Magh Snan 2024: शास्त्रों के अनुसार माघ मास में गंगा स्नान और प्रयाग में स्नान करना अति शुभ माना गया है. कहा जाता है कि यहां स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. माघ मास के स्नान का महत्व और स्नान करने की विधि भविष्य पुराण में वर्णित है.
किन्हें मिलता है तीर्थ और स्नान-दान का फल
भविष्य पुराण (उत्तर पर्व, अध्याय क्रमांक 122) के अनुसार, कलियुग में मनुष्यों को स्नान-कर्म में शिथिलता रहती है, फिर भी माघ स्नान का विशेष फल होने से इसकी विधि का वर्णन किया गाया है. जिनके हाथ, पांव, वाणी, मन, अच्छी तरह संयत हैं और जो विद्या, तप तथा कीर्ति से समन्वित हैं, उन्हें ही तीर्थ, स्नान-दान आदि पुण्य कर्मों का शास्त्रों में निर्दिष्ट फल प्राप्त होता है. लेकिन श्रद्धाहीन, पापी, नास्तिक, संशयात्मा – इन व्यक्तियों को शास्त्रोक्त तीर्थ-स्नान आदि का फल नहीं मिलता.
माघ स्नान का महत्व
प्रयाग, पुष्कर तथा कुरुक्षेत्र आदि तीर्थों में अथवा किसी भी पवित्र स्थान पर ‘माघ स्नान’ करना हो तो प्रातःकाल ही स्नान करना चाहिए. माघ मास में प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से सभी महापातक दूर हो जाते हैं और प्राजापत्य-यज्ञ का फल प्राप्त होता है. वायव्य, वारुण, ब्राह्म और दिव्य- ये चार प्रकार के स्नान होते हैं. गायों के रज से वायव्य (वायु से संबंधित). मन्त्रों से ब्राह्म. समुद्र, नदी, तालाब इत्यादि के जल से वारुण तथा वर्षा के जल से स्नान करना दिव्य स्नान कहलाता है. इनमें वारुण स्नान विशिष्ट स्नान है.
ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासी और बालक, तरुण, वृद्ध, स्त्री तथा नपुंसक आदि सभी माघ मास में तीर्थों में स्नान करने से उत्तम फल प्राप्त करते हैं. ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य और शूद्र सभी वर्ण यह स्नान कर सकते हैं. माघ मास में जल का यह कहना है कि जो सूर्योदय होते ही मुझमें स्नान करता है, उसके ब्रह्महत्या, सुरापान (दारू) आदि बड़े-से-बड़े पाप भी हम तत्काल धोकर उसे सर्वथा शुद्ध एवं पवित्र कर डालते हैं.
माघ स्नान के नियम
- माघ-स्नान के व्रत करने वाले व्रती को चाहिए कि वह संन्यासी की भांति संयम-नियम से रहे, दुष्टों का साथ नहीं करें. इस प्रकार के नियमों का दृढ़ता से पालन करने से सूर्य-चन्द्र के समान उत्तम ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
- पौष-फाल्गुन के मध्य मकर के सूर्य में तीस दिन प्रातः माघ-स्नान करना चाहिए (26 जनवरी से शुरू हो रहा है माघ महीना). ये तीस दिन विशेष पुण्यप्रद हैं. माघ के प्रथम दिन ही संकल्प–पूर्वक माघ स्नान का नियम ग्रहण करना चाहिए. स्नान के लिए जाते समय व्रती को बिना गर्म वस्त्र ओढ़े (अलग से गरम कपड़े नही पहनना) जाने से जो कष्ट सहन करना पड़ता है, उससे उसे यात्रा में पग-पगपर अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है.
- तीर्थ में जाकर स्नान कर मस्तक पर मिट्टी लगाकर सूर्य को अर्घ्य देकर पितरों का तर्पण करें. जल से बाहर निकलकर इष्ट–देव को प्रणाम कर शंख-चक्रधारी पुरुषोत्तम भगवान श्री माधव का पूजन करें. अपनी सामर्थ्य के अनुसार यदि हो सके तो प्रतिदिन हवन करें, एक ही बार भोजन करें, ब्रह्मचर्य व्रत धारण करें और भूमिपर शयन करें.
- असमर्थ होने पर जितना नियम का पालन हो सके उतना ही करें, परंतु प्रातः स्नान अवश्य करना चाहिए. तिल का उबटन, तिलमिश्रित जल से स्नान, तिलों से पितृ तर्पण, तिल का हवन, तिल का दान और तिल से बनी हुई सामग्री का भोजन करने से किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है.
- तीर्थ में शीत के निवारण करने के लिये अग्नि प्रज्वलित करनी चाहिए. तेल और आंवले का दान करना चाहिए. इस प्रकार एक माह तक स्रान कर अन्त में वस्त्र, भोजन आदि देकर वेद पारायण ब्राह्मण का पूजन करें और कम्बल, वस्त्र, रत्न तथा अनेक प्रकार के पहनने वाले कपड़े, रजाई, जूता एवं जो भी शीतनिवारक वस्त्र हैं, उनका दान कर ‘माधवः प्रीयताम्‘ यह वाक्य बोलना चाहिए.
- इस प्रकार माघ मास में स्नान करने वाले के अगम्यागमन (आगे और पीछे), सुवर्ण की चोरी आदि गुप्त अथवा प्रकट जितने भी पातक हैं, सभी नष्ट हो जाते हैं. माघ स्नायी पिता, पितामह, प्रपितामह तथा माता, मातामह, वृद्धमातामह आदि इक्कीस कुलों सहित समस्त पितरों आदि का उद्धार कर और सभी आनन्दों को प्राप्त कर अन्त में विष्णु लोक को प्राप्त करता है.