जुलाई में रिटेल महंगाई दर लगभग 5 साल के निचले स्तर पर आ गई लेकिन जून की तुलना में महंगाई में कोई खास कमी नहीं आई। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में महंगाई दर फिर से बढ़ सकती है। जुलाई में खुदरा महंगाई दर 7.44% से घटकर 3.54% हो गई। महंगाई में इस गिरावट का मुख्य कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतों में नरमी रही, जो पिछले साल के 11.5% की तुलना में 5.42% पर आ गई।
SBI इकोरैप रिपोर्ट में कहा गया, ‘जुलाई में फूड इंफ्लेशन ऊंचे बेस इफेक्ट के चलते घटी। अनाज उत्पादन वाले प्रमुख राज्यों में बारिश कम है वहीं, ला निना का प्रभाव बढ़ने से अगस्त और सितंबर में जरूरत से ज्यादा बारिश हो सकती है। फसलों को नुकसान हो सकता है और खाने-पीने की चीजों पर बुरा असर होगा। हमारा मानना है कि वित्त वर्ष 2025 में महंगाई दर आरबीआई के 4.5% के अनुमान से ज्यादा रह सकती है।’
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मॉनसून का असर
केयरएज की चीफ इकनॉमिस्ट रजनी सिन्हा ने कहा, ‘अगस्त और सितंबर में बेस इफेक्ट प्रतिकूल हो जाएगा। लिहाजा जुलाई में दिखा ट्रेंड पलट सकता है। अखिल भारतीय स्तर पर बारिश सामान्य से 6% अधिक है, लेकिन पंजाब, हरियाणा और गंगा के पूर्वी मैदानी इलाकों में बारिश कम हुई है। खरीफ सीजन में बुआई पिछले साल से 6% ज्यादा है लेकिन पिछले साल अल निनो इफेक्ट का बुरा असर पड़ा था और तुलना उस स्तर से हो रही है। 2022 के मुकाबले दलहन की बुआई अभी 6.2% कम है। यह चिंता की बात है क्योंकि पिछले 14 महीनों से दालों में इंफ्लेशन 10 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। आने वाले दिनों में जियो पॉलिटिकल टेशन से भी रिस्क बढ़ सकता है।’
वहीं, सालभर पहले के मुकाबले जुलाई में इंफ्लेशन भले घटी हो, जून के मुकाबले इसमें इजाफा रहा। फूड एंड बेवरेजेज, पान- टोबैको, क्लोदिंग एंड फुटवियर, हाउसिंग और मिलेनियस कैटेगरीज में इंडेक्स जून के मुकाबले जुलाई में बढ़ा। सिन्हा ने कहा, ‘जुलाई में मासिक आधार पर कीमतें 2.5% बढ़ीं, जो पहली तिमाही में 1.3% की औसत मासिक बढ़ोतरी से अधिक है। जून के मुकाबले जुलाई में सब्जियों के दाम 14.19% बढ़े। सितंबर में खरीफ की फसल आने से फूड प्राइसेज में मासिक आधार पर नरमी दिख सकती है। लेकिन मॉनसूनी बारिश का पहलू अहम रहेगा वित्त वर्ष 2025 में महंगाई दर 4.8% रहने का अनुमान है।’
भू राजनीतिक तनाव का असर
मॉनसूनी बारिश के पहलू के साथ विभिन्न देशों के बीच बढ़ रहा तनाव भी चिंता का विषय है। बेंट कूड पिछले 6 महीनों में करीब 3% घटकर 80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास आ गया है लेकिन इंटरनैशनल एनर्जी एजेंसी का अनुमान है कि साल के अंत तक यह 85-90 डॉलर पर जा सकता है। इससे भी महंगाई को हवा मिल सकती है।