जयपुर: अगर आपको आंखों में जलन, त्वचा पर चकत्ते, नाक बंद हो रही या सांस लेने में कठिनाई और घरघराहट का अनुभव हो रहा है, तो यह होलोप्टेलिया इंटीग्रिफोलिया ( Holoptelea integrifolia) पोल्लन (पराग) की वजह से हो सकता है. जी हां, यह पोल्लन जयपुर की हवा में इस साल पहली बार सोमवार को पाया गया.
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ये पेड़ फैला रहा खतरा
इसे चिलबिल या बंदर की रोटी के नाम से जाना जाता है. चिलबिल का पेड़ जयपुर में सबसे अधिक एलर्जिक पराग पैदा करने वाला पौधा है और इसका हवा में उपस्थित पराग स्तर एक से दो महीने तक उच्च रहता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, चिलबिल का पता लगाने के लिए बुर्कार्ड पराग काउंटर का उपयोग किया जाता है, जो हवा में पराग के स्तर को मॉनिटर करने वाला एक उन्नत उपकरण है.
सुबह-शाम खतरा अधिक
अस्थमा भवन की निदेशक डॉ. निष्ठा सिंह ने बताया कि चिलबिल का असर सुबह के समय और शाम के समय अधिक होता है, जिससे एलर्जी से प्रभावित व्यक्तियों के लिए बचाव के उपाय करना जरूरी हो जाता है.
अलर्ट होने की जरूरत
जयपुर में चिलबिल के पेड़ सड़क किनारे और सार्वजनिक पार्कों में अधिक पाए जाते हैं. सुबह टहलने वाले लोग और आम निवासी बिना यह समझे एलर्जी कहां से हो रही वे इसका शिकार हो जाते हैं. कहीं न कहीं इस एलर्जी का कारण इन पेड़ों में छिपा होता है. डॉक्टरों का कहना है कि चिलबिल पराग एलर्जी के बारे में जागरूकता अभी भी कम है.
