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July 19, 2025 10:18 pm

आखिर क्यों बढ़ रही घबराहट……’डॉलर के ‘दुश्मनों’ को डोनाल्ड ट्रंप की नई धमकी…..

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टैरिफ का चाबुक बनाकर दुनिया को डराने की कोशिश कर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डॉलर के ‘दुश्मनों’ को नई धमकी दे डाली है. उन्होंने कहा कि अगर ऐसे देशों ने अगर डॉलर के खिलाफ कोई भी साजिश रचने की कोशिश की तो उन्हें भारी कीमत चुकानी होगी.

वास्तव में व्हाइट हाउस में एक कार्यक्रम के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों से जुड़े देशों को कड़ी चेतावनी देते हुए धमकी दी कि अगर वे अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिशें जारी रखेंगे, तो उनके निर्यात पर 10 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा.

ट्रंप ने कहा कि वे डॉलर पर कब्ज़ा करने की कोशिश करना चाहते थे. हम ऐसा नहीं होने देंगे. ट्रंप की यह टिप्पणी नए क्रिप्टोकरेंसी कानून पर हस्ताक्षर समारोह के दौरान आई. हालांकि यह कानून डिजिटल असेट्स से जुड़े नए नियमों पर फोकस्ड था, लेकिन राष्ट्रपति ने इस अवसर का उपयोग उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक स्पष्ट संदेश देने के लिए किया. उन्होंने कहा कि डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने की कीमत चुकानी पड़ेगी.

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डर रहे हैं ब्रिक्स देश?

ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका द्वारा गठित ब्रिक्स गठबंधन का विस्तार अब मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात तक हो गया है. इस समूह ने अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए व्यापार समझौतों में लोकल करेंसी के उपयोग पर चर्चा की है, लेकिन ट्रंप का दावा है कि उनके आक्रामक व्यापार रुख का असर पहले ही दिखने लगा है.

उन्होंने कहा कि मेरे द्वारा चेतावनी जारी करने के बाद, उनकी अगली बैठक में उपस्थिति बहुत कम थी. वे टैरिफ नहीं चाहते थे. उन्होंने अपने रुख पर और जोर देते हुए चेतावनी दी कि अगर 1 अगस्त तक कोई व्यापार समझौता नहीं हुआ, तो वे ब्रिक्स देशों को नई टैरिफ व्यवस्था के बारे में आधिकारिक पत्र भेजना शुरू कर देंगे.

भारत ने किया पलटवार: ‘डी-डॉलराइजेशन एजेंडे में नहीं’

ब्रिक्स के फाउंडर मेंबर भारत ने “डी-डॉलरइजेशन” की बात से तुरंत दूरी बना ली. 17 जुलाई को, विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि समूह सक्रिय रूप से अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने की कोशिश नहीं कर रहा है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि हां, सीमा पार भुगतान के बारे में ब्रिक्स ने लोकल करेंसी पर बात की है. लेकिन डी-डॉलराइजेशन एजेंडे में नहीं है. यह संतुलित प्रतिक्रिया दर्शाती है कि ब्रिक्स के भीतर ऑप्शनल करेंसी को बढ़ावा देने की गति और दायरे पर सदस्य देशों के अक्सर अलग-अलग विचार होते हैं.

पहले भी दी जा चुकी है चेतावनी

यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने डॉलर के डिफेंस में ट्रेड पॉलिसी का इस्तेमाल किया है. 2024 में, उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर ब्रिक्स देश डॉलर की बराबरी करने वाली ज्वाइंट करेंसी बनाने की योजना पर आगे बढ़ते हैं, तो उन पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा.

शुक्रवार की टिप्पणी उसी रणनीति की निरंतरता को दर्शाती है, जिसमें मॉनेटरी डॉमिनेंस आक्रामक आर्थिक प्रवर्तन से जोड़ा गया है. ट्रंप ने कहा कि मैंने उन पर बहुत, बहुत ज़ोरदार प्रहार किया है, और यह बहुत जल्द खत्म हो जाएगा. मुझे नहीं लगता कि वे ऐसा करेंगे. वे लगभग मिलने से डरते हैं.

क्या है डी-डॉलराइजेशन?

डी-डॉलराइजेशन भले ही शब्द भले ही नया हो, लेकिन कई देश दशकों से अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की मांग कर रहे हैं. ब्राजील, रूस, चीन जैसे कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष वर्ल्ड ट्रेड में अमेरिकी प्रभुत्व की आलोचना कर रहे हैं. करीब दो साल पहले जनवरी में, खबर आई थी कि ईरान और रूस मिलकर गोल्ड से सपोर्टिड एक नई क्रिप्टोकरेंसी जारी करेंगे, जो विदेशी व्यापार में भुगतान पद्धति के रूप में काम करेगी. यह राजनीतिक रूप से तटस्थ रिजर्व करेंसी बनाने की दिशा में एक नया था.

कैसे मजबूत होता गया डॉलर?

डॉलर की डॉमिनेंस पर समय-समय पर सवाल उठाए जाते रहे हैं. उसके बाद भी डॉलर की स्वीकार्यता काफी लंबे समय से बनी हुई है. 1920 के दशक में, जब देश प्रथम विश्व युद्ध से बिना किसी नुकसान के उभरा, तब से अमेरिकी डॉलर ने अंतरराष्ट्रीय आरक्षित मुद्रा के रूप में पाउंड स्टर्लिंग की जगह लेना शुरू कर दिया.

ब्रेटन वुड्स सिस्टम ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद डॉलर की स्थिति को और मज़बूत किया. चूंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और भी मज़बूत होकर उभरा, इसलिए 1944 के समझौते ने युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय मॉनेटरी सिस्टम की स्थापना की जिसने अमेरिकी डॉलर को वैश्विक स्तर पर दुनिया की प्रमुख रिजर्व करेंसी बनने में मदद की.

डी-डॉलराइजेशन फिर बना मुद्दा?

अमेरिकन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च के अनुसार , ईरान—इजराइल और रूस—यूक्रेन वॉर के दौरान कई तर​ह के आर्थिक व्यवधान देखने को मिले है. साथ ही इस माहौल ने स्विफ्ट जैसी अंतर्राष्ट्रीय डॉलर-ट्रेड सिस्टम से अलग होने के कारण, छोटे देशों को विकल्प तलाशने के लिए प्रेरित किया. कुछ साल पहले भारत और मलेशिया ने हाल ही में घोषणा की थी कि उन्होंने कुछ लेन-देन के लिए भारतीय रुपए का इस्तेमाल शुरू कर दिया है .

इसी तरह, सऊदी अरब के वित्त मंत्री ने जनवरी 2023 में ब्लूमबर्ग को कहा था कि उनका देश अमेरिकी डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं में व्यापार पर चर्चा के लिए तैयार है. फरवरी 2023 में चीन ने भी फ्रांस के साथ युआन में नेचुरल गैस के लिए ट्रायल ट्रेड एग्रीमेंट किया था.

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