2014 से पहले हम निराशा की गर्त में डूबे हुए थे। हर तरफ हताशा और निराशा का माहौल था, लेकिन आज देश आत्मविश्वास से भरा हुआ है।
नरेन्द्र मोदी के भाषण की ये पंक्तियां किसी चुनावी मंच से नहीं कही गई हैं, बल्कि रूस में भारतीय समुदाय के बीच श्री मोदी ने बतौर भारत के प्रधानमंत्री ने जो भाषण दिया, उसमें इस तरह की बात कही। श्री मोदी ने ये भी कहा कि ‘चुनावों के दौरान मैंने कहा था कि- पिछले 10 सालों में भारत ने जो विकास किया है, वह तो सिर्फ एक ट्रेलर है। आने वाले 10 साल और भी तेजी से विकास के होने वाले हैं। भारत की नयी गति, दुनिया के विकास का नया अध्याय लिखेगी।
रस्सी जल गई बल नहीं गए, इसी को कहते हैं। 2024 के चुनाव परिणाम ने बता दिया कि भाजपा जनता के जिस विश्वास और समर्थन के दावे किया करती थी, वो गलत साबित हुए। भाजपा सत्ता में आ तो गई है, लेकिन जदयू और तेदेपा के समर्थन के कारण आई है और अगर किसी वजह से इन दोनों दलों में से किसी एक ने भी अपना हाथ सरकार से वापस खींच लिया, उसी दिन सरकार संकट में आ जाएगी। लेकिन नरेन्द्र मोदी देश से लेकर विदेश तक अपनी जीत को असलियत से बड़ा बताने में लगे हुए हैं। देश में विकास के दावे भी कुछ इसी अंदाज में श्री मोदी कर रहे हैं। 10 सालों के विकास को वे ट्रेलर बता रहे हैं, और आने वाले दस सालों के विकास की बात कर रहे हैं। इस तरह नरेन्द्र मोदी ये मानकर चल रहे हैं कि 2029 के चुनावों में भी उन्हें ही प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलेगा।
हालांकि उन्हें पहले अपने शासन में विकास के ट्रेलर को देख लेना चाहिए। ट्रेलर में तो यही नजर आ रहा है कि 2016 में हुई नोटबंदी, फिर जीएसटी के लागू होने और उसके बाद 2020 में कोविड के कारण देश के अनौपचारिक क्षेत्र को 11.3 लाख करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ है। साथ ही 1.6 करोड़ नौकरियां ख़त्म हुई हैं। देश में बेरोजगारी फिर से बढ़ गई है और महंगाई भी चुनावों के बाद से लगातार बढ़ ही रही है। आने वाली 23 जुलाई को जब एनडीए सरकार का पहला बजट पेश होगा, तब सरकारी खजाने से लेकर सरकार की नीयत तक सबका खुलासा हो ही जाएगा। लेकिन फिलहाल जिस तरह खाद्य साम्रगियों से लेकर मोबाइल का इस्तेमाल तक सब महंगा हो गया है, उस से विकास के ट्रेलर और पूरी पिक्चर का अंदाजा लग जाता है। भाजपा नेताओं के लिए यह महंगाई शायद मजाक का विषय है। इसलिए एक बार निर्मला सीतारमण संसद में कह चुकी हैं कि हमारे घर में प्याज नहीं खाई जाती, और अब उत्तरप्रदेश में कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने कहा कि कहीं भी दाल सौ रूपए किलो से ज्यादा में नहीं बिकती। भाजपा के नेता जानते हैं कि वे गलत कह रहे हैं और खाद्य सामग्री को सस्ता बताने के उनके दावे गरीबों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसे हैं, क्योंकि इससे उनकी समस्या तो सुलझती नहीं, तकलीफ अलग होती है कि सरकार हकीकत से कितनी बेपरवाह है।
प्रधानमंत्री मोदी भी इसी बेपरवाही की मिसाल बार-बार देते हैं। मणिपुर से लेकर महंगाई तक उनके सारे दावे बेकार हैं, इस बात को वे भी समझते हैं, फिर भी लोगों को भटकाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। भारतीयों में नए आत्मविश्वास की बात करने वाले श्री मोदी क्या इस कड़वी सच्चाई को नहीं जानते कि अच्छे संस्थाओं ने दाखिले के न होने, परीक्षा के पर्चे लीक होने, बेरोजगारी या कर्ज के कारण छात्रों से लेकर किसानों और उद्यमशील लोगों तक में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कहीं पति-पत्नी बेरोजगारी के कारण जान दे रहे हैं, कहीं बाप-बेटे एक साथ रेल के सामने आ कर मौत को गले लगा रहे हैं। ये खबरें पुलिस थानों के रोजनामचों में तो दर्ज हो कर गुम हो जाया करती हैं, बहुत हुआ तो इनसे जुड़े लोग दो-चार दिन इन पर चर्चा कर लेते हैं, लेकिन जब तक ये सरकार के लिए चर्चा का विषय नहीं बनेंगी, तब तक आत्मविश्वास और विकास को लेकर लफ्फाजी के लिए जगह बनती रहेगी।
हैरानी की बात यह है कि 10 साल तक लगातार सत्ता में रहकर भी नरेन्द्र मोदी भारत की जमीनी हकीकत से कितने दूर हैं। 2014 में जब भाजपा ने 10 सालों के यूपीए शासन को खत्म करने में कामयाबी हासिल की थी, तो उसके बाद नरेन्द्र मोदी समेत तमाम भाजपा नेताओं में अति आत्मविश्वास भर जाना स्वाभाविक था। इसी अतिआत्मविश्वास के चलते नरेन्द्र मोदी ने मई 2015 में द.कोरिया के सियोल में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा था कि-
”एक समय था जब लोग कहते थे- पता नहीं पिछले जन्म में क्या पाप किया है हिंदुस्तान में पैदा हो गए, ये कोई देश है! ये कोई सरकार है! ये कोई लोग हैं! चलो छोड़ो, चले जाओ कहीं और। और लोग निकल पड़ते थे, कुछ वर्षों में हम ये भी देखते थे, उद्योग जगत के लोग कहते थे कि अब तो यहां व्यापार नहीं करना चाहिए, अब यहां नहीं रहना है। और ज्यादातर लोगों ने तो एक पैर बाहर भी रख दिया था। मैं इसके कारणों में नहीं जाता हूं। और न ही मैं कोई राजनीतिक टीका-टिप्पणी करना चाहता हूं।लेकिन यह धरती की सच्चाई है कि लोगों में एक निराशा थी, आक्रोश भी था। और मैं आज विश्वास से कह सकता हूं कि अलग-अलग जीवन क्षेत्रों के गणमान्य लोग बड़े-बड़े साइंटिस्ट क्यों न हो, विदेशों में ही कमाई क्यों न होती हो उससे कम कमाई होती हो तो भी आज भारत वापस आने के लिए उत्सुक हो रहे हैं, आनंदित हो रहे हैं।”
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यह आश्चर्य की बात है कि सत्ता संभालने के साल भर के भीतर ही श्री मोदी को अपने शासन की कामयाबी पर इतना यकीन था कि उन्होंने यह मान लिया था कि विदेश में रह रहे भारतीय देश वापस आने को उत्सुक हो रहे हैं। हालांकि वतन वापसी की यह उत्सुकता जमीन पर तो नदारद ही दिखी और इसकी पुष्टि सरकार के आंकड़े से ही हो जाती है। 2015 में जब नरेन्द्र मोदी यह सब कह रहे थे, उसी साल 1,31,489 लोगों ने देश की नागरिकता छोड़ दी और दूसरे देशों में जाकर बस गए। यह सिलसिला आने वाले बरसों में भी रुका नहीं। जुलाई 2022 के मानसून सत्र में मोदी सरकार ने बीते तीन साल में भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों का जो आंकड़ा पेश किया था। उसके मुताबिक करीब 4 लाख नागरिकों ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी थी। वहीं 2023 में बताया गया था कि पिछले 12 सालों यानी 2011 से लेकर 2023 तक करीब 16 लाख लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी।
अच्छी नौकरी, बेहतर जीवन स्तर, सामाजिक सुरक्षा और सम्मान, व्यवसाय की सुविधा, पढ़ाई, इलाज बहुत से कारण हैं, जिनकी वजह से भारतीयों के देश छोड़कर जाने का सिलसिला बढ़ रहा है। एनआरआई का दर्जा पाकर अपनी ऊंची हैसियत पर इठलाने वाले ये भारतीय विदेशों में 15 अगस्त या क्रिकेट में जीत के मौकों पर गाहे-बगाहे तिरंगा लहराकर अपनी देशभक्ति के प्रदर्शन से पीछे नहीं रहते हैं। लेकिन भारत से इनका प्यार दूर-दूर से ही है, सात समंदर पार कर देश में रहकर ये अपनी राष्ट्रभक्ति नहीं दिखलाना चाहते। कमाल ये है कि जब नरेन्द्र मोदी विदेश पहुंचते हैं, तो विदेशी धरती पर भारतीय नृत्य-संगीत और माथे पर तिलक लगवाकर गदगद हो जाते हैं कि भारतीय अपनी परंपरा को विदेश में जिंदा रखे हुए हैं। इन्हीं भारतीयों के बीच श्री मोदी भारत के विकास और 2014 के बाद जागे आत्मविश्वास की बात भी करते हैं।
लेकिन इस आत्मविश्वास को साबित करने कहा जाए तो न नरेन्द्र मोदी इन भारतीयों से कह सकते हैं कि अब तो देश मैं संभाल रहा हूं, तो चलो आप लोग वहीं बस जाओ, मेरे साथ मिलकर देश का विकास करो। न ये भारतीय बड़ी मशक्कत से हासिल अपनी विदेशी नागरिकता को छोड़कर भारत आकर बसने को तैयार होंगे। इन्हें दोनों हाथों में लड्डू चाहिए। और नरेन्द्र मोदी अपने भाषण से विदेश में बसे भारतीयों को दोनों हाथों में लड्डू का अहसास करवाते भी हैं, लेकिन देश में 5 किलो राशन के लिए लाइन में लगने वाले 80 करोड़ गरीब, लाखों बेरोजगार और करोड़ों पीड़ित लोग जानते हैं कि जन्नत की हकीकत क्या है।