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November 25, 2025 12:44 pm

सरकार की इस रिपोर्ट ने किया इशारा……’भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत, लेकिन ये दो वजहें ला सकती हैं बड़ी रुकावट…..

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भारत की अर्थव्यवस्थाफिलहाल स्थिर और मजबूत दिख रही है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सब कुछ बेफिक्र है. जून महीने की आर्थिक समीक्षा (इकोनॉमिक रिव्यू) ने साफ इशारा किया है कि कुछ बड़ी चुनौतियां देश की ग्रोथ की रफ्तार पर ब्रेक लगा सकती हैं.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग में कमी, खासकर अमेरिका जैसे बड़े बाजार में मंदी का माहौल, भारत के लिए चिंता की बात है. अमेरिका की अर्थव्यवस्था 2025 की पहली तिमाही में 0.5% सिकुड़ गई और इसका सीधा असर भारत के एक्सपोर्ट्स पर पड़ सकता है. वहीं, अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी को लेकर जारी अनिश्चितता और डोमेस्टिक प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में धीमापन भी चिंता बढ़ा रहा है.

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यही नहीं, मीडियम टर्म में सेमीकंडक्टर, रेयर अर्थ मेटल्स और मैग्नेट्स जैसे सेक्टर में हो रहे वैश्विक बदलाव भारत के लिए नई चुनौती खड़ी कर सकते हैं. ऐसे में FY26 भले ही ‘स्थिर रफ्तार’ वाला साल हो, लेकिन इसे पूरी तरह ‘सुरक्षित’ मान लेना अभी जल्दबाजी होगी.

अर्थव्यवस्था की तेजी में दो बड़ी रुकावट

देश की अर्थव्यवस्था को तेजी पकड़ने में दो बड़ी बातें रुकावट बन सकती हैं. पहली- बैंकों से कर्ज लेने की रफ्तार धीमी है और दूसरी, कंपनियों या लोगों का नया पैसा (प्राइवेट इन्वेस्टमेंट) लगाने का इरादा कमजोर है. इसके अलावा, थोक बाजार में चीजों के दाम लगातार गिर रहे हैं (इसे ही डिफ्लेशन या WPI गिरावट कहते हैं). ऐसे में अगर हम सिर्फ पुराने दामों (कॉन्स्टेंट प्राइसेज) पर ग्रोथ को देखें, तो ऐसा लगेगा कि अर्थव्यवस्था अच्छी चल रही है. लेकिन जब इसे मौजूदा दामों (नॉमिनल टर्म्स) में मापा जाए, तो असल तस्वीर उतनी अच्छी नहीं दिख सकती.

चीन पर निर्भरता पड़ सकती है भारी

भारत की कई जरूरी इंडस्ट्रीज जैसे ट्रांसपोर्ट इक्विपमेंट, मेटल्स, मशीनरी, कंस्ट्रक्शन और इलेक्ट्रॉनिक्स इस समय रेयर अर्थ जैसे खास खनिजों के लिए चीन पर काफी निर्भर हैं. ये रेयर अर्थ मिनरल्स बैटरी, मैग्नेट, इलेक्ट्रिक मोटर्स और हाई-टेक मशीनों में इस्तेमाल होते हैं. चीन इस समय दुनिया का सबसे बड़ा सप्लायर है और अगर वह इन खनिजों के एक्सपोर्ट पर पाबंदी लगाता है, तो भारत की फैक्ट्रियों में प्रोडक्शन प्रभावित हो सकता है.

SBI के एक हाल के एनालिसिस के मुताबिक, चीन की ऐसी किसी भी पाबंदी का असर भारत की डोमेस्टिक प्रोडक्शन कैपेसिटी, एक्सपोर्ट का कॉम्पटीशन और बैंकों के लोन पर पड़ सकता है. खासकर उन कंपनियों पर जो इन इंडस्ट्रीज से जुड़ी हैं. हालांकि, यह असर हर जगह एक जैसा और तुरंत नहीं दिखेगा क्योंकि कुछ कंपनियों के पास पहले से स्टॉक मौजूद हो सकता है.

आंकड़ों की बात करें तो, भारत हर साल औसतन करीब 33 मिलियन डॉलर के रेयर अर्थ और उससे जुड़े केमिकल्स आयात करता है. FY25 में यह आंकड़ा लगभग 31.9 मिलियन डॉलर रहा. वहीं, मैग्नेट्स का आयात इस दौरान कहीं ज्यादा रहा- औसतन 249 मिलियन डॉलर, जो FY25 में बढ़कर 291 मिलियन डॉलर हो गया. इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल बेसिक मेटल्स और इलेक्ट्रिकल/ऑप्टिकल उपकरण बनाने वाली कंपनियों में होता है. इसलिए आने वाले समय में अगर भारत को इस तरह की वैश्विक अस्थिरता से बचना है, तो रेयर अर्थ मिनरल्स के मामले में आत्मनिर्भरता बढ़ाना बहुत जरूरी होगा.

भारत को रेयर अर्थ में बनना होगा आत्मनिर्भर

रेयर अर्थ एक खास तरह का खनिज (मिनरल) होता है, जिसका इस्तेमाल आज की कई आधुनिक टेक्नोलॉजी में किया जाता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि यह चीजों को हल्का, टिकाऊ और एनर्जी की खपत में किफायती बनाता है. इसलिए इसका इस्तेमाल मोबाइल, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक गाड़ियां, विंड टर्बाइन और मेडिकल डिवाइसेज जैसे हाईटेक प्रोडक्ट्स में होता है. मैग्नेट्स में भी रेयर अर्थ बड़ी मात्रा में पाया जाता है. माना जाता है कि एक मैग्नेट का लगभग 33% हिस्सा रेयर अर्थ होता है. भारत में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और बिजली से जुड़े सेक्टरों में होता है

हाल की एक रिपोर्ट में सेक्टर दर सेक्टर यह देखा गया कि कहां सबसे ज्यादा रेयर अर्थ का इस्तेमाल होता है और अगर चीन जैसे देशों से इसकी सप्लाई रुक गई, तो किन-किन सेक्टरों पर असर पड़ेगा. इस रिपोर्ट के मुताबिक, रेयर अर्थ की कमी से इन सेक्टरों का उत्पादन भी रुक सकता है और बैंकों का फाइनेंशियल जोखिम भी बढ़ सकता है, क्योंकि कई कंपनियां इन सेक्टरों में लोन लेकर काम कर रही हैं.

बीते कुछ सालों में रेयर अर्थ का इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ा है, क्योंकि टेक्नोलॉजी और मशीनों की मांग भी लगातार बढ़ रही है. इसलिए अगर भारत को भविष्य में खुद को मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस बनाना है, तो उसे रेयर अर्थ की सप्लाई पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी, खासकर चीन जैसे देशों से, क्योंकि अभी हमारी ज्यादातर जरूरतें वहीं से पूरी होती हैं.

DIYA Reporter
Author: DIYA Reporter

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