की बात की. ये सब तब हो रहा है, जब पाकिस्तान की आर्थिक हालत इतनी खराब है कि इसे “आर्थिक संप्रभुता” खोने की कगार पर माना जा रहा है.
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की ये चाल पाकिस्तान को चीन के चंगुल से निकालकर अमेरिका के पाले में लाने की कोशिश है. पाकिस्तान ने ट्रंप की टैरिफ नीति पर कोई खास हल्ला नहीं मचाया, बल्कि चुपचाप इसे मान लिया. कुछ विश्लेषकों ने इसे “आर्थिक समर्पण” बताया है, जहां इस्लामाबाद ने अमेरिका की शर्तों के आगे झुककर आर्थिक मदद और कूटनीतिक समर्थन की आस लगाई है.
ट्रंप का असली खेल क्या है?
ट्रंप की ये नीति सिर्फ व्यापार की बात नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरे कूटनीतिक इरादे छुपे हैं. माना जा रहा है कि ट्रंप पाकिस्तान को अपने पाले में लाकर भारत और चीन, दोनों का दबदबा कम करना चाहते हैं. खासकर चीन के साथ पाकिस्तान के दशकों पुराने रणनीतिक रिश्ते को देखते हुए ट्रंप की ये चाल बड़ी अहम है. चीन ने पाकिस्तान में जमकर पैसा लगाया है, खासकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपेक) जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स में. लेकिन चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्परेरी इंटरनेशनल रिलेशंस के विशेषज्ञ हू शिशेंग का कहना है कि ट्रंप की “मिठाई” भले ही लुभावनी लगे, लेकिन ये चीन-पाकिस्तान रिश्तों की “मजबूत नींव” को हिला नहीं सकती.
ट्रंप की रणनीति का दूसरा रुख भारत के रूस से रिश्तों से जुड़ा है. रूस-यूक्रेन जंग में भारत के तटस्थ रवैये और रूस से तेल व हथियार खरीदने की वजह से अमेरिका खफा है. ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ तेल भंडार विकसित करने का ऐलान कर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की है.
ट्रंप को नहीं मिल पाया सीजफायर का क्रेडिट
ट्रंप ने लगभग हर मौके पर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने का क्रेडिट लेने की कोशिश की है. उन्होंने 10 मई को सोशल मीडिया पर दावा किया कि वाशिंगटन की मध्यस्थता से दोनों देश पूर्ण युद्धविराम पर सहमत हुए हैं. लेकिन भारत ने उनके इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने राज्यसभा में साफ कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान के साथ युद्धविराम में किसी तीसरे पक्ष का कोई रोल नहीं था. उन्होंने ये भी बताया कि 22 अप्रैल से 16 जून तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच कोई फोन बातचीत नहीं हुई. ऐसे में एक सवाल ये भी उठता है कि कहीं भारत के इस खंडन से खिसियाकर ट्रंप ने भारत पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने का फैसला तो नहीं लिया.
क्या पाकिस्तान ले सकता है भारत की जगह?
अब बात आती है सबसे अहम सवाल पर, क्या ट्रंप जिस कंगाल पाकिस्तान पर दांव लगा रहे हैं, वो कभी भारत की जगह ले सकता है? इसका सीधा जवाब है, कभी नहीं. भारत की अर्थव्यवस्था का आकार और ताकत पाकिस्तान से कई गुना बड़ी है. भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाइयां, ऑटो पार्ट्स और खेती के सामान जैसे कई क्षेत्रों में निर्यात करता है, जबकि पाकिस्तान का निर्यात ज्यादातर कपड़ों और गारमेंट्स तक ही सीमित है. भारत का बड़ा घरेलू बाजार और नए निर्यात बाजार तलाशने की काबिलियत उसे पाकिस्तान से कोसों आगे रखती है.
सच तो ये है कि 2019 में ही अमेरिका को समझ आ गया था कि पाकिस्तान का आर्थिक और रणनीतिक महत्व भारत की तुलना में काफी कम है. भले ही ट्रंप की नीति से पाकिस्तान को थोड़ी-बहुत राहत मिल जाए, लेकिन भारत की मजबूत आर्थिक और कूटनीतिक ताकत को टक्कर देना उसके लिए आसान नहीं. उधर, पाकिस्तान की डूबती अर्थव्यवस्था को ट्रंप की रियायतें कितना उबार पाएंगी, ये तो वक्त ही बताएगा.
