Jaipur city is unsafe in Night driving: जयपुर शहर में देर रात बाइक सवार युवकों के उत्पात से कार चालकों में दहशत का माहौल है। नशे में धुत होकर चलती गाड़ी पर बोतल फेंक देना हो या फिर पत्थरों से हमला ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। शहर में दो ताजा मामले सामने आए हैं, लेकिन दोनों ही पीड़ित पुलिस तक नहीं पहुंचे। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे कई लोग छोटा-मोटा नुकसान होने पर कानूनी प्रक्रिया के झंझट में नहीं पड़ना चाहते। इसके बावजूद पुलिस गश्त, नाइट पेट्रोलिंग और नाकाबंदी को और सख्त बनाना जरूरी है, ताकि नशे में वाहन दौड़ाने वाले युवकों पर कार्रवाई हो सके।
केस-1: चलती कार पर पत्थर मारकर भागे बदमाश
हाल ही टोंक रोड निवासी दंपती कार से ओटीएस होते हुए सूचना आयोग कार्यालय के सामने से झालाना की ओर जा रहे थे। रात का समय था और सड़क अपेक्षाकृत शांत थी। जैसे ही उनकी कार सूचना आयोग भवन के पास पहुंची, अचानक एक बाइक पर आए युवक ने चलती कार पर पत्थर दे मारा और तेज रफ्तार से वहां से फरार हो गए। अचानक हुए हमले से कार सवार घबरा गए। कार पर पत्थर लगने से जोर की आवाज हुई और कुछ पल के लिए वे कुछ समझ नहीं पाए। डर के कारण उन्होंने पुलिस को सूचना देने का साहस भी नहीं किया। दंपती का कहना है कि उन्हें लगा कि शिकायत करने पर और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
केस-2: बोतल फेंकी, कार का शीशा टूटा
मानसरोवर निवासी राकेश रविवार रात करीब 11 बजे पत्नी और बेटी के साथ कार से घर लौट रहे थे। द्रव्यवती नदी पुलिया के पास अचानक सामने से दो युवक तेज रफ्तार में बाइक पर आते दिखाई दिए। पीछे बैठे युवक के हाथ में शराब की बोतल थी। जैसे ही उनकी बाइक कार के पास पहुंची, युवक ने चलते-चलते बोतल सीधे कार के आगे के शीशे पर दे मारी। तेज धमाके से कार का आगे का शीशा चकनाचूर हो गया और राकेश ने बड़ी मुश्किल से कार पर नियंत्रण बनाया। परिवार सदमे में था, लेकिन संभलने तक बाइक सवार गुर्जर की थड़ी की ओर तेज गति से भाग निकले और एक गली में ओझल हो गए।
सुरक्षा के इंतजामों पर बड़ा सवाल
जयपुर शहर में प्रमुख सड़कों पर पुलिस ने निगरानी के लिए एआइ युक्त सीसीटीवी कैमरे लगवाए गए हैं। जिन्हे पुलिस कंट्रोल रूम स्थित अभय कमांड सेंटर से जोड़ा गया है। बावजूद इसके शहर की सड़कों पर उत्पात मचाने वालों पर सख्ती से कार्रवाई नहीं हो रही है। बदमाश खुलेआम वारदात कर आसानी से फरार हो जाते हैं और पुलिस जांच के नाम पर पीड़ित पक्ष खुद को ही प्रताड़ित महसूस करता है।





