धौलपुर, राजस्थान: राजस्थान सरकार के सरकारी पोर्टल ‘राजस्थान संपर्क’ (181) पर दर्ज शिकायतों की अनदेखी का मामला सामने आया है। सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व कस्टम्स अधिकारी रामेश्वर दयाल ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सूचित किया है कि उन्होंने इस पोर्टल पर 1,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की हैं, लेकिन किसी भी विभाग या कार्यालय द्वारा नियमों और मानकों के अनुसार कोई कार्रवाई नहीं की गई।
दयाल ने बताया कि पिछले तीन वर्षों में उन्होंने डिविजनल कमिशनर, (डीसी) भरतपुर, कलेक्टर धोलपुर और सरमथुरा के एसडीएम की जनसुनवाई में 200 से अधिक लिखित शिकायतें दीं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। कुछ शिकायतें गायव कर दी जाती हैं और कुछ शिकायतें सिस्टम में अपलोड तो की जाती हैं, लेकिन बिना विषयवस्तु पर विचार किए या समाधान किए उन्हें बंद कर दिया जाता है। उन्होंने आरोप लगाया कि शिकायतों की निगरानी निजी कंपनियों के कर्मचारी करते हैं, जिन्हें शिकायतों की पर्याप्त जानकारी नहीं होती।
उन्होंने आयोग को बताया कि यदि 181 ऑपरेटर एक ही स्थिति को दो बार दोहराते हैं, तो शिकायतें स्वतः बंद कर दी जाती हैं। इसके अलावा, बंद की गई शिकायतों को दोबारा खोलने की कोई व्यवस्था या समय-सीमा नहीं है। ऑपरेटर नई शिकायत दर्ज करने का सुझाव देते हैं, जिससे समय की बर्बादी होती है और कोई परिणाम नहीं मिलता। दयाल ने कहा कि उन्होंने डीसी, कलेक्टर, और एसडीएम से शिकायतों के निवारण के लिए समय देने का अनुरोध किया, लेकिन उनकी अनदेखी की गई।
रामेश्वर दयाल ने आयोग से अनुरोध किया कि सिस्टम की इस खामी को मानवाधिकारों का उल्लंघन माना जाए और आवश्यक कार्रवाई की जाए। उनकी शिकायत को गंभीरता से लेते हुए, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (नई दिल्ली) ने 26 सितंबर 2025 को मामले (संख्या: 2851/20/12/2025) में जिला मजिस्ट्रेट, धौलपुर को निर्देश जारी किए हैं। आयोग ने आदेश दिया कि शिकायतकर्ता को शामिल करते हुए 8 सप्ताह के भीतर उचित कार्रवाई की जाए और कार्रवाई की जानकारी रामेश्वर दयाल, ग्राम खिन्नोट, तहसील सरमथुरा, धौलपुर को दी जाए। यह निर्देश अतुल कुमार, सहायक रजिस्ट्रार (विधि), एनएचआरसी द्वारा जारी किए गए।
दयाल ने कहा, “धौलपुर जिले में वर्षों से किसी भी कार्यालय में शिकायतों का समाधान नहीं हो रहा। राजस्थान संपर्क पोर्टल एक मजाक बन गया है। लोग अपना समय और संसाधन खर्च कर रहे हैं, लेकिन समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।”
यह मामला प्रशासनिक लापरवाही और सिस्टम की खामियों को उजागर करता है, जिस पर अब मानवाधिकार आयोग की नजर है। आगामी कार्रवाई पर सभी की निगाहें टिकी हैं।