जैन धर्म: एकता और समृद्धि की दिशा में :
जैन धर्म विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से एक है, जिसकी जड़ेंआदिकाल से जुड़ी हुई हैं। तीर्थंकर महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतआज के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान समय में, जैन धर्म केपाँच मूल सिद्धांत-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य औरअपरिग्रह-समाज की अनेक जटिल समस्याओं का समाधान प्रस्तुतकरते हैं। इन सिद्धांतों का पालन न केवल व्यक्तिगत उन्नति का मार्गप्रशस्त करता है, बल्कि विश्वशांति और सामाजिक सद्भाव को भीसुदृढ़क रता है।
यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है किह में जैन धर्म की महान परंपराविरासत में प्राप्त हुई है। इस धर्म कीउ दारता और उच्च आदर्शों केकारण अन्य समुदाय भी इस का आदर करते हैं और इसेसम्मानजनक दृष्टि से देखते हैं।
विभाजन की पीड़ा और समाज की वर्तमान स्थिति :
किन्तु यह अत्यंत दुखद एवं चिंताजनक है कि जैन समाज आजअनेक छोटे-छोटे समूहों में विभाजित हो गया है। हमारे समाज कीजनसंख्या भारत की कुल जन संख्या का 1% भी नहीं है, फिर भी हमविभिन्न संप्रदायों, पूजा-पद्धतियों, तीर्थंकरों, आचार-विचारों,साहित्य, मंदिरों, स्थानकों और त्योहारों के आधार पर बंटे हुए हैं। इसविभाजन ने सामाजिक समरसता को बाधित किया है। आज स्थितियह है कि हम स्वयं को जैन तो कहते हैं, परंतु एक-दूसरे को अपनेपारिवारिक आयोजनों में आमंत्रित करने तक में संकोच करते हैं।हमारे साधु-संत भी एक ही मंच पर विराजमान होकर प्रवचन देने सेकतराते हैं।सार्थक पहल की आवश्यकता :
मेरी समस्त प्रबुद्ध जैन समाज से विनम्र अपील है कि यदि आप अपनीपूजा-पद्धति, अपने गुरु परंपरा और अपनी धार्मिक मान्यताओं कोनहीं बदल सकते, तो न बदलें। किंतु इतना अवश्य करें कि जब आपअपने मंदिरों और स्थानकों से बाहर आएँ, तो स्वयं को केवल’ जैन’ समझें। भीतर भले ही आप किसी भी परंपरा के अनुयायी हों, किंतुसमाज में हमें एकता का परिचय देना होगा।
यदि यह भावना संपूर्ण समाज में विक सित हो जाती है, तो यह हमारीसबसे बड़ी सफलता होगी और हमारे लक्ष्य की ओर एक बड़ा कदमसाबित होगा। आशा है कि आप सभी इस भावना को समझेंगे औरसकारात्मकता के साथ इस पर विचार करेंगे। हमारी ‘अहिंसाफाउंडेशन’ की स्थापना भी इसी उद्देश्य के साथ की गई है कि समाजमें जैन एकता को पुनर्स्थापित किया जा सके। आइए, हम सबमिलकर एक सशक्त और संगठित जैन समाज का निर्माण करें।
