सोशल मीडिया पर अब कॉन्टेंट की कमी नहीं है। आपको एक मिनट के अंदर इतने रील्स मिल जाते हैं कि ज्यादातर तो लोग उन्हें बिना देखे ही आगे स्क्रॉल कर देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं ऐसे ही घंटों रील्स स्क्रॉल करने की आदत आपके दिमाग को आलसी और कमजोर बना रही है
गर आप अपना सोशल मीडिया खोलेंगे, तो एक मिनट के अंदर आपको कई नए रील्स मिल जाएंगे। तैयार होने, खाना बनाने, डॉग को वॉक पर ले जाने या किसी टॉपिक पर जानकारी देते हजारों रील्स आपको कुछ ही मिनट में मिल जाएंगे (Doom Scrolling)। आज हमारे जीवन का हर पहलू 30 सेकंड के अंदर रील में समेट कर दिखाया जा सकता है।
कॉन्टेंट की इस भरमार के कारण जाहिर सी बात है कि लोग अपने दिन का काफी समय रील्स स्क्रॉल करते हुए बिताते हैं। इस दौरान वे कुछ प्रोडक्टिव नहीं करते, बस रील्स को स्क्रॉल करते हैं। इसे डूम स्क्रॉलिंग कहा जाता है। लेकिन लगातार स्क्रॉल करते रहना अब सिर्फ समय बर्बाद करने की आदत नहीं, बल्कि दिमाग पर असर (Social Media Effects on Brain) डालने वाला व्यवहार माना जा रहा है, जिसे ब्रेन रॉट कहा जाता है। लेकिन क्या वाकई में रील्स आपको ‘ब्रेन रॉट’ (Brain Rot) की ओर ले जा सकती हैं? आइए जानें इस बारे में।
क्या है ‘ब्रेन रॉट’?
Gen-Z स्लैंग के रूप में शुरू हुआ ‘ब्रेन रॉट’ शब्द ब्रेन फॉग, ध्यान भटकाव और समझने-सीखने की क्षमता में कमी के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो लगातार शॉर्ट वीडियो स्क्रॉल करने से होती है। कई शोध बताते हैं कि सैकड़ों वीडियो को कुछ ही मिनट में देखने से दिमाग तेजी से उत्तेजित होता रहता है और यह पैटर्न धीरे-धीरे दिमाग की काम करने की क्षमता को प्रभावित करता है।

कैसे बदलता है दिमाग?
एक हालिया मेटा-एनलिसिस, जिसमें 71 स्टडीज के करीब एक लाख प्रतिभागी शामिल थे, ने पाया कि लगातार शॉर्ट वीडियो देखने से फोकस करने और सेल्फ कंट्रोल की क्षमता कमजोर होने लगती है। इसी के साथ स्ट्रेस और एंग्जायटी बढ़ने की भी संभावना रहती है।
NeuroImage में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, शॉर्ट वीडियो की लत दिमाग के ग्रे मैटर तक को प्रभावित कर सकती है। इससे व्यक्ति में ईर्ष्या बढ़ने, परिणामों को नजरअंदाज करने और जानकारी को धीमी गति से प्रोसेस करने जैसी समस्याएं देखी गई हैं।
रील्स दिमाग पर कैसे असर डालती हैं?
- रील्स ‘तुरंत खुशी’ देने के प्रिंसिपल पर चलती हैं। हर स्वाइप पर नया वीडियो आपके दिमाग में डोपामाइन रिलीज करता है ठीक वही पैटर्न, जो किसी तरह की लत में देखा जाता है।
- इसके कारण दिमाग तेज, उत्तेजनाओं से भरे वातावरण का आदी हो जाता है। इससे व्यक्ति बेचैन और इंपल्सिव होने लगता है। साथ ही, रील्स देखने की आदत के कारण ध्यान और याददाश्त पर असर पड़ता है, क्योंकि दिमाग हर कुछ सेकंड में फोकस बदल रहा होता है।
- रील्स देखने की लत का सबसे बड़ा साइलेंट विक्टिम है नींद। देर रात स्क्रॉलिंग से नींद की गुणवत्ता गिरती है, जिससे अगला दिन चिड़चिड़ापन और थकान होती है। साथ ही, दिमाग कम फोकस कर पाता है।
क्या ‘ब्रेन रॉट’ रोका जा सकता है?
अच्छी खबर यह है कि दिमाग बेहद फ्लेक्सिबल होता है और अपनी आदतें बदल सकता है। इसलिए जरूरी है कि आप अपनी रील स्क्रॉलिंग टाइम को कम करें। इसके लिए-
- छोटी-छोटी सीमाएं तय करें
- खाने के समय फोन दूर रखें
- सोने से एक घंटा पहले स्क्रॉलिंग बंद कर दें
- पढ़ाई या काम करते समय नोटिफिकेशन ऑफ रखें
- धीरे-धीरे स्क्रीन टाइम कम करेंगे, तो दिमाग को राहत मिलनी शुरू हो जाएगी
- स्क्रीन टाइम की जगह दूसरी एक्टिविटीज, जैसे- रीडिंग, पेंटिंग, म्यूजिक सुनना आदि पर फोकस करें
- बाहर थोड़ी देर टहलना भी फायदेमंद है
इमोशन्स को समझें
लोग अक्सर बोरियत, अकेलेपन या तनाव से बचने के लिए रील्स देखते हैं। इसके बजाय कोई दोस्त से बात करना, जर्नलिंग या छोटी वॉक पर जाना बेहतर विकल्प हो सकता है। रील्स देखना बुरी आदत नहीं हैं, लेकिन उनकी अधिकता आपके दिमाग को ओवरस्टिमुलेट कर सकती है जिससे ध्यान, फैसले लेने की क्षमता और इमोशनल हेल्थ प्रभावित होता है। सही बाउंड्रीज सेट करके और स्क्रीन टाइम को संतुलित करके आप ‘ब्रेन रॉट’ जैसी समस्याओं से खुद को बचा सकते हैं।





