Explore

Search

December 22, 2024 11:31 pm

लेटेस्ट न्यूज़

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का फैसला………’संविधान से धर्मनिरपेक्ष-समाजवाद शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाएं खारिज…..

WhatsApp
Facebook
Twitter
Email

संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। ये याचिकाएं पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन और अन्य के द्वारा दायर की गईं थी। गौरतलब है कि साल 1976 में पारित हुए संविधान संशोधन के तहत धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद जैसे शब्दों को जोड़ा गया था। बीते शुक्रवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ‘इस याचिका पर विस्तार से सुनवाई करने की जरूरत नहीं है।’ सीजेआई ने कहा कि ‘समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द 1976 में संविधान संशोधन के जरिए जोड़े गए थे और इनसे 1949 में अपनाए गए संविधान पर कोई फर्क नहीं पड़ता।’

Banana Benefits: जानिए कैसे……’क्या सर्दी में केला खाना सेहत के लिए फायदेमंद है…..

इंदिरा गांधी सरकार में जोड़े गए थे ये शब्द

बता दें कि 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने 42वें संवैधानिक संशोधन करके संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द शामिल किए थे। इस संशोधन के बाद प्रस्तावना में भारत का स्वरूप ‘संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य’ से बदलकर ‘संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ हो गया था। सुनवाई के दौरान अपनी दलील देते हुए याचिकाकर्ता अधिवक्ता विष्णु कुमार जैन ने नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के एक हालिया फैसले का हवाला दिया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 39(बी) पर 9 जजों की पीठ के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि उस फैसले में शीर्ष कोर्ट ने “समाजवादी” शब्द की उस व्याख्या पर असहमति जताई जिसे शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी आर कृष्णा अय्यर और ओ चिन्नप्पा रेड्डी ने प्रतिपादित किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन का किया था बचाव

इस पर सीजेआई खन्ना ने कहा कि भारतीय संदर्भ में हम समझते हैं कि भारत में समाजवाद अन्य देशों से बहुत अलग है। हम समाजवाद का मतलब मुख्य रूप से एक कल्याणकारी राज्य समझते है। कल्याणकारी राज्य में उसे लोगों के कल्याण के लिए खड़ा होना चाहिए और अवसरों की समानता प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने 1994 के एसआर बोम्मई मामले में “धर्मनिरपेक्षता” को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा माना था। वकील जैन ने आगे तर्क दिया कि संविधान में 1976 का संशोधन लोगों को सुने बिना पारित किया गया था क्योंकि यह आपातकाल के दौरान पारित किया गया था। इन शब्दों को शामिल करने का मतलब लोगों को विशिष्ट विचारधाराओं का पालन करने के लिए मजबूर करना होगा। उन्होंने कहा कि जब प्रस्तावना एक कट-ऑफ तारीख के साथ आती है, तो इसमें नए शब्द कैसे जोड़े जा सकते हैं? पीठ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 368 संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति देता है और इसके विस्तार में प्रस्तावना भी आती है।

ताजा खबरों के लिए एक क्लिक पर ज्वाइन करे व्हाट्सएप ग्रुप

Leave a Comment

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर