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February 22, 2025 10:36 am

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अंतरराष्‍ट्रीय मातृभाषा एवं मीणी भाषा दिवस 21फरवरी

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यूनेस्‍को द्वारा प्रतिवर्ष 21 फरवरी को भाषायी और सांस्‍कृतिक विविधता तथा बहुभाषावाद के विषय में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्‍ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा की गई है। अंतरराष्‍ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में यूनेस्‍को ने 17 नवम्‍बर, 1999 को घोषणा की थी जिसे विश्‍वभर में वर्ष 2000 से मनाया जाने लगा है। 2019 में U.N.O. ने आदिवासी मातृभाषा वर्ष के रूप में मनाया था। संसार भर की आदिवासी भाषाओं के अस्तित्‍व के संकट को देखते हुए U.N.O.ने आदिवासी मातृभाषा दशक 2022-2032 घोषित किया है। U.N.O.की रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्‍येक दो सप्‍ताह में एक आदिवासी भाषा मर रही है। इस सदी के अंत तक आदिवासी समुदायों की मातृभाषाएं विलुप्‍त होने का गंभीर संकट बताया है। इसलिए संसार भर की मातृभाषाओं को संरक्षण, पुनर्रक्षण और लिपिबद्ध करके इनको जीवंत रूप में सहेजने का प्रयास किया है। इससे संसार की विविध सांस्‍कृतिक बहुभाषिकता के संकटग्रस्‍त और विलुप्‍त होते अस्तित्‍व को जीवंत और लिखित रूप में संरक्षण के साथ बढ़ावा मिलेगा।

मातृभाषाओं की आरेचर-वाचिक परंपरा के बहुमूल्‍य भंडारों के साथ संसार भर का ऐतिहासिक, सांस्‍कृतिक, भाषिक और बौद्धिक ज्ञान को सहेजा जा सकेगा। संसार में 7 हजार से भी अधिक भाषाएं हैं। दुनियाभर में बोली जाने वाली लगभग 6 हजार भाषाओं में से 43 प्रतिशत लुप्‍तप्राय हैं। संयुक्‍त राष्‍ट्र के अनुसार हर दो हफ्ते में एक भाषा गायब हो जाती है और दुनिया उस भाषा की एक पूरी सांस्‍कृतिक एवं बौद्धिक विरासत खो देती है। 21 फरवरी को अंतरराष्‍ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का विचार कनाडा में रहने वाले बंगलादेशी रफीकुल इस्‍लाम द्वारा सुझाया गया था। बंगलादेश में 1952 में भाषा आंदोलन के दौरान काफी लोगों का नरसंहार हुआ था। उन्‍हीं शहीदों की याद में 21 फरवरी बलिदान दिवस को यादगार स्‍मृति बनाये रखने के लिए अंतरराष्‍ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में घोषित किया गया है।

यूनेस्‍को द्वारा अंतरराष्‍ट्रीय भाषा दिवस घोषित करने का मुख्‍य उद्देश्‍य तमाम समाज और समुदायों की मातृभाषाओं के विस्‍तृत और अपार ज्ञान को सहेजना और उन्‍हें बढ़ावा देना हैं।

विश्‍व की लगभग 40 प्रतिशत आबादी ने ऐसी भाषा में शिक्षा प्राप्‍त नहीं की हैं जिसे वे जन्‍म के बाद से बोलते और समझते रहे हैं। उन्‍हें उनकी अपनी मातृभाषाओं में शिक्षा न देकर विदेशी और वर्चस्‍ववादी स्‍थानीय भाषाओं में अनिवार्य और ऐच्छिक रूप में शिक्षा दी गयी हैं, इसी कारण उनकी मातृभाषाएं या तो विलुप्‍त हो गयी है या अपने अस्तित्‍व के संकट से जूझ रही हैं।

भारत में लगभग दो हजार मातृभाषाएं हैं जिनमें से केवल 22 भाषाओं को संविधान में अनुसूचित किया गया हैं। 234 भाषाओं को पहचान योग्‍य मातृभाषाओं के रूप चिन्हित किया गया हैं, बाकि भाषाएं विलुप्ति की ओर धकेल दी गई हैं। विश्‍व की लगभग 43 प्रतिशत भाषाओं का अस्तित्‍व खतरें में है और संबंधित देशों की सरकारें भी उनकी अवहेलना और उपेक्षा कर रही हैं। भारत में लगभग दो हजार भाषाएं हैं लेकिन 100 भाषाओं को ही शिक्षा प्रणाली और सार्वजनिक क्षेत्रों में स्‍थान दिया गया हैं।

वैश्विकरण के दौर में तकनीकी और आधुनिक व्‍यवस्‍था से जुडने के लिए एवं बेहतर रोजगार के अवसरों के लिए मातृभाषाओं को छोड़कर विदेशी भाषाएं सीखनें की होड़ मातृभाषाओं की विलुप्ति का सबसे बड़ा कारण रहा हैं। विश्‍व की आदिवासी भाषाओं को बचाने के लिए यूनेस्‍को ने वर्ष 2022 और 2032 के बीच की अवधि को स्‍वदेशी भाषाओं के अंतरराष्‍ट्रीय दशक के रूप में घोषित किया हैं। इससे पहले यूनेस्‍को ने विश्‍व आदिवासी दिवस के रजत जयंती वर्ष 2019 को आदिवासी भाषाओं के अंतरराष्‍ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया था।

मीणी भाषा और उसके मौखिक गीत मीणा आदिवासी समुदाय की ग्रामीण संस्कृति के आँगन में प्रस्फुटित हुआ हैं, जिसमें घर, बाड़ा, खेत, खलियान,जंगल,पहाड़,दर्रे,घाटियाँ,रेगिस्तान,नदियाँ,समुद्र,धरती,आकाश,हवा,पानी,अग्नि,सूर्य,चन्द्रमा सभी तत्व शामिल होते हैं। भाषा केवल बात करने का ही माध्यम नहीं है, बल्कि भाषा सामाजिक,सांस्कृतिक,ऐतिहासिक,भौगोलिक और प्राकृतिक समाज के पूरे हिस्से को एक पीढ़ी से लेकर दूसरी पीढ़ी को देने की ज्ञानधारा है। यह पूरा ज्ञान का सरोवर है। भाषा जितनी पुरानी होती है उसका ज्ञान विस्तार भी उतना ही विस्तृत होता है। पुरखा गीत उस समाज की भाषा का संपूर्ण ज्ञान भंडार है। हजारों साल बाद भी आदिवासी समुदाय शोषण,संघर्ष,विद्रोह,युद्ध, विस्थापन और पलायन की मार झेलता हुआ मैदान पहाड़ और जंगल में सामूहिक रूप से रहकर अपनी संस्कृति और सभ्यता के बीच जीवन-यापन करता हुआ सबका संरक्षण कर रहा है।

पुरखो द्वारा सृजित मौखिक साहित्‍य अधिकांशत:मातृभाषाओं में रचा जाता है। भारत में लगभग 781आदिवासी समुदाय हैं। जिनमें अधिकांश की अपनी मातृभाषाएं और बोलियां हैं। मीणा आदिवासी समुदाय की मातृभाषा मीणी भाषा है, जिसको यूनेस्‍को ने मृतभाषा के रूप में दर्ज कर रखा है। लगभग एक करोड़ मीणा समुदाय की आबादी की भाषा कैसे विलुप्‍त हो सकती हैं? कुछ समुदायों की उनकी अपनी लिपि भी हैं। भारत में पाये जाने वाले पॉंचों भाषा परिवार में आदिवासी भाषाएं और बोलियां जीवंत रूप में मौखिक और लिखित साहित्‍य के रूप में जनजीवन के साथ सबका मार्ग प्रशस्‍त कर रही हैं। भारत में आदिवासी समाज की कुल जनसंख्‍या 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 12 करोड़ हैं जो देश की कुल जनसंख्‍या का 8.6 प्रतिशत हैं । जिसमें मीणा जनजाति जनसंख्‍या की दृष्टि से भारत के आदिवासी समुदायों में पॉंचवें स्‍थान पर हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में जनसंख्या की दृष्टि से मीणा आदिवासी समुदाय पहला स्थान रखता हैं।

भाषा सबसे बड़ी विरासत है जो हजारों सालों से मानव के साथ-साथ जीवित है। भाषा प्रमुख रूप से चार प्रकार की होती हैं, आंगिक भाषा, चित्रलिपि भाषा, मौखिक भाषा और लिखित भाषा। संसार की भाषाओं का विकास क्रम हज़ारों सालों से आंगिक, चित्रलिपि, मौखिक और लिखित रूप में मानव के साथ-साथ जीवित हैं। पुरखौती का अर्थ पुरखों  की कहन परंपरा से है। पुरखौती कहन परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है, जो मानव मेधा के विशाल मौखिक भंडार है। पुरखौती ज्ञान भंडारों की चाबी मातृभाषाएँ ही हैं। मातृभाषाएँ वे भाषाएँ हैं जो जन्म के साथ बच्चे को अपनी माँ,दादी,नानी,परिवार और समुदाय से मिलती हैं।

वाचिक परम्‍परा के लोकगीत संपूर्ण संसार को उर्जावान और गतिमान बनाकर अस्तित्‍व, अस्मिता, संघर्ष, इतिहास और संस्‍कृति का पाठ भी पढ़ाते हैं। आदिवासी समुदायों की भाषाएं संसार की प्राचीनतम मातृभाषाएं हैं। भारत में आदिवासी भाषाओं को पॉंचों भाषा परिवारों में पुरखौती-वाचिक और लिखित रूप में देखा जा सकता है इसीलिए आदिवासी भाषाओं को पूर्व आर्य भाषा कहा जाता हैं। भारत में पाये जाने वाले पॉंचों भाषा परिवारों में आदिवासी भाषा और बोलियों का होना इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं। भारत के इन पॉचों भाषा परिवारों में आदिवासी साहित्‍य मौखिक रूप में अधिक और लिखित रूप में कम मौजूद है ।

दुनिया में पॉच भाषा परिवार :- 1.आस्‍ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार 2.चीनी-तिब्‍बती भाषा परिवार 3.द्रविड भाषा परिवार 4.अंडमानी भाषा परिवार 5.भारतीय आर्य भाषा परिवार। कुछ भाषाएँ इस प्रकार की भी हैं,जिन्हें हम इन भाषा परिवारों के अंतर्गत समाहित करने में पूरी तरह समर्थ नहीं हो पाते। लगभग पुरातात्विक और मानवशास्त्रियों ने सैंधव सभ्यता को प्रोटो द्रविड़ियन सभ्यता के रूप में स्वीकार किया है। द्रविड़ियन सभ्यता से पूर्व की इस सभ्यता के बाशिंदे भील, गोंड और मीणा थें। अब ऐसी स्थिति में या तो इन समुदायों की भाषाओं को ‘प्रोटो द्रविड़ियन भाषा परिवार’ के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए, या फिर सरलीकरण करते हुए एक चले आ रहे भाषिक पैरामीटरों के तहत द्रविड़ भाषा परिवार के अंतर्गत स्वीकार किया जाना चाहिए। सांस्कृतिक संपर्क के फलस्वरूप आदिवासी भाषाओं में आर्यभाषाओं के शब्द घुल-मिल गए।

राजस्‍थान के मीणा आदिवासी समाज की मातृभाषा मीणी भाषा की मुख्‍य रूप से 15 बोलियॉं हैं: 1.राठी मीणी 2. जगरोटी मीणी 3.डांगी मीणी 4.माड़ी मीणी 5.तलहैटी मीणी 6.सतवारी मीणी 7.बावन हाडौती मीणी  8.मेवाती मीणी 9.गोडवाणी मीणी 10.शेखावाटी मीणी 11.ढूंढाड़ी मीणी  12;पचवारी मीणी 13. काठैड़ी मीणी 14.आंतरी मीणी 15.नागरचाळी मीणी ।

ढूंढ नदी के विस्‍तार क्षेत्र में आनी वाली भू सीमाओं को ढूंढाड़ क्षेत्र कहा जाता है और यहॉं बोली जाने वाली भाषा बोली को ढूंढाणी कहते हैं । ढूंढाड़ी और ढूंढ़ाणी एक भारतीय आर्य भाषा के रूप में चिन्हित की हुई है जो पूर्वोत्‍तर राजस्‍थान के ढूंढाड़ क्षेत्र में बो‍ली जाती है । ढूंढाणी बोलने वाले मुख्‍य रूप से राजस्‍थान के जयपुर, दौसा, सवाई माधोपुर, करौली, टोंक, अलवर जिलें में रहते हैं। चार कोस पर पाणी बदलेआठ कोस पर वाणी यह लोकोक्ति यहॉं की बोली भाषा पर बेहद प्रासंगिक है। यहॉं रहने वाले मीणा समुदाय की भाषा में शब्‍दों के उच्‍चारण में क्रिया के अंत में ‘ण’,‘यो’ का प्रयोग होता है ‘न’ का नहीं। जैसे आणा,जाणा,खाणा,पीणा,रहणा,सोणा,बैठणा,चलणा-आयो,गयो,खायो,पीयो,रह्यो, सोयो,बैठ्यो,चाल्‍यो आदि। वाक्‍यों के अंत में है कि बजाय  का प्रयोग होता है जैसें कांई करयो छ,कोडअ जाणो छ,पाणी पी रह्यो छू,रोटी खारयो छू,कोडअ गयो छोआदि शब्‍दों और वाक्‍यों का प्रयोग किया जाता हैं।

मातृभाषाएं संसार के ज्ञान का विशाल भंडार है। आदिम जनजीवन की भाषा- बोलियाँ ही संसार की भाषाओं की जननी हैं। संसार के पुरखौती गीतों की जननी उनकी मातृभाषाएं ही हैं। सृष्टि के आदिकाल में सामाजिक चेतना के साथ पुरखा गीतों का जन्‍म हुआ। इन गीतों का संबंध सामान्‍य जनजीवन के जीवंत क्रिया-कलापों और नैसंर्गिक भावों से रहा हैं। पुरखों के कण्‍ठ की मौखिक परम्‍परा की अनमोल धरोहर पुरखौती-मौखिक गीत है। आरेचर-मौखिक ज्ञान परंपरा में पुरखौती साहित्‍य की विविध विद्याऍं जैसे-गीत,कथा,नाटक,लोकोक्ति,मुहावरें,पहेलियां,जीवनशैली,जीवनदर्शन, इतिहास,संस्‍कृति आदि समाहित हैं, इसलिए इसे पुरखों के मानस की मौलिक चित्‍तवृत्तियों के कोष कहा जाता है। पुरखौती साहित्‍य समुची संस्‍कृति की स्‍मृत और स्रुत मेधा के भंडार और पहरेदार हैं। आरेचर साहित्‍य के माध्‍यम से लोक मौखिक रूप में स्‍वयं को खोलता हैं। आदिम पुरखा के पास सहजता है, सरलता है, खुलापन है, असीम धरती और अनंत आकाश हैं। आरेचर-मौखिक-वाचिक साहित्‍य की जीवंतता मातृभाषाओं की अमृत सलीला से निरंतर संग्रहित,पुष्‍पित,पल्‍लवित और प्रवाहित होती रहती हैं।

डॉहीरा मीणा

 पूर्व सहायक प्रोफेसर,दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय

वर्तमान संप्रति स्‍वतंत्र लेखन एवं आदिवासी रचनाकार

Sanjeevni Today
Author: Sanjeevni Today

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