ठंड के मौसम में दिल्ली में होने जा रहे विधानसभा चुनाव ने राजधानी के साथ लखनऊ तक की सियासत को गरम कर दिया है। दिल्ली में सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुआई वाली केंद्र सरकार को निशाने पर रखते हुए लगाई गई एक ‘अदालत’ ने कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है। आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के साथ मंच साझा करने वाले अखिलेश यादव ने कांग्रेस को नया क्लेश दे दिया है। यह घटनाक्रम ऐसे समय पर हुआ है जब ‘इंडिया’ गठबंधन के कई साथी राहुल गांधी की जगह ममता बनर्जी को नेतृत्व सौंपने की वकालत कर रहे हैं।
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यूं तो ‘आप’ और सपा दोनों इंडिया गठबंधन के साथी हैं, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में ‘आप’ और ‘कांग्रेस’ एक दूसरे से टकरा रही हैं। ऐसे में सपा ने कांग्रेस की बजाय अरविंद केजरीवाल को तरजीह देकर नए समीकरणों को हवा दे दी है। यूपी में राहुल गांधी के साथ ‘दो लड़कों की जोड़ी’ बना चुके अखिलेश यादव के ताजा कदम के कई मायने निकाले जा रहे हैं। अखिलेश यादव ने ना सिर्फ केजरीवाल के साथ मंच साझा किया बल्कि उन्हें ‘दिल्ली का लाल’ बताते हुए एक बार फिर उन्हें जितवाने की अपील की।
अखिलेश यादव ने अरविंद केजरीवाल की जमकर तारीफ की और निशाने पर भाजपा और केंद्र सरकार को रखा। भले ही उन्होंने कांग्रेस का नाम नहीं लिया, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए इसे एक बड़े झटके को तौर पर देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस की बजाय केजरीवाल को तरजीह देकर अखिलेश यादव ने कांग्रेस को स्पष्ट संकेत दे दिया है। भले ही दिल्ली चुनाव में सपा की कोई खास भूमिका ना हो, लेकिन उन्होंने कांग्रेस पर दबाव जरूर बढ़ा दिया है। दूसरी तरफ खुद केजरीवाल और संजय सिंह ने अखिलेश यादव की खूब तारीफ की और उन्हें सुख दुख में साथ देने वाला नेता बताया।
नेतृत्व को लेकर पहले ही दबाव में चल रही कांग्रेस फिलहाल अखिलेश की नई दोस्ती पर चुप्पी साधे हुए है। आगे सपा और कांग्रेस के रिश्ते किस दिशा में बढ़ते हैं इस पर लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई है। कुछ विश्लषकों का यह भी मानना है कि यह अखिलेश यादव की प्रेशर पॉलिटिक्स से अधिक कुछ नहीं है। ना तो अखिलेश यादव केजरीवाल की दिल्ली में ज्यादा कुछ मदद कर सकते हैं और ना ही ‘आप’ यूपी में कोई खास जनाधार रखती है। अखिलेश अगले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को दबाव में रखना चाहते हैं।