Explore

Search
Close this search box.

Search

November 23, 2024 1:12 am

लेटेस्ट न्यूज़

24 की उम्र तक अनपढ़ , फिर लिख डाली 50 किताबें,रिक्शा चलाते हुए बने विधायक

WhatsApp
Facebook
Twitter
Email

स्क्रीन पर 12वीं फ़ेल फ़िल्म की धूम के बीच जेएलएफ में एक ऐसा भी साहित्यकार

जयपुर। 24 साल की उम्र तक ये अनपढ़ थे। जेल और फुटपाथों पर वक्त गुजारते हुए शब्दों से दोस्ती की। साइकिल रिक्शा पर सवारी ढोते हुए पेट पाला। अब सड़क से सदन तक पहुंच गए। आज भी कोई मार्कशीट-डिग्री इनके पास नहीं है लेकिन 10 उपन्यास सहित 50 किताबों के लेखक हैं ये। कॉलेज-यूनिवर्सिटीज की लाइब्रेरी में शान से पढ़ी जा रही हैं इनकी किताबें। इन पर पीएचडी करते हुए कई ने डॉक्टरेट की उपाधि ली।


जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की मनोरंजक दुनिया में यदि मनोरंजन ब्यापारी के दर्द को देखा-सुना, महसूस ना किया तो फेस्टिवल में जाना अधूरा ही है। पश्चिमी बंगाल के बालागढ़ सीट से पहली बार विधायक हैं। साहित्य लेखन के साथ ही सड़क से विधानसभा की दहलीज तक उनका सफर कलेजा चीर देने वाला है। बेहद प्रेरणास्पद। फ़्रंट लॉन में भास्कर से बातचीत में मनोरंजन ने हालात से टूट जाने वाले युवाओं से अपील की- मंजिल पाने तक हर हाल में डटे रहे मैदान में।

मनोरंजन ने बताया अपनी जिंदगी का असल परिचय-
-24 साल तक अक्षर तक नहीं जानते थे। आज 70 की उम्र (अनुमानित) मैं भी साहित्य सृजन जारी। कई पर नेशनल अवार्ड। -बंगाली साहित्य पर ज़बर्दस्त पकड़। कई किताबें हिन्दी-अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में अनुवादित। आत्मकथा भी लिखी।


-रेलवे स्टेशन पर कई साल तक गमछा बिछाकर सोए क्योंकि कंबल और कपड़ों का इंतजाम नहीं था। ज़िंदगी से लड़ना कोई इनसे सीखे। गरीबी के बीच माँ-बाप का साया उठा। भूख ने इतना तड़पाया की कुत्तों के मुंह से रोटी तक छीन कर खा जाते थे। किराए के साइकिल रिक्शे में सवारी और सामान ढोते थे। महाश्वेता देवी जब उनके रिक्शे में बैठीं तो उनसे जीजिविषा शब्द का अर्थ जाना। निश्चित जन्मतिथि पता नहीं। चुनाव के एफिडेविट में शिक्षा के बारे में लिखा-स्व शिक्षित।

जो जीना चाहता है उसे कोई नहीं मार सकता-
बतौर स्पेशल डेलीगेट्स फ़ेस्टिवल में शिरकत कर रहे मनोरंजन के दर्द के तार छिडे तो आंखें भर आई। एक ही बात कही- इस दुनिया में जो दिल से जीना चाहता है उसे कोई नहीं मार सकता। पूर्वी बांग्ला इलाक़े में पैदा हुए। बंगाल के शरणार्थी कैंप में बचपन गुजरा। कई जगह हालात से लड़े ! तरह-तरह की मजदूरी की! पीठ पर कई क्विंटल के बोरे तक उठाए। फफोले उठने के बाद भी आह तक नहीं की ! नक्सली संबंधौ के आरोप में जेल हुई तो वहीं से शुरुआत हुई साहित्य के सृजन की। जेल में ही अक्षर ज्ञान हुआ। फिर लिखने पढ़ने का जुनून सवार हो गया।विधायक बनने के बावजूद वे छोटे-छोटे ढाबों पर, सड़क किनारे खाना नहीं भूलते। तर्क देते हैं-अपना अतीत नहीं भूलना चाहता।

वरिष्ठ पत्रकार मदन कलाल की फेसबुक वॉल से साभार

ताजा खबरों के लिए एक क्लिक पर ज्वाइन करे व्हाट्सएप ग्रुप

Leave a Comment

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर