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October 8, 2025 7:08 am

JDA की नई योजनाएं: शहर की रीढ़ तोड़ने की साजिश या जनकल्याण?

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जयपुर को बड़ा बनाने का खेल! कहीं चहेतों को फायदा पहुंचाने की चाल तो नहीं, जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट

जेडीए ने जिस फैसले को विकास का नाम दिया है, असल में वह बिल्डर लॉबी को खुला मैदान देने और शहर की रीढ़ तोड़ने वाला कदम होगा।

जयपुर। जेडीए ने जिस फैसले को विकास का नाम दिया है, असल में वह बिल्डर लॉबी को खुला मैदान देने और शहर की रीढ़ तोड़ने वाला कदम होगा। शहर को ऊंचा उठाने की बजाय बिल्डर लॉबी को फायदा पहुंचाने का काम किया जा रहा है।

जेडीए ने दीर्घकालिक सोच और जमीनी हकीकत को समझे बिना शहर को ऊपर उठाने की बजाय बेतहाशा फैलाने का फैसला लिया है। इससे आने वाले वर्षों में यातायात जाम, जल संकट सहित अन्य समस्याएं खड़ी होना तय है। सुदूर गांवों में सुविधाएं पहुंचाना मुश्किल होगा और लोगों का भी आने-जाने में ज्यादा समय लगेगा।

तीसरा सबसे बड़ा शहर बन गया

देश के शहरों से तुलना करें तो लैंड बैंक के मामले में पुणे, हैदराबाद और मुम्बई के बाद जयपुर के जेडीए के पास सर्वाधिक जमीन है। देश के दूसरे शहरों की बात करें तो इस तरह का विस्तार कहीं पर नहीं हो रहा है। दिल्ली, मुम्बई जैसे महानगर भी फैलने की बजाय ऊपर उठना पसंद कर रहे हैं।

हैदराबाद महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण के पास 7257 वर्ग किमी का दायरा है। वहीं, पुणे महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण के पास 6914 वर्ग किमी का क्षेत्र है। मुम्बई महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण का क्षेत्रफल 6767 वर्ग किमी का है। जेडीए अधिकारियों की मानें तो करीब छह हजार वर्ग किमी का क्षेत्र हो गया है।

चहेतों को फायदा पहुंचाने की कोशिश तो नहीं

आने वाले समय में जेडीए जमीन का अधिग्रहण शुरू करेगा। स्थानीय लोगों को विकास के सपने दिखाए जाएंगे। चहेतों को फायदा ही मिलेगा। कुछ माह बाद भूमाफिया अवैध रूप से कॉलोनी काटना शुरू कर देंगे। ऐसे में जयपुर के आस-पास खेती के लिए जमीन नहीं रहेगी और हरियाली की जगह कंक्रीट के जंगल खड़े हो जाएंगे।

ये दिक्कतें होना तय

-अभी शहर के बाहरी इलाकों में मूलभूत सुविधाएं विकसित नहीं हो रही हैं। ऐसे में जो गांव जोड़े गए हैं, उनमें विकास पहुंचने में कई वर्ष लग जाएंगे।

-सड़कों का नेटवर्क भी आसान नहीं होगा। मौजूदा मास्टरप्लान की कुछेक सेक्टर सड़कों को ही जेडीए पूरा कर पाया है। 200 से अधिक सेक्टर रोड अधूरी हैं।

जेडीए का तर्क गले नहीं उतर रहा

जेडीए अधिकारियों का तर्क है कि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई महानगरों को छोड़ दें तो जयपुर में तेजी से आबादी बढ़ रही है। वार्षिक वृद्धि दर करीब तीन फीसदी है। इस आधार पर जयपुर की संभावना है कि वह बेंगलूरु, हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद, विशाखापत्तनम, लखनऊ जैसे महत्वपूर्ण शहरों के समान स्तर पर पहुंच जाएगा। इसका मुख्य कारण जयपुर का भौगोलिक स्थान है, जो देश की राजधानी नई दिल्ली के पास है।

अन्य शहरों की स्थिति

शहर क्षेत्रफल (वर्ग किमी)
नागपुर 3577
अहमदाबाद 1800
दिल्ली 1486
कोलकाता 1350
कानपुर 1600
चेन्नई 1013

392 से शुरू हुआ सफर 6000 वर्ग किमी तक पहुंचा

वर्ष 1971 में पहला मास्टरप्लान 20 वर्ष के लिए बनाया गया। इसमें 392 वर्ग किमी का क्षेत्र शामिल किया गया। वर्ष 2047 के मास्टरप्लान की कवायद चल रही है, उसमें करीब 6000 वर्ग किमी का क्षेत्र होगा।

पहला मास्टरप्लान (वर्ष 1971-1991 तक)

गांव-132
क्षेत्रफल- 392 वर्ग किमी
अनुमानित आबादी: 21 लाख
बाद में इसे वर्ष 1998 तक के लिए बढ़ा दिया।

दूसरा मास्टरप्लान (वर्ष 1998-2011 तक)

गांव-478
क्षेत्रफल- 1960 वर्ग किमी
अनुमानित आबादी: 44 लाख

तीसरा मास्टरप्लान (वर्ष 2011 से 2025 तक)

गांव-725
क्षेत्रफल- 2940 वर्ग किमी
अनुमानित आबादी: 65 लाख

प्रस्तावित मास्टरप्लान (2027 से 2047)

गांव-693
क्षेत्रफल- 6000 वर्ग किमी
अनुमानित आबादी: 115 लाख

टॉपिक एक्सपर्ट: जेडीए पुराने क्षेत्रफल पर ही फोकस करता

बिखरे विकास से आधारभूत संरचना खड़ी कर पाना आसान नहीं है। दूर गांवों में जब विकास पहुंचेगा, तब तक वहां की जमीन बिक चुकी होगी। सैटेलाइट टाउन पर फोकस करते हुए जेडीए पुराने क्षेत्रफल पर ही फोकस करता तो बेहतर परिणाम सामने आते। जब तक मास्टरप्लान बनेगा, उससे पहले जेडीए से कई तरह की स्वीकृतियां जारी हो जाएंगी। ऐसे में मजबूरन मास्टर डवलपमेंट प्लान में समाहित समायोजन करना पड़ेगा। अचानक बड़ा विस्तार बिना साइंटिफिक स्टडीज के औचित्यपूर्ण नहीं है।
-चन्द्र शेखर पाराशर, सेवानिवृत्त, अतिरिक्त मुख्य नगर नियोजक

Pooja Reporter
Author: Pooja Reporter

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