जोधपुर:- जब कोई व्यक्ति अपने जीवन से हताश हो जाता है या फिर निराश हो जाता है और अपने मन के अंदर की परेशानी को किसी के सामने बयां नहीं कर पाता, तो ऐसी परिस्थिति में वह व्यक्ति गलत कदम तक उठाने को मजबूर हो जाता है. इस स्थिति में उसे यह पता नहीं चलता कि वह जो कदम उठा रहा है, वह कितना खतरनाक है.
हाल ही में जोधपुर के मथानिया क्षेत्र में एक मामला भी सामने आया था, जिसमें एक ही परिवार के सभी लोगों की एक साथ मौत हो गई. इसमें यह सामने आया है कि पति-पत्नी अपने दो बच्चों के साथ नहर में कूद गए. इस दौरान महिला और बच्चों की मौत हो गई. वहीं पति नहर से निकलकर बाइक से रेलवे ट्रैक पर पहुंचा और ट्रेन के आगे आकर जान दे दी. ऐसे में इस मामले से भी समझा जा सकता है कि पति की मानसिक स्थिति क्या हो सकती है.
मानसिक बीमारी के समय उठाता है ये कदम
जोधपुर के मानोविकार विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. संजय गहलोत की मानें, तो उनका मानना है कि मानसिक रूप से व्यक्ति बीमार होता है, तब इस तरह का कदम उठा लेता है. मानसिक बीमारियों में बहुत समस्याएं होती हैं, जिसमें व्यक्ति खुद के साथ-साथ परिवार को भी नुकसान पहुंचा सकता है. ऐसे मानसिक व्यक्तियों को पहचानना बहुत जरूरी है और इसमें जागरूकता की काफी जरूरत है. ऐसे लक्षण दिखे, तो उनकी सहायता करने के लिए आगे आना चाहिए.
Govt approved plots in Jaipur @7000/- per sq yard call 9314188188
समय पर लक्षण पहचानने से इलाज संभव
इस प्रकरण में ज्यादातर यही कारण होते है कि आदमी या तो जिंदगी से निराश होता है, जिसमें आर्थिक तंगी,कर्ज, पत्नी पर शक या उसके किसी ओर से सम्बंध मुख्य कारण होते हैं. इस स्थिति में मानसिक रूप से व्यक्ति परेशान हो जाता है. वह व्यक्ति जिंदगी से हार जाता है और इस तरह के कदम उठा लेता है. ऐसे मरीजों का ध्यान रखना चाहिए और परिवार को चाहिए कि समय रहते उनकी पहचान करें. समय पर लक्षणों को पहचानने से मनौवैज्ञानिक के माध्यम से सहायता मिल जाती है.
मानसिक रोगी को ऐसे पहचानें
डॉ. संजय गहलोत ने कहा कि जब भी कोई मानसिक पीड़ित है, तो उसमें पहले लक्षण यही है कि उसके व्यवहार में बदलाव आ जाता है. वह व्यक्ति ज्यादातर अकेले रहने लगते है, समाज से दूरी बना लेते है. बात करने पर ऐसा लगता है कि उस व्यक्ति के जिंदगी में कुछ बचा ही नहीं है. यह लक्षण उनको एक गलत कदम की ओर ले जाने के लिए होते हैं. वह स्वयं को नुकसान पहुंचाने के लिए लग जाता है. घरवालों और समाज को समझ जाना चाहिए कि वह कोई समस्या में है.
बिखरते परिवार भी कारण
डॉ. संजय गहलोत ने कहा कि पहले एक समय था, जब संयुक्त परिवार हुआ करते थे. घर के बडे-बुजुर्ग इनको आसानी से पहचान लेते थे. काउंसलिंग का दायित्व माता-पिता का होता है. पहला जुड़ाव व्यक्ति का अपने परिवार से होता है. अब अलग रहते परिवारों के चलते सहायता और साधन उपलब्ध नहीं होते हैं. किसी व्यक्ति में मानसिक समस्या है, तो वह अस्पतालों में बने इन विभागों में आ सकते हैं, जहां काउंसलिंग सेंटर चल रहा है. साथ ही टेलीमानस हमारे यहां चल रहा है.
इस नंबर पर पा सकते हैं समाधान
ऐसे लोग शर्माते हैं और किसी को बताना नहीं चाहते. उसके लिए टेली मानस सेल संचालित किया जा रहा है. उस व्यक्ति की निजता को बिल्कुल भी भंग नहीं किया जाता है. टोल फ्री नम्बर 14416,1800-8914416 पर बात कर आप सहायता ले सकते हैं. काउंसलर को लगता है कि उनका निधान मनौवैज्ञानिक को रेफर करने से ही होगा, तो जरूरत के हिसाब से काउंसलिंग,साइको थैरेपी व मनौवैज्ञानिक की गाइडनेंस से वह व्यक्ति ठीक हो सकता है.