लोहड़ी एक पंजाबी लोक त्योहार है जो हर साल जनवरी में मनाया जाता है. यह त्योहार ज्यादातर उत्तर भारत में फसल के त्योहार के रूप में बहुत खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है. सिख परिवारों के अलावा यह नवविवाहित जोड़ों के लिए भी बहुत खास होता है. लोहड़ी के इस त्योहार को पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली समेत देश के सभी सिख परिवारों के द्वारा मनाया जाता है. ऐसे में कई लोगों के मन सवाल होता है कि लोहड़ी का नाम कैसे पड़ा? आइए जानते हैं कैसे पड़ा लोहड़ी का नाम और हर साल इसे क्यों मनाया जाता
कैसे पड़ा लोहड़ी नाम?
लोहड़ी शब्द ‘तिलोहड़ी’ यानी ‘तिल’ से आया है जिसका अर्थ है तिल और ‘रोरही’ का अर्थ है गुड़. इसीलिए इसे लोहड़ी कहा जाता है. तिलोड़ी समय के साथ बदलते हुए लोहड़ी बन गया और इसी नाम से प्रसिद्ध हो गया. पंजाब के इस मुख्य पर्व आज भी कई इलाको में इसे लोई कहा जाता है. इस दिन गुड़,गजक,तिल जैसे खाने की वस्तुएं अग्नि के देवता को चढ़ाए जाते हैं.
लोहड़ी का पर्व किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है. इस दौरान खेतों में फसल लहलहाने लगती है. यह त्योहार ज्यादातर उत्तर भारत में फसल के त्योहार के रूप में बहुत खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह गन्ना, मूंगफली और मूली जैसी फसलों की कटाई का प्रतीक है. इस दिन फसल की पूजा भी की जाती है. चूंकि लोहड़ी के समय ठंड का मौसम होता है, इसलिए आग जलाने का चलन है और इस आग में तिल, मूंगफली, मक्का आदि से बनी चीजों को अर्पित किया जाता है.
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लोहड़ी के पर्व का मुख्य आकर्षण रात को जलाई जाने वाली आग है जिसे लोहड़ी कहा जाता है. इस दिन रात में एक स्थान पर आग जलाई जाती है. सभी लोग इस आग के इर्द-गिर्द इकट्ठा होते हैं. सभी लोग मिलकर अग्निदेव को तिल,गुड़ आदि से बनी मिठाइयां अर्पित करते हैं. इसके बाद परिवार के लोग और करीबी दोस्त, रिश्तेदार वगैरह मिलजुलकर ढोल-नगाढ़ों पर भांगड़ा और गिद्दा वगैरह करते हैं और एक दूसरे को लोहड़ी की बधाइयां देते हैं.
लोहड़ी की रस्में
लोहड़ी के मौके पर कुछ खास पारंपरिक गीत गाए जाते हैं. लोग एक दूसरे के को गले मिलकर लोहड़ी की बधाई देते हैं. नई बहुओं के लिए ये दिन और भी विशेष होता है. ये चीजें लोहड़ी के पर्व को बेहद खास बना देती हैं. लोहड़ी के मौके पर दुल्ला भट्टी की कहानी जरूर सुनाई जाती है. इस कहानी के बिना लोहड़ी की रस्म पूरी नहीं मानी जाती.